खरीद नीति मे बदलाव के कारण 14 रू प्रति किलो मंहगा मिलेगा सरसों तेल

Created on Saturday, 20 August 2016 13:57
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। प्रदेश सरकार पीडीएस के तहत दिये जाने वाले राशन की खरीद नागरिक आपूर्ति निगम के माध्यम से करती है इसके लिये नीति निर्धारित मन्त्री परिषद करती है। पीडीएस के तहत राशन इसलिये दिया जाता है ताकि उपभोक्ता को यह राशन सस्ता मिल सके। क्योंकि जब किसी चीज की खरीददारी सरकार करेगी तो उसका आर्डर थोक में होगा। थोक में आर्डर होने के कारण कीमत का कम होना स्वाभाविक है। इसलिये लोगों को सस्ता राशन देने को सरकार अपनी उपलब्धि मानती है। लेकिन जब सरकार की अपनी गलती से चीज की कीमत बढ़ जाये तो उस स्थिति में दोष किसको दिया जाये। किसके सिर इसकी जिम्मेदारी डाली जाये। यह सवाल इन दिनों वीरभद्र सरकार से जवाब मांग रहा है।
सरकार ने प्रदेश के लाखों उपभोक्ताओं को सस्ता राशन उपलब्ध करवाने की नीति बना रखी है। इस नीति के तहत सरकार सरसों का तेल और रिफाइंड की खरीद करती है इसके लिये नीति थी कि सरसों तेल और रिफांइड के लिये नागरिक अपाूर्ति निगम एक साथ टैण्डर आमन्त्रित करेगी। दोनों के टैण्डर खुलने पर कीमतों का आकलन करने पर यदि दोनों की कीमतों में दस रूपये तक का अन्तर होगा तो मंहगा होने पर भी खरीद लिया जायेगा। इस नीति के तहत तेल खरीद के मई में टैण्डर आमन्त्रित किये गये और खोले गये। इन टैण्डरो में रिफाईड का रेट 67 रूपये और सरसों तेल का रेट 86 रूपये प्रति किलो आया। नीति के मुताबिक दोनों की कीमतों में दस रूपये से ज्यादा का अन्तर होने के कारण रिफाइंड की खरीद की जानी थी। लेकिन जब इस आश्य का प्रस्ताव तैयार होकर मन्त्री के सामने रखा गया तो मन्त्री ने उस पर यह मंशा जाहिर की कि उपभोक्ता रिफाइंड से ज्यादा सरसों का तेल ज्यादा पंसद करते हैं। इसलिये रिफाइंड के स्थान पर सरसों का तेल की खरीद की जानी चाहिये।
मंत्राी की मंशा को पूरा करने के लिये खरीद नीति में बदलाव किया जाना था और टैण्डर खुलने के बाद आपूर्ति निगम के अपने स्तर पर यह बदलाव किया नही जा सकता था। इसके लिये पूरे मामले को मन्त्री परिषद के सामने रखने की बाध्यता आयी और 22 जून को यह मामला मन्त्री परिषद में रखा गया। मन्त्री परिषद ने तीन माह के लिये सरसों तेल के लिये फिर से टैण्डर मंगवाये गये। नये आये टैण्डरों में सरसों तेल की न्यूनतम रेट 99.39 रूपये और उसके बाद 99.99 रूपये आया है सयोंग वश 99.99 रूपये रेट उसी फर्म का आय है जिसने मई में 86 रूपये रेट दिया था। लेकिन अभी तक यह फैसला नही हो पाया है कि स्पलाई आर्डर 99.39 पर दिया जाये या 99.99 रूपये पर।
फैसला कुछ भी लिया जाये लेकिन इसमें उपभोक्ता को 14रूपये प्रति किलो के अधिक दाम चुकाने पडेंगें उपभोक्ताओं को सामूहिक तौर पर छः करोड़ से अधिक की चपत लग जायेगी। स्पलायर को छः करोड़ का लाभ मिल जायेगा। यहां पर यह सवाल उठता है कि खरीद नीति को बदलने की आवश्यकता क्यों आ पड़ी? यदि खरीद बदलने की आवश्यकता समझी गयी तो सरकार के पास मई में 86 रू0 किलो का जो रेट आया था मन्त्री परिषद ने उसी का अनुमोदन क्यों नहीं कर दिया। अब जो उपभोक्ता को प्रति किलो 14 रूपये की अधिक कीमत चुकानी पडेगी उसके लिये कौन जिम्मेदार है विभाग का प्रशासनिक तन्त्र संबधित मन्त्री या फिर पूरी मन्त्री परिषद इससे सरकार का कोई नुकसान नही है केवल उपभोक्ता का नुकसान और लाभ सीधे स्पलायर का है।