भ्रष्टाचार के अहम मुद्दों पर प्रदेश भाजपा की खामोशी सवालों में
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Created on Tuesday, 17 June 2025 04:41
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Written by Shail Samachar
शिमला/शैल। क्या व्यवस्था परिवर्तन में भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच न करना भी शामिल है? क्या व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर विपक्ष का भी गंभीर मुद्दों पर खामोश रहना शामिल है? क्या व्यवस्था परिवर्तन के नाम जनता की सुविधा केवल भाषणों तक ही सीमित रह गई है? यह सारे सवाल इसलिये उठ रहे हैं क्योंकि भ्रष्टाचार पर जो आचरण पूर्व सरकार का था वहीं कुछ इस सरकार में भी हो रहा है। पूर्व सरकार में भ्रष्टाचार के उन आरोपों पर भी कोई कारवाई नहीं हुई जो भाजपा ने बतौर विपक्ष अपने आरोप पत्रों में लगाये थे। कोविड काल में हुई कई खरीदें विवादित रही और मामले बने लेकिन उन मामलों का क्या हुआ वह आज तक सामने नहीं आ पाया है और सरकार बदलने के बाद कांग्रेस ने भी उसी परंपरा को निभाने का आचरण जारी रखा है। बल्कि विधानसभा चुनावों के दौरान जो आरोप पत्र पूर्व सरकार के खिलाफ जनता में जारी किया था उस पर भी कोई कारवाई नहीं हुई है। भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले दोनों सरकारों में बराबर प्रताड़ित होते रहे हैं।
स्व. विमल नेगी की मौत इसी वस्तुस्थिति का ही परिणाम है। क्योंकि 2023 में ही पॉवर कारपोरेशन में व्यापक भ्रष्टाचार को लेकर एक पत्र वायरल हुआ था उस पत्र का गंभीरता से संज्ञान नहीं लिया गया बल्कि जिन पत्रकारों ने उस पत्र पर सरकार से गंभीर सवाल पूछे उन्हें ही प्रताड़ित किया गया। यदि उस पत्र का गंभीरता से संज्ञान ले लिया जाता तो शायद विमल नेगी प्रकरण न घटता। इसी तरह कांग्रेस नेता बैंस ने जो आरोप विजिलैन्स को सौंपी अपनी शिकायत में लगा रखे हैं उन आरोपों का न तो कोई खंडन किसी कोने से आया है और न ही विजिलैन्स ने उन आरोपों पर अभी तक कोई कारवाई की है। जबकि बैंस शायद विजिलैन्स को यह चेतावनी भी दे चुके हैं कि यदि इन आरोपों की जांच के लिये उन्हें विजिलैन्स मुख्यालय से बाहर अनशन पर भी बैठना पड़ा तो वह ऐसा भी करेंगे। क्योंकि बैंस के खिलाफ कांगड़ा के ऋण मामले को लेकर जो मामला दर्ज किया गया था उसमें बैंस को प्रदेश उच्च न्यायालय से जमानत मिल चुकी है और जमानत के फैसले में मान्य उच्च न्यायालय ने अधिकारियों के आचरण पर जिस तरह की टिप्पणियां कर रखी है उससे बैंस द्वारा लगाये गये आरोपों की गंभीरता और गहरा जाती है। भ्रष्टाचार पर शिमला के एस.पी. रहे संजीव गांधी ने अपनी एल.पी.ए. में मुख्य सचिव और डीजीपी के आचरण पर जिस तरह के सवाल उठा रखे हैं उससे भी सरकार की भ्रष्टाचार पर मानसिकता ही उजागर होती है। यह अलग विषय है कि यदि संजीव गांधी को एल.पी.ए. दायर न करनी पड़ती तो शायद सरकार के इन शीर्ष चेहरों पर से यह नकाब न उतरती। लेकिन इस में यह सब सामने आने के बाद भी सरकार अपने स्तर पर इन बड़ों के खिलाफ कोई कारवाई नहीं कर पा रही है। सरकार का यह आचरण भी सरकार के भ्रष्टाचार के प्रतिरूख को ही स्पष्ट करता है।
लेकिन इसी सब में विपक्ष की भूमिका पर भी गंभीर सवाल उठने शुरू हो गये हैं। इस सरकार ने लैण्ड सीलिंग एक्ट में संशोधन कर बेटियों को हक देने का विधेयक पारित किया है। लेकिन यह विधेयक लाये जाने से पूर्व सरकार ने इस बारे में कोई आंकड़े नहीं जुटाये हैं कि लैण्ड सीलिंग एक्ट तो 1974 में पारित होकर 1971 से लागू हो चुका है। ऐसे में पिछले पचास वर्षों में ऐसे कितने मामले आज भी प्रदेश में मौजूद हैं जिनमें यह एक्ट लागू ही नहीं हो सका है। या ऐसे कितने नये मामले खड़े हो गये हैं जिन्होंने सीलिंग एक्ट को अंगूठा दिखाते हुए आज सीलिंग से अधिक जमीन इकट्ठी कर ली है। यह एक बहुत ही संवेदनशील मामला है और इस पर भविष्य में सवाल अवश्य उठेंगे। लेकिन इस मामले पर विपक्ष की खामोशी अपने में ही कई सवाल खड़े कर जाती है। क्योंकि विपक्ष जब देहरा विधानसभा उपचुनाव के दौरान कांगड़ा केंद्रीय सहकारी बैंक धर्मशाला और जिला कल्याण अधिकारी द्वारा 78.50 लाख रुपए बांटे जाने की अपने ही भाजपा प्रत्याशी द्वारा राज्यपाल को सौंपी गई शिकायत पर चुप है तो स्पष्ट हो जाता है कि भ्रष्टाचार के इस हमाम में सब बराबर के नंगे हैं। जनता को भ्रमित करने के लिये कुछ ऐसे मद्दों को उछाला जा रहा है जिसे सत्तारूढ़ सरकार और विपक्ष की आपसी रस्म अदायगी जनता के सामने आती रहे। प्रदेश के वित्तीय संकट पर दोनों पक्ष इस रस्म अदायगी को ही तो निभा रहे हैं। जब बढ़ते कर्ज से भविष्य लगातार असुरक्षित होता जा रहा है लेकिन इस मुद्दे पर रस्म अदायगी से ज्यादा कुछ नहीं हो रहा है।