शिमला/शैल। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविन्दर सिंह सुक्खु के पास बेहिसाब बेनामी संपत्ति होने के आरोप लगायें है धूमल सहित कुछ अन्य भाजपा नेताओं ने। भाजपा नेताओं ने यह भी दावा किया है कि यह आरोप उनके आने वाले आरोप पत्र में प्रमुखता से दर्ज रहेंगे। यह आरोप लगते ही मुख्य मन्त्री वीरभद्र सिंह ने भी इनकी पड़ताल करवाने का एलान कर दिया। जैसे ही यह आरोप उछले सुक्खु ने भी तुरन्त प्रभाव से पलटवार करते हुए धूमल को चुनौती दे दी कि या तो इन आरोपों को प्रमाणित करे या राजनीति से सन्यास ले लें। इसी के साथ सुक्खु ने यह भी दावा किया कि उनके पास जो भी चल अचल संपत्ति है उसका उन्होने 2012 के चुनाव शपथ पत्र में पूरा खुलासा किया हुआ है और यदि इस चुनाव पत्र से हटकर कोई संपत्ति प्रमाणित हो जाती है तो वह राजनीति से सन्यास ले लेंगे। सुक्खु की चुनौती के बाद भाजपा नेताओं की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है और न ही वीरभद्र सिंह का पड़ताल का दावा आगे बढा है।
स्मरणीय है कि मुख्य मन्त्री वीरभद्र सिंह इस समय संपत्ति प्रकरण में ही केन्द्र की ऐजैन्सीयों सीबीआई और ईडी की जांच झेल रहें है। नेता प्रतिपक्ष और पूर्व मुख्यमन्त्री प्रेम कुमार धूमल भी संपत्ति प्रकरण मे विजिलैन्स की आंच झेल रहे हैं इन दोनो नेताओं के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के आरोप है और अब इस पंक्ति में कांग्रेस अध्यक्ष का नाम भी जुड़ गया है किसके खिलाफ लगे आरोप कितने प्रमाणित हो पाते है यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन सुक्खु ने 2012 का विधानसभा चुनाव लड़ते समय अपने शपथपत्र में अपनी संपत्ति का जो ब्योरा दिया है उसके मुताबिक पत्नी और दो बच्चों सहित इस परिवार के पास चल और अचल कुल संपति करीब तीन करो़ड के आस पास हैं इस संपति में अपने पुश्तैनी गांव सहित शिमला और बद्दी की संपति भी शामिल है यह शपथ पत्र पाठकों के सामने रखा जा रहा है बहरहाल इस शपथ पत्र से हटकर और किसी संपति का खुलासा सामने नहीं आया है और इससे अधिक संपति के खुलासे तो कई ऐसे विधायकों ने कर रखे है जो पहली बार ही चुनकर आये हैं बल्कि अधिकांश विधायकों ने तो अपनी पत्नीयों के नाम अपने से अधिक दिखा रखी है।
ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि इस वक्त सुक्खु के खिलाफ यह आरोप क्यां लगे? क्या इनके पीछे कांग्रेस की अपनी राजनीति हावि है? क्या भाजपा सुक्खु और वीरभद्र के रिश्तों की तलबी को और हवा देना चाहती है? इन सवालों की निष्पक्ष पड़ताल से यह स्पष्ट हो जाता हैं कि सुक्खु के अध्यक्ष पद संभालते ही सरकार में एक व्यक्ति एक पद का मुद्दा उछला था। अभी पिछले दिनों संगठन में सचिवों की नियुक्ति को लेकर जो विवाद उछला था। उसमें त्यागपत्र तक की नौबत आ गयी थी। वीरभद्र संगठन के फैसलों से कभी भी ज्यादा सहमत नही रहे है। संगठन के लिये बनाये गये जिलों को लेकर वीरभद्र की नाराजगी जगजाहिर है कुल मिलाकर वीरभद्र और सुक्खु में किसी न किसी मुद्दे पर मदभेत बाहर आते ही रहे है। हालांकि हर बार इन मदभेदों के बाद दोनो नेताओं में बैठकें भी होती रही है। बल्कि जब वीरभद्र के विश्वस्तों ने वीरभद्र ब्रिगेड बनाया था उस समय सुक्खु ने कुछ लोगों के खिलाफ अनुशासनात्मक कारवाई का चाबुक भी चला दिया था। सुक्खु ने ऐसी कारवाई का साहस इस लिये दिखाया था क्योंकि उनके अध्यक्ष बनने में वीरभद्र की भूमिका नहीं के बराबर रही हैं ऐसे में कल जब विधानसभा चुनावों को टिकटों के बंटवारे का प्रश्न आयेगा उस समय अध्यक्ष की भूमिका ज्यादा प्रभावी रहेगी। जबकि दूसरी ओर से वीरभद्र, विक्रमादित्य के माध्यम से टिकटों के मामले में कांग्रेस हाईकमान को भी अप्रत्यक्षतः आंखे दिखा चुके है। इस परिदृश्य में आज वीरभद्र की पहली राजनीतिक प्राथमिकता संगठन पर कब्जा करना हो जाती है। इस दिशा में हर्ष महाजन, गंगुराम मुसाफिर, सुधीर शर्मा जैसे नेताओं के नाम प्रेषित होते रहे हैं लेकिन इस बार चिन्तपुरनी के विधायक और पूर्व अध्यक्ष कुलदीप कुमार का नाम लगभग स्वीकृति के मुकाम तक पहुंच गया था। लेकिन उच्चस्थ सूत्रों के मुताबिक कुलदीप कुमार की फाईल प्रदेश प्रभारी अंबिका सोनी के यहां से ऐसे गायब हुई जिसका कोई अता-पता ही नहीं चल पाया है। चर्चा है कि वीरभद्र सिंह ने इस फाईल के गुम होने को अपनी व्यक्तिगत राजनीतिक हार माना हैं इसके लिये वीरभद्र सिंह, सुक्खबिंदर सिंह सुक्खु और मुकेश अग्निहोत्री को अपरोक्ष में जिम्मेदार मान रहे हैं। चर्चा तो यहां तक है कि सुक्खु के खिलाफ आयी संपति की शिकायत और उस पर पड़ताल करवाने की घोषणा तथा अग्निहोत्री के महकमों के भीतर हुआ बड़ा परिवर्तन इस फाईल के गुम होने
का परिणाम है।