शिमला/शैल। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने 2017 में जब वह नादौन से विधायक थे तब निशु ठाकुर, ईशा ठाकुर, प्रवीण कुमार पत्रकार अमर उजाला और कपिल बस्सी पत्रकार दैनिक सवेरा के खिलाफ आपराधिक एवं सिविल मानहानि के मामले शिमला तथा हमीरपुर में दायर किये थे। लेकिन इन मामलों का निपटारा अब तक नहीं हो सका है। हमीरपुर में दायर हुआ सिविल मामला अब शायद लोक अदालत में पहुंच गया है। शिमला में दायर हुये आपराधिक मामले में प्रतिवादियों को शायद अभी तक वांछित दस्तावेज भी उपलब्ध नहीं हो पाये हैं। यह मामले इतना लम्बा क्यों हो रहे हैं। इस पर अब अमर उजाला के पत्रकार प्रवीण कुमार ने हिमाचल उच्च न्यायालय में दस्तक देकर इस मामले को बन्द किये जाने की गुहार लगाई है। यह मामले जब दायर हुये थे तब सुखविंदर सिंह सुक्खू नादौन से विधायक और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष थे परन्तु अब तो वह दो वर्षों से भी अधिक समय से प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। ऐसे में यह मामले तो अब तक निपट जाने चाहिये थे। परन्तु ऐसा हो नहीं पाया है। इसलिये इन मामलों की पृष्ठभूमि में जाना आवश्यक हो जाता है। स्मरणीय है की मानहानि के यह मामले ईशा ठाकुर और निशु ठाकुर द्वारा 2016 में हमीरपुर में आयोजित एक पत्रकार वार्ता पर आधारित हैं। इस पत्रकार वार्ता में इन भाई बहन ने नादौन के जडोत गांव में मान खड्ड पर कार्यरत एक स्टोन क्रेशर और हॉट मिक्सिंग प्लांट में हो रही अवैधताओं पर प्रशासन का ध्यान आकर्षित किया था। यह आरोप लगाया था कि क्रेशर के साथ लगती उनकी 27 कनाल जमीन पर यह क्रेशर लगाया गया है। यह मामला उच्च न्यायालय ने भी स्वतः संज्ञान में लिया था। एनजीटी के आदेश से यह स्टोन क्रेशर वहां से हटाया गया है। ऐसे में स्टोन क्रेशर को लेकर उठाये गये एतराज स्वतः ही अधारहीन हो जाते हैं। इन्हीं पत्रकार वार्ताें में एक आरोप यह भी था कि सुक्खू ने 769 कनाल जमीन अपने भाई के नाम खरीदी है। जिसे बाद में अपने नाम करवा लिया गया। यह पत्रकार वार्ताएं शायद 2016 में हुई। परन्तु इसका संज्ञान 2017 में लेकर मानहानि के मामले दायर किये गये। यहीं पर यह उल्लेखनीय हो जाता है कि सुक्खू ने 2017 में नादौन में विधानसभा चुनाव लड़ा और वह जीत गये। चुनाव परिणाम के कुछ समय बाद इन्हीं भाई बहन के पिता बसन्त सिंह ठाकुर ने सुक्खू के चुनाव को यह कहकर उच्च न्यायालय में चुनौती दे दी की सुक्खू ने चुनाव शपथ पत्र में संपत्ति को लेकर तथ्यों को छुपाया है। उच्च न्यायालय ने इस पर चुनाव याचिका तो स्वीकार नहीं की क्योंकि समय अवधि निकल गयी। परन्तु आरोपों को सक्ष्म आथॉरिटी के पास उठाने को कहा और अथॉरिटी को निर्देश दिये की इस पर शीघ्र कारवाई हो। उच्च न्यायालय के निर्देशों पर यह मामला एस.पी. हमीरपुर के कार्यालय में जांच के लिये आ गया। यहां ए.एस.पी. ने इस मामले की जांच की और तथ्य छुपाने के आरोपों को सही पाया। ए.एस.पी की जांच रिपोर्ट के बाद धारा 156;3द्ध के तहत यह मामला ए.सी.जे.एम. की अदालत में नादौन में दायर हो गया। यहां अदालत ने फिर जांच करवाई और तथ्यों को सही पाया। परन्तु अपनी रिपोर्ट में यह कहा है कि इससे किसी को व्यक्तिगत लाभ हानि नहीं हुई है इसलिये चालान को रद्द कर दिया जाये और इस सिफारिश पर चालान रद्द हो गया और सुक्खू को राहत मिल गयी।
नादौन अदालत के फैसले को उच्च न्यायालय मे चुनौति दी गयी। इस पर जस्टिस राकेश कैंथला की एकल पीठ ने इस याचिका को तो अस्वीकार कर दिया लेकिन साथ यह भी कह दिया कि इसका मामले के गुण दोष पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इससे स्पष्ट हो जाता है की संपत्ति संबंधी तथ्यों को छुपाने के आरोप को अलग से चुनौती दी जा सकती है। क्योंकि खरीदी गई जमीन के राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज है कि इसमें ताबे हुकुक बर्तनदारान है और साथ ही 316 कनाल से अधिक की खरीद लैण्ड सीलिंग एक्ट के प्रावधानों में भी आती है। इस परिदृश्य में अमर उजाला के पत्रकार द्वारा मानहानि के मामले का उच्च न्यायालय में चुनौती दिया जाना रोचक और गंभीर हो जाता है। क्योंकि इस तरह के राजस्व इन्द्रराज वाली जमीन विलेज् कामन लैण्ड हो जाती है। जिसे न खरीदा जा सकता है न बेचा जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में 2011 में राज्यों के मुख्य सचिवों को कड़े निर्देश जारी किये हुये हैं।