शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने वनभूमि पर हुए अवैध कब्जों का कड़ा संज्ञान लेते हुए इन कब्जों को तुरन्त प्रभाव से छुड़ाने के निर्देश दिये हैं। उच्च न्यायालय ने प्रदेश के वन विभाग के प्रमुख को इसकी व्यक्तिगत स्तर पर निगरानी करने के निर्देश दिये हैं और 15-11-2016 को इस संद्धर्भ में रिपोर्ट तलब की है उच्च न्यायालय के फैंसले और निर्देशों पर हिमालय नीति अभियान ने यह कहकर एजराज उठाया है कि जब तक वन अधिकार कानून के प्रावधानों की अनुपालना नहीं हो जाती है। तब तक नाजायज़ कब्जों को लेकर कारवाई नही की जा सकती। हिमालय नीति अभियान ने सरकार पर भी आरोप लगाया है कि उसने न्यायालय के सामने इस पक्ष को सही तरीके से नहीं रखा है। हिमालय नीति अभियान ने इस संबंध में मुख्यमन्त्री वीरभद्र, केन्द्रिय आदिवासी मन्त्रालय के मन्त्री और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहूल गांधी को भी पत्र लिखा है। हिमालय नीति अभियान ने लिखा है कि हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने CWPIL No.17/2014 a/w CWP No.3141/2015, COPC No.161/2012 and CWPIL No.9/2015 में दिनांक 18.10.2016 को वन तथा राजस्व भूमि पर दस बीघा से ज्यादा के कब्जे की बेदखली के आदेश जारी किए और अगली सुनवाई जो 15 नवम्बर को होगी तक बेदखली की पूरी रिपोर्ट कोर्ट में पेश करने को कहा। ऐसी जानकारी है कि कोर्ट के दबाव में वन और राजस्व विभाग 1 नवम्बर से वन निवासियों की बेदखली की बड़ी मुहिम चलाने जा रहे हैं जिस बारे में स्थानीय अधिकारियों को निर्देश दिए जा रहे हैं।
उच्च न्यायालय में वन विभाग ने वन भूमि पर कब्जे की निम्न रिर्पोट पेश कीः
राजस्व विभाग ने सभी 12 जिलों में 4299 मुकद्दमों के चलान किए, जिन में 1277 मुकद्दमों पर फैसले हो चुके हैं, जबकि 908 कब्जे के मुकद्दमों की बेदखली की जा चुकी है।
उच्च न्यायालय ने Principal Chief Conservator of Forests, (HoFF) को व्यक्तिगत तौर पर कार्यवाही की निगरानी करने का निर्देश दिया और यह खास कर सुनिश्चित करने को कहा कि शिमला व कुल्लू में वन व सरकारी भूमि पर कबजों की बेदखली का आप ने जो निर्धारित समय का वादा किया है के अन्दर कार्य संम्पन किया जाए। Principal Chief Conservator of Forests, (HoFF), Himachal Pradesh, Conservator of Forests, Shimla, Rampur and Kullu, including all D.F.Os. of Districts Shimla and Kullu को निर्देश जारी किए गए कि वे अगली पेशी दिनांक 15.11. 2016 को प्रश्नों के जबाव देने के लिए व्यक्तिगत तौर पर कोर्ट में उपस्थित रहे।
हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने पहले ही Cr.MP(M)No. 1299 of 2008 के आदेश दिनांक 27.02.2016 को दस बिघा से कम के कब्जाधारकों के विरूध FIR दर्ज करने के आदेश दिए हैं जबकि अप्रैल 6, 2015 को CWPIL No.17 of 2014 इसी कोर्ट ने दस बिघे से अधिक के कब्जाधारकों की बेदखली के आदेश जारी किए थे।
इसी आड़ में वन विभाग ने 40 हजार से अधिक सेब व दुसरे फलदार वृक्ष काटे, अधिकतर छोटे किसानों के बगीचे तथा खेती नष्ट की, घर तोडे और बिजली व पानी के कनैक्शन पुरे प्रदेश में काट दिए।
परन्तु यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि प्रदेश सरकार के महा अधिवक्ता ने उच्च न्यायालय के यह समक्ष पक्ष नहीं रखा कि वन अधिकार कानून 2006 व सर्वोच्च न्यायालय के नियमगीरी के फैसले के तहत बेदखली पर तब तक अमल नहीं किया जा सकता, जब तक वन अधिकारों की मान्यता और सत्यापन की कार्यवाही पूरी नहीं हो जाती है।
वन तथा राजस्व विभाग द्वारा आदिवासी एवम् अन्य परम्परागत वन निवासियों की वन भूमि से HP& Public Premises & Land ( Eviction & Rent Recovery) Act, 1971 व भू-राजस्व अधिनियम 1954 की धारा 163 के तहत बेदखली की जा रही है। बहुत से लोगों के बिजली व पानी के कनैक्शन काट दिए हैं। ज्यादा तर बेदखलियां उन वन निवासियों की हुई जिन्होंने वर्ष 2002 में दखल/कब्जे के पट्टे के लिए आवेदन किया था।
ऐसे में ज्यादा तर बेदखलियां 13 दिसम्बर 2005 से पहले के दखल/ कब्जों की हुई है। जिस पर लोगों ने रिहायशी घर, खेती, बगीचा, घराट, गौशाला इत्यादी बना रखी है। ये लोग वन अधिकार कानून, 2006 के अंतर्गत आदिवासी एवं अन्य परंपरागत वन निवासी की श्रेणी में आते हैं। बहुत से प्रताडित लोग अनुसुचित जनजाती व जन जातीय श्रेणी से संबन्ध रखते हैं, जिन्हेंScheduled Castes and the Scheduled Tribes (Prevention of Atrocities) Act,1989- Amendment of section 3 (g)of the principal Act , 31st December 2015 के तहत संरक्षण प्राप्त है, जिसके नियम 14 अप्रैल 2016 से लागू हो चुके हैं।
वन अधिकार कानून, 2006 की धारा 4(5) के तहत वन भूमि से बेदखली तब तक नहीं हो सकती, जब तक वन अधिकार के दावे का सत्यापन और मान्यता की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय के दिनांक 18 अप्रैल 2013WRIT PETITION (CIVIL) NO- 180 OF 2011, Orissa Mining Corporation Ltd-Versus Ministry of Environment & Forest & Others के फैसले में भी आदेश दिया गया है कि जब तक वन अधिकार के दावों का सत्यापन और मान्यता की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती तब तक, अनुसूचित जन-जातीय व अन्य परंपरागत वन निवासी की वन भूमि से बेदखली नहीं की जा सकती और न ही वन भूमि का हस्तांतरण किया जा सकता है। कशांग (किन्नौर) की जल विद्युत परियोजना के मुकद्दमे Civil No 8345 Himachal Pradesh Power Corporation Ltd- versus Paryavaran Sanrakshan Samiti, Lippa पर National Green Tribunal ने 4 मई 2016 को ऐसा ही आदेश जारी किया है।
ऐसे में किसी भी राज्य के कानून जैसे भू-राजस्व अधिनियम 1954 की धारा 163 व HP Public Premises & Land (Eviction & Rent Recovery) Act,1971 के तहत वन निवासियों के विरुद्ध तब तक बेदखली की कार्यवाही व नाजायज कब्जा का मुकद्दमा नहीं चलाया जा सकता है, जब तक वन अधिकार के दावे का सत्यापन और मान्यता की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती।