ठियोग रोहडू सड़क के गिर्द केन्द्रीत होती शिमला की राजनिति

Created on Monday, 12 September 2016 05:52
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। ठियोग कोटखाई-हाटकोटी रोहडू रोड़ की हालत को लेकर पूर्व मन्त्री नरेन्द्र बरागटा के आरोपों


को सिरे से नकारते हुए मुख्य संसदीय सचिव रोहित ठाकुर ने दावा किया है कि इस सड़क का 80% कार्य पूरा हो चुका है और शेष बचे कार्य को भी जून 2017 तक पूरा कर लिया जायेगा। रोहित ठाकुर ने यह भी दावा किया कि क्षेत्र के विकास के लिये वह अब तक नावार्ड के माध्यम से सौ करोड़ की योजनाएं स्वीकार करवा चुके हैं और उन पर काम भी कई स्थानों पर पूरा हो चुका है व अन्य पर काम चल रहा है। यह दावे ठाकुर ने एक पत्रकार वार्ता करते हुए पूर्व मन्त्री बरागटा को चुनौती दी कि वह इस सेब सीजन के दौरान एक सप्ताह तक इस सड़क के बन्द रहने के अपने आरोपों को प्रमाणित करें। ठाकुर ने आंकडे रखते हुए बरागटा को याद दिलाया कि भाजपा सरकार के कार्यकाल में उनके बागवानी मन्त्री रहते हुए कैसे सेब के हजारों बैग नष्ट करने पडे़ थे। उन्होने स्मरण दिलाया कि भाजपा शासन के दौरान इस सड़क का केवल 18% काम ही पूरा हो पाया था। बरागटा जब भाजपा शासन में मन्त्री थे उसी दौरान 2010 में जुब्बल के एक देवेन्द्र चैहान ने प्रदेश उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर कर इस सड़क की स्थिति की ओर सरकार का ध्यान आकर्शित किया था।

स्मरणीय है कि 80 किलोमीटर लम्बी इस सड़क की रिपेयर का काम जून 2008 में शुरू हुआ था और इसके पूरा होने का लक्ष्य जून 2011 रखा गया था। इस काम केे लिये अन्र्तराष्ट्रीय विकास ऐसोसियेशन आई वीआरडी सेे ़ऋण लिया गया है। इसके लिये अन्र्तराष्ट्रीय टैण्डर के माध्यम से चीन कीे कंपनी लौंजियान कोे 228.26 करोेड़ का ठेको दिया गया था और इसमें अमेरिका कीे लूईस बर्गर ग्रुप की सेवाएं बतौर कंसलटैन्ट ली गयी थी। जब यह कंपनी तय समय सीमा के भीतर अपना काम पूरा नही कर पाई तो धूमल सरकार ने इसका कार्यकाल बढ़ाकर 14.4.2012 कर दिया था।
लेेकिन मार्च 2012 में जब इसके कार्य का आकलन किया गया तब यह कंपनी केवल 13.49 प्रतिशत काम ही पूरा कर पायी थी। कंपनी ने समय पर काम पूरा न कर पाने के लियेे समय समय पर जो कारण गिनायेे है। उनमें दोे तीने मामलों में अदालत सेे स्टे जमीन अधिग्रहण के बाद कुछ लोगों को मुआवजे अदायगी न होे पाना औैर सड़क के किनारेे 875 पेडोें के न काटे जाने जैैसे कारण प्रमुख रहें है। लेकिन इसीे सड़क के मामले मेेेे वर्ष 2010 में जुब्बल केे देेवेेन्द्र चौहान ने एक जनहित याचिका भी प्रदेश उच्च न्यायालय में दायर की थीे। इस याचिका की सुनावाई के दौैरान उच्च न्यायालय ने 20.5.2011 को भू अधिग्रहण अधिकारी कोेेे जमीन के मुआवजों केेे मामलों पर एक माह केे भीतर शपथ पत्र दायर करनेे तथा कंजरवेेटर फारेस्ट भारत सरकार चण्डीगढ़ को पेेेडो के संद्धर्भे में आवश्यक स्वीकृतियां देनेे के निर्देंश दिये थे। उच्च न्यायालय के इन निर्देशोेें पर भू अधिग्रहण अधिकारी नेे 15,46,22031 रूपयेेे का मुआवजा तुरन्त जमा करवाया। जिसमें से 13,36,66,867 रूपये का लोगों को भुगतान भी तुरन्त हो गया। पेडों केे संद्धर्भ में भी तीन दिन के भीतर सारी कारवाई पूरीे हो गयीे। उच्च न्यायालय ने सत्र न्यायधीश को भी निर्देश दिये कि इस सड़क के संवंध में आयी सारी याचिकाओं का निपटारा एक माह के भीतर कर दिया जाये और ऐेसा हो भी गया। उच्च न्यायालय के निर्देशो पर एक माह के भीतर सारे लंबित मामलेे हल हो गए थेे।
उच्च न्यायालय के 20.5.2011 के निर्देशों के बाद 2.7.2012 को जो टिप्पणी इसी मामले पर उच्च न्यायालय ने की है चौकाने वाली है उच्च न्यायालय ने 2.7.2012 को कहा है कि that there is hardly tangible progress in work,  apparently, neither the  contractor nor the Government is serious in the matter, what action the Govt. has taken in the mattter is not quite clear despite the unsatisfactory  progress in the execution of work. The contractor has been raising one or the other evasive objection to   justified their in-action, instead or taking proper action for completing the work as per contract. It is high time that the Govt. view the matter with required seriousness
उच्च न्यायालय के इन निर्देशों के बाद 2013 में चीन की इस कंपनी से ठेका रद्द करके अब एक चड्डा एण्ड चड्डा कंपनी को शेष बचा हुआ काम 350 करोड़ में दिया गया। अभी इस सड़क की रिपेयर की लागत 132 करोड़ बढ़ चुकी है और इसके पूरा होने तक और बढ़ने की संभावना बनी हुई है। इस बढ़ी हुई लागत के लिये कौन जिम्मेदार है इसकी जबावदेही तय करने के लिये न तो सरकार ने और न ही उच्च न्यायालय ने कोई ध्यान दिया हैै।
सड़क के काम मे देरी क्यों हो रही है इसको लेकर विधानसभा में भाजपा शासन में भी प्रश्न उठते रहे है और आज कांगे्रस शासन मे भी उठ रहें है। इस सड़क के कारण दुर्घटनाएं हो चुकी है और उनमें जानमाल का कितना नुकसान हो चुका है इसके आंकडेे़ भी उच्च न्यायालय में याचिकाकर्ता अपने शपथ पत्र के माध्यम से रख चुके है। यह सड़क कभी स्टेट रोड़ हुआ करती थी जिसे भाजपा शासन में बदल कर जिला रोड़ कर दिया गया था। स्टेट रोड़ से जिला रोड़ करके इसका स्तर और अहमियत क्यांे घटाई गयी इस पर कभी किसी भाजपा नेता ने कोई सवाल नहीं उठाया है। जबकि इस सेब बहुल क्षेत्र के लिये यह सड़क मुख्य लाईफ लाईन थी और आज भी है। यह सवाल आज इसलिये प्रसांगिक और महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि भाजपा ने इस सड़क को लेकर रोहडू से लेकर शिमला तक पद यात्रा का आयोजन किया था और इस आयोजन के बाद राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा तथा नरेन्द्र बरागटा ने उच्च न्यायालय मे एक याचिका भी दायर कर दी।
नेरन्द्र बरागटा की इस याचिका को प्रदेश उच्च न्यायालय ने जनहित मानने से इन्कार करते हुए उन्हें इससे बाहर कर दिया है। अदालत ने बरागटा की याचिका को राजनीति से प्रेरित करार दिया है। अदालत ने साफ कहा कि Applying  the above tests to the facts of the present case and while keeping in view paragraph. 1 of the writ petition that the petitioner was an  ex-Minister, the writ petition cannot be retained as public interest litigation on behalf of the petitioner.
भाजपा शासन में इस सडक के काम देरी क्यों हुई? इसके लिये सरकार की ओर से काम कर रही कंपनी को कैसा और कितना सहयोग मिला है इसका खुलासा इसी याचिका में 22.2.2011 को उच्च न्यायालय में आये चीफ इन्जिनियर के शपथ पत्र से हो जाता है। इस परिदृश्य में आज बरागटा द्वारा इस सड़क को लेकर राजनीति करना निश्चित तौर पर भाजपा में घटे सब कुछ को जन चर्चा का विषय बना देगा यह तय है।