सरकार के अपने बागवानी, एपीएमसी और ट्रांसपोर्ट विभागों ने भी नही किया वीरभद्र के दावों का समर्थन

Created on Wednesday, 15 June 2016 10:32
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। आय से अधिक संपत्ति मामले में सीबीआई और ईडी एक साथ जांच झेल रहे मुख्यमंत्री वीरभद्र सिह से सीबीआई ने दो दिन करीब पन्द्रह घन्टे विस्तृत पूछताछ की है। लेकिन इस पुछताछ के बाद एैजेन्सी के सूत्रों से जो जानकारी बाहर आयी है उसके मुताबिक वीरभद्र सिंह अपने जबाव से सीबीआई को सन्तुष्ट नही कर पाये हैं। वीरभद्र ने भी इस पूछताछ पर कोई बड़ी प्रतिक्रिया जारी नही की है। जबकि वह अब तक इस सबके लिये प्रेम कुमार धूमल, अनुराग ठाकुर और अरूण जेटली को लगातार कोसते हुए यह दावा करत रहे हैं कि वह पाक साफ हैं। वीरभद्र की छवि के विपरीत सीबीआई का सन्तुष्ट न होना स्वाभाविक रूप से यह सवाल खड़े करता है कि जांच ऐजैन्सी के पास ऐसे क्या तथ्य हैं जिन पर मुख्यमन्त्री संतोषजनक जबाव नही दे पाये है। इसे समझने के लिये पूरे मामले की बुनियाद और उस पर आयी जांच ऐजैन्सी की रिपोर्ट को समझना आवश्यक है। क्योंकि इसी रिपोर्ट को देखकर दिल्ली उच्च न्यायालय ने जांच का आधार बने दस्तावेज देने तथा अटैचमेन्ट आदेश को रद्द करने से इन्कार कर दिया है।
स्मरणीय है कि इस प्रकरण में पहली शिकायत प्रंशात भूषण ने उस समय की थी जब मित्तल इस्पात उ़द्योग समूह के मुख्यालय में दिसम्बर 2010 में हुई छापामारी के दौरान पकड़ी गयी सीएमडी की डायरी में कुछ सांकेतिक नामों के आगे मोटी रकमें लिखी मिली थी। इन सांकेतिक नामों में एक नाम वी बी एस था । इस नाम के मीडिया में उछलने पर वीरभद्र सिंह ने कड़ी प्रतिक्रिया जारी करते हुए जारी करते हुुुए इसे पेड न्यूज करार देते हुए चुनाव आयोग तक में शिकायत दर्ज करवाते हुए इसके पीछे अनुराग ठाकुर और अरूण जेटली के होने का आरोप लगाया था। इस पृष्ठभूमि में आगे बढ़े इस मामले में सबसे पहले आयकर विभाग ने जांच की। आयकर की जंाच का आधार एलआईसी ऐजैन्ट आनन्द चौहान के बैंक खातों में भारी कैश जमा होना तथा उस पैसे का जीवन बीमा पालिसीयां खरीदने में निवेश किया जाना बना था। जब आयकर ने आनन्द चौहान को लेकर जांच शुरू की तो प्रारम्भ में 22-11-2011 को उसने इस पैसे को अपने परिवार का पैसा बताया लेकिन बाद इसे वीरभद्र के सेब बागीचे की आय तथा अपने को बागीचे का प्रबन्धक बताते हुए इस आश्य का वीरभद्र सिंह के साथ 15-6-2008 को हस्ताक्षरित एक एमओयू की फोटो कापी भी पेश कर दी । यह एमओयू आने से पूरे मामले का आकार प्रकार ही बदल गया। इसे बागीचे की आय प्रमाणित करने के लिये 2-3-2012 को वीरभद्र ने तीन वर्षों की आयकर रिटर्नज संशोधित कर दी। इस संशोधन में तीन वर्षो की मूल आय 47.35 लाख को बढ़ाकर 6.56 करोड़ दिखाया गया।
इस पर जीवन बीमा पालिसीयों का पूरा ब्योरा एलआईसी की संजौली ब्रांच से तलब किया गया। पेश किये गये एमओयू के स्ंटाप पेपर की जांच की गयी। सेब परवाणु के व्यापारी चुन्नी लाल को बेचा बताया गया इसके लिये चुन्नी लाल भी जांच के दायरे में आ गया। इतने सेब की ढुलाई के लिये जो वाहन प्रयोग में लाये गये उनकी प्रमाणिकता के लिये परिवहन विभाग से रिपोर्ट ली गयी। सेब की ढुलाई में लगे वाहनों की एन्ट्री एपीएमसी के रिकार्ड में भी दर्ज होती है। इस पर एपीएमसी से रिपोर्ट ली गयी है। वीरभद्र का बागीचा 105 बीघे का है और इसमें 3500 पेड़ होने तथा उनसे 35000 वाक्स के उत्तपादन का दावा किया गया है। इस दावे की प्रमाणिकता के लिये निदेशक उ़द्यान विभाग से रिपोर्ट ली गयी है। इस तरह एलआईसी, स्टांप पेपर विक्रेता और नासिक की सिक्योरिटी प्रैस उ़द्यान विभाग, एपीएमसी और परिवहन विभाग आदि से जो रिपोर्ट मिली है उससे वीरभद्र, आनन्द चौहान और चुन्नी लाल के इस बारे में सारे दावे आधारहीन प्रमाणित होते हैं और संभवतः इसी कारण सीबीआई वीरभद्र के जबाव से सन्तुष्ट नही है। सीबीआई की जांच की अवधि मूलतः 28-05-2009 से 26-6-2012 के बीच की रही है और इसी अवधि में वीरभद्र केन्द्र में मन्त्री थे।
वीरभद्र सिंह और उनके परिवार के सदस्य आनन्द चौहान के माध्यम से जीवन बीमा पालिसीयां ले चुके है यह उनका रिकार्ड है। इन पालिसीयों के लिये आनन्द चौहान ने अपने बैंक खातों के अतिरिक्त एक कनुप्रिया राठौर और मेघराज शर्मा के खातों का भी इस्तेमाल किया है। बागीचे के प्रबन्धन के 15-6-2008 और 17-6-2008 को दो एमओयू सामने आये हैं। 15-6-2008 को आनन्द चौहान और वीरभद्र के बीच एमओयू साईन होता है। लेकिन 17-6-2008 को विश्म्बरदास के साथ वीरभद्र के मैनेजर राम आसरे यह एग्रीमेन्ट साईन करते हैं। इनमें इस्तेमाल हुए स्टांप पेपरों पर कंटिग और ओेवर राईटिंग है और मूलतः यह एक लायक राम के नाम हैं जो इन्हें यूको बैंक कोटखाई मंे पेश करता है। जिस तारीख को यह एमओयू साईन होते हैं उस तारीख को यह स्टांप पेपर नासिक प्रैस में हैं। आनन्द चौहान के खातों में सारा पैसा कैश जमा होता है। मई 2010 में चुन्नी लाल आनन्द चौहान का एक करोड़ की कैश एडवांस पेमैन्ट करता है जांच में वह पैसा उसी के कार्यालय में अलग-अलग 13 फर्मो द्वारा दिया जाना बताता है लेकिन जांच में यह फर्मे और पेमैन्ट प्रमाणित नही होती है। सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह हैे कि जीवन बीमा की सारी पालिसीयां 2007 से 2010 के बीचे ली गयी हैं विक्रमादात्यि के नाम भी इसी अवधि में कराड़ो की पालिसीयां हैं लेकिन जांच में यह सामने आया है कि 2010 तक विक्रमादित्य ने कभी आयकर रिटर्न नही भरी है उसने 2011 से रिटर्न भरना शुरू किया है। जबकि विक्रमादित्य के नाम पर 31-12-2010 को बीमा पालिसी तथा एफडीआर हैं। विक्रमादित्य के इस पैसे का स्त्रोत क्या है यह सवाल विक्रमादित्य और वीरभद्र सिंह दोनो के लिये कठिन है।
सीबीआई सूत्रों की माने तो अब इस मामले में प्रतिभा सिंह, आनन्द चैहान और चुन्नी लाल से पूछताछ की जायेगी। यह भी माना जा रहा है कि कुछ संपत्तियां विदेश में भी होने का सन्देह है और उसमें कुछ निकटस्थ रिश्तेदारों के नाम भी सामने आये हैं। इन लोगों से भी पूछताछ की तैयारी है वीरभद्र सिंह से अब ईडी पूछताछ करेगी और उसमें वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर को लेकर भी सवाल आयेगें।