शिमला/शैल। हिमाचल पथ परिवहन निगम के कर्मचारियों की हड़ताल पर प्रदेश उच्च न्यायालय ने प्रतिबन्ध लगा रखा है। लेकिन यह कर्मचारी इन आदेशों को नज़रअन्दाज करके हड़ताल पर चले गये। उच्च न्यायालय के आदेशों के बावजूद हड़ताल पर जाने के लिये इन कर्मचारियों के खिलाफ अदालत की अवमानना का मामला बन गया। उच्च न्यायालय ने अपने आदेशों की अनदेखी किये जाने का कड़ा संज्ञान लेते हुये प्रबन्धन को हड़तालियों से सख्ती से निपटने के आदेश जारी कर दिये। उच्च न्यायालय की सख्ती को देखते हुये कर्मचारियों ने हड़ताल खत्म कर दी। लेकिन हड़ताल का नेतृत्व कर रहे तीस कर्मचारी नेताओं ने अन्य कर्मचारियों के साथ हड़ताल समाप्त नहीं की। कर्मचारी नेताओं के इस कदम पर प्रबन्धन ने उच्च न्यायालय के आदेशों की अनुपालना करते हुए इन्हे बर्खास्तगी के आदेश थमा दिये।
बर्खास्तगी के आदेश मिलने पर चैबीस कर्मचारी नेताओं ने प्रबन्धन को अपना-अपना शपथ पत्रा देकर हड़ताल के लिये क्षमा याचना कर ली। प्रबन्धन की इसी क्षमा याचना पर बोर्ड की बैठक में बर्खास्तगी के आदेश वापिस लेकर इन 24 नेताओं को पुनः सेवा में बहाल कर दिया है। लेकिन इसमें परिवहन मजदूर संघ के अध्यक्ष शंकर सिंह ठाकुर और पांच अन्य कर्मचारी नेताओं ने प्रबन्धन को ना कोई शपथ पत्रा दिये न क्षमा याचना की न ही बर्खास्तगी के आदेश की विधिवत अपील दायर की। इसलिये इन छः लोगों की बर्खास्तगी अभी तक बरकरार चल रही है।
हड़ताली नेताओं के खिलाफ उच्च न्यायालय मंे अवमानना का मामला चल रहा है। अदालत ने शंकर सिंह के जमानती वारंट तक जारी कर दिये हैं। जिन कर्मचारियों ने शपथ पत्र देकर क्षमा याचना की है उन्होंने अपने शपथ पत्रों में इस हड़ताल के शंकर सिंह पर उन्हें गुमराह करने का आरोप लगाया है। हड़ताली कर्मचारियों की बर्खास्तगी के समय इन्हे कोई भी कारण बताओ नोटिस जारी करके इन्हे अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया गया था। अदालत के आदेशों का सहारा लेकर बर्खास्तगी की कारवाई कर दी गई थी। क्या अदालत के आदेशों के नाम पर बिना कारण बताओ नोटिस जारी करके कर्मचारियों को बर्खास्त किया जा सकता था? क्या अदालत के आदेश की आड मंे तय प्रक्रिया को नजरअंदाज किया जा सकता था? जिन कर्मचारियोे को बर्खास्त कर दिया गया था। क्या उन्हे विधिवत अपील फाईल किये बिना केवल शपथ पत्र पर ही बहाल की किया जा सकता था? भारतीय मंजदूर संघ पर लगाये गये गुमराही के आरोप की क्या जांच नही की जानी चाहिए थी? क्या हड़ताल पर जाने के लिये किसी कर्मचारी को गुमराह किया जा सकता है?
शंकर सिंह का ताल्लुक भारतीय मजदूर संघ से है और बीएमएस भाजपा की मजदूर ईकाइ है। इस तरह गुमराही का यह आरोप सीधे भाजपा और आरएसएस पर आ जाता है। इस आरोप पर भाजपा और संघ ने शंकर सिंह को अदालत में यह लडाई लड़ने के लिये हर प्रकार की सहायता उपलब्ध करवाने का प्रबन्ध कर दिया है। माना जा रहा है कि शंकर सिह और उसके साथियों ने पिछले केन्द्रिय स्वास्थ्य मन्त्री जे.पी. नड्डा के समाने सारी स्थिति रखी थी जिस पर नड्डा ने उच्च न्यायालय में इस लड़ाई को लड़ने के लिये पूरे प्रबन्ध किये जाने के निर्देश संगठन को दिये हैं। यह भी माना जा रहा है कि इस लड़ाई के माध्यम से भाजपा प्रदेश के कर्मचारियो में अपने संगठन को आगे बढ़ाने का आधार भी जुटा सकती है इसके लिये प्रदेश स्तर पर एक बड़े कर्मचारी आन्दोलन की तैयारी भी की जा रही है।