धूमल-नड्डा की प्रतिस्पर्धा में भाजपा होगी दांव पर

Created on Wednesday, 29 June 2016 05:26
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। भाजपा प्रदेश का अगला चुनाव किसके नेतृत्व में लडे़गी यह सवाल नड्डा के उस ब्यान के बाद चर्चा का विषय बना है जब उन्होने प्रदेश की राजनीति में वापिस आने के संकेत दिये है। नड्डा के ब्यान पर धूमल और अनुराग की प्रतिक्रियाओं ने भी इस सवाल को और हवा दी है। इस परिदृश्य में यदि भाजपा का आकलन किया जाये तो जो तस्वीर उभरती है उसमें भाजपा के लिये अगला चुनाव बहुत आसान नजर नही आता है। क्योंकि धूमल के दोनों कार्यकालों में जिस तरह से वीरभद्र को घेरा गया उसमें भले ही वीरभद्र का कोई ठोस नुकसान नहीं हो पाया हो लेकिन वीरभद्र धूमल और उसकी सरकार का कोई नुकसान नहीं कर पाये। हांलाकि धूमल के पहले कार्यकाल में सरकार पंडित सुखराम की बैसाखीयों के सहारे सत्ता में आयी जबकि सुखराम एक बार स्वयं भी मुख्यमन्त्राी बनने की ईच्छा पाले हुए थे। बल्कि एक बार तो भाजपा के शान्ता समर्थकों ने विधानसभा सत्रा का वायकाट करके अपने मनसूबे जग जाहिर भी कर दिये थे।
धूमल उस समय न केवल उस राजनीतिक संकट से ही निकले बल्कि हिमाचल विकास कांग्रेस को ही अपना बोरिया-बिस्तर समेटने तक पहुंचा दिया। दूसरे कार्यकाल में वीरभद्र को सीडी के संकट में ऐसा लेपटा कि वीरभद्र केन्द्र में मन्त्री होकर भी धूमल और उनकी सरकार का कुछ नही बिगाड़ पाये। वीरभद्र ध्ूामल के दोनों कार्यकालों में मिले जख्मांे की टीस से आज तक कराहते हैं। इन्ही जख्मों के दंश से यह आशंका थी कि वीरभद्र इस बार हर हालात में धूमल से हिसाब किताब बराबर करने का प्रयास करेंगे। वीरभद्र ने इस दिशा में प्रयास भी किये। एचपीसीए को लेकर मामले बनाये। धूमल की संपत्तियों पर डिप्टी एडवोकेट जनरल का पद देकर शिकायत तक हासिल की। लेकिन यह सब कुछ होते हुए भी धूमल ने ऐसी व्यूह रचना की जिसके आगे वीरभद्र पूरी तरह परस्त हो गये। बल्कि हिमाचल आॅन सेल के जिस आरोप को चुनावों में बड़े ब्रहमास्त्र के रूप में प्रयोग किया उसका एक मामला तक नहीं बन पाया। इस तरह धूमल ने वीरभद्र के इस शासन काल में वीरभद्र को उसी के हथियारों से मात दी उसे धूमल की सफलता ही माना जायेगा।
लेकिन इसी गणित में वीरभद्र भी भाजपा पर भारी पडे हैं। क्योंकि नम्बर, दिसम्बर 2010 में जिस तरह इस्पात उद्योग समूह पर हुई छापेमारी में मिली डायरी के खुलासों का बढ़ाकर धूमल परिवार ने आज उसे सीबीआई और ईडी की जांच तक तो भले ही पहुंचा दिया है लेकिन वीरभद्र को सत्ता से बेदखल करने में सफल नहीं हो पाये हंै। धूमल की प्रदेश में समय पूर्व चुनाव होने की सारी भविष्य वाणियां हवा-हवाई ही साबित हुई हैं । हालांकि इन जांचो को लेकर वीरभद्र धूमल, जेटली और अनुराग को बराबर कोसते आ रहे हैं। वीरभद्र के खिलाफ चल रहे इन मामलों को अन्तिम अंजाम तक पहुंचाना एक तरह से केन्द्र सरकार की जिम्मेदारी है आज केन्द्र में भाजपा के नड्डा एक बड़े और प्रभावी मंत्री है। शान्ता भले ही मंत्री नहीं है लेकिन केन्द्र में उनका अपना प्रभाव है। लेकिन यह एक संयोग ही है कि प्रदेश के तीन सासंद शांता, कश्यप और रामस्वरूप शर्मा वीरभद्र के मामलें में लगातार खामोशी ही अपनाये हुए हंै। जबकि अनुराग सीबीआई पर धीमा होने का आरोप लगा चुके हैं ऐसे में भाजपा के अन्दर वीरभद्र के प्रति नरम रूख अपनाना भी भाजपा और कांग्रेस को एक बराबर धरातल पर ला कर खड़ा कर देगा। क्योंकि धूमल के शासन कालों भाजपा के काग्रेंस के खिलाफ सौंपे आरोप पत्रों पर कोई कारवाई नहीं हो पायी है।
बल्कि संभवतः इसी प्रतिस्पर्धा के चलते आज भाजपा वीरभद्र के खिलाफ कुछ बड़ा नहीं कर पा रही है। जिस भाजपा ने ईडी के स्थानीय सहायक निदेशक द्वारा मुख्यमन्त्री के प्रधान निजि सचिव को एक शिकायत की जांच के संद्धर्भ बुलाये जाने पर हुए पत्राचार पर विधानसभा सत्रा नहीं चलने दिया था वही भाजपा मुख्यमन्त्री की सीबीआई में हुई पन्द्रह घन्टो की पूछताछ के बावजूद खामोश बैठी है। अब भाजपा ने फिर सरकार के खिलाफ आरोप पत्रा लाने की बात की है। इस आरोप पत्र में कितनी आक्रामकता रहेगी यह तो इसके आने पर पर ही पता चलेगा। लेकिन अपने आरोप पत्रों के आरोपों को प्रमाणित करने के लिये क्या भाजपा अदालत तक जाने का साहस करेगी? पूर्व की परम्परा को देखते हुए इसकी उम्मीद कम है बल्कि भाजपा और कांग्रेेस में आपसी सहमती केवल भ्रष्टाचार के मुद्दों पर ही सामने लाती है। क्यांेकि दोनो ने सत्ता में आने पर ऐसे आरोप पत्रों को रद्दी की टोकरी में डालने से अधिक कुछ नही किया है। ऐसे में क्या जनता भाजपा द्वारा लाये जा रहे आरोप पत्रा को गंभीरता से लेगी इसको लेकर सन्देह है। बल्कि रस्मी आरोप पत्रों की संस्कृति इन पर भारी पड़ सकती है। इस पृष्ठभूमि में धूमल-नड्डा के खेमों मे बंटती भाजपा के लिये भविष्य कोई बहुत सुरक्षित नही कहा जा सकता।