विमल नेगी की हत्या हुई है या आत्म हत्या ही है पोस्टमार्टम रिपोर्ट से उठी आशंका

Created on Tuesday, 27 May 2025 04:48
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। क्या विमल नेगी की मौत का प्रकरण दूसरा गुड़िया कांड बनने जा रहा है? क्या यह प्रकरण कांग्रेस संगठन और सरकार दोनों के लिए घातक प्रमाणित होगा? क्या यह राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बनने जा रहा है? यह सारी आशंकाएं इसलिये उभरी हैं क्योंकि प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा इस मामले की जांच सी.बी.आई. को सौंपने पर जिस तरह की प्रतिक्रियाएं इस पर एस.पी. शिमला और प्रदेश महाधिवक्ता की पत्रकार वार्ताओं के माध्यम से सामने आयी हैं उनसे यह संकेत उभरे हैं। विमल नेगी दस मार्च को अपने कार्यालय से गायब हुये। इस गायब होने पर उनके परिजनों ने उन्हें तलाशने की गुहार लगाई और डी.जी.पी. ने इस पर एक एस.आई.टी. गठित कर दी। लेकिन यह तलाश कुछ परिणाम लाती उससे पहले ही विमल नेगी का शव 18 मार्च को गोविंद सागर झील में मिल गया। 19 मार्च को इस मृतक शरीर का पोस्टमार्टम एम्स बिलासपुर में करवाया गया। जो पोस्टमार्टम रिपोर्ट सामने आयी है उसके मुताबिक मृतक की मौत पांच दिन पहले हो चुकी थी। पोस्टमार्टम के मुताबिक विमल नेगी की मौत बारह/तेरह मार्च को हो चुकी थी। इस रिपोर्ट से यह सवाल उठता है कि यदि मौत बारह/तेरह मार्च को हो गयी थी और शव अठारह मार्च को गोविंद सागर झील में मिला तो क्या यह मृतक शरीर करीब एक सप्ताह पानी में रहा? क्या मृतक के शरीर पर ऐसे साक्ष्य मिले हैं जो यह प्रमाणित करते हैं कि मृतक शरीर इतना समय पानी में रहा है? क्योंकि इतना समय पानी में रहने से मृतक शरीर पर बदलाव आ जाता है। फिर मृतक के शरीर से पैन ड्राइव और मोबाइल फोन भी मिले हैं। क्या इन उपकरणों पर एक सप्ताह पानी में रहने से बदलाव नहीं आया होगा। लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट का जितना जिक्र उच्च न्यायालय के फैसले में आया है उसमें इस ओर कोई संकेत नहीं है। इस वस्तुस्थिति में यह सवाल उभरता है कि शायद यह आत्महत्या का मामला न होकर हत्या का मामला तो नहीं है?
18 मार्च को शव बरामद होने के बाद 19 मार्च को पुलिस मृतक की पत्नी किरण नेगी की शिकायत पर एफ.आई.आर. दर्ज कर लेती हैं। एक एस.आई.टी. बनाकर एफ.आई.आर. पर जांच शुरू हो जाती है। सरकार प्रशासनिक जांच भी आदेशित कर देती है और इसकी जिम्मेदारी अतिरिक्त मुख्य सचिव गृह को सौंप दी जाती है और पन्द्रह दिन के भीतर जांच पूरी करने को कहा जाता है। दूसरी ओर विमल नेगी की पत्नी किरण नेगी सरकार की कार्यप्रणाली से अप्रसन्न होकर सी.बी.आई. जांच के अनुरोध की याचिका प्रदेश उच्च न्यायालय में दायर कर देती है। इस याचिका पर उच्च न्यायालय डी.जी.पी., ए.सी.एस. होम और एस.पी. शिमला से स्टेटस रिपोर्ट तलब कर लेता है। प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश की अनुपालना में ए.सी.एस. होम और डी.जी.पी. तथा एस.पी. अपनी रिपोर्ट्स उच्च न्यायालय को सौंपते हैं। तीनों ही रिपोर्टें अन्तः विरोधी हैं। उच्च न्यायालय तीनों अन्तः विरोधी रिपोर्टें देखकर इस मामले की जांच सी.बी.आई. को सौंप देता है।
उच्च न्यायालय का सी.बी.आई.जांच का फैसला आते ही इस पर एस.पी. शिमला डी.जी.पी. के खिलाफ मोर्चा खोल देते हैं। पत्रकार वार्ता के माध्यम से डी.जी.पी. और ए.सी.एस गृह के खिलाफ गंभीर आरोप लगा देते हैं। यही नहीं प्रदेश के मुख्य सचिव के खिलाफ भी गंभीर आरोप लगा देते हैं। एस.पी. शिमला के इस व्यवहार पर डी.जी.पी. एस.पी. को तुरंत प्रभाव से निलंबित करने के लिये गृह सचिव को पत्र भेज देते हैं। इसी प्रकरण में प्रदेश के महाधिवक्ता भी पत्रकार वार्ता के माध्यम से ए.सी.एस. होम ओंकार शर्मा और डी.जी.पी. के खिलाफ मोर्चा खोल देते हैं। इस मोर्चा खोलने पर प्रदेश के महाधिवक्ता भी डी.जी.पी. और ए.सी.एस. होम की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर देते हैं। विमल नेगी प्रकरण की जांच से परोक्ष/अपरोक्ष में जुड़े अधिकारियों का आचरण स्पष्ट कर देता है कि निश्चित रूप से पुलिस जांच पूरे प्रकरण को आत्महत्या की ओर ले जा रही थी। जबकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक हत्या होने की ओर भी पर्याप्त संकेत उभरते हैं। ए.सी.एस. होम की जांच में जो शपथ पत्र इंजीनियर सुनील ग्रोवर का ब्यान आया है उसमें पावर कॉरपोरेशन की शौंग टौंग जल विद्युत परियोजना में सैकड़ो करोड़ का घोटाला हुआ है और पेखूबेला सोलर परियोजना में सौ करोड़ का घपला हुआ है। इन घपलों के लिये विमल नेगी पर अनुचित दबाव डाला जा रहा था। दबाव और प्रताड़ना के आरोप ए.सी.एस. होम की रिपोर्ट में भी आये हैं। पुलिस की जांच इसे आत्महत्या का मामला मान रही है जबकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत 12-13 मार्च को ही हो जाना हत्या होने की ओर बड़ा संकेत बनता है। इसलिये सी.बी.आई. की जांच से ही स्पष्ट हो पायेगा कि यह हत्या है या आत्महत्या और इसके लिये पावर कॉरपोरेशन की परियोजनाओं पर लग रहे सैकड़ो करोड़ के भ्रष्टाचार के आरोपों की क्या भूमिका रही है। जिस तरह से बड़े अधिकारियों में अपने में ही घमासान शुरू हुआ है उससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि कुछ छुपाने और दबाने के प्रयास हो रहे थे। इसी से इस मामले की गुड़िया कांड पार्ट दो बनने की संभावना बनती जा रही है।