क्या नेता घोषित किये बिना भाजपा 50 का लक्ष्य प्राप्त कर पायेगी

Created on Tuesday, 15 November 2016 06:21
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। प्रदेश भाजपा ने 2017 के विधानसभा चुनावों में 50 सीटें जीतने का लक्ष्य घोषित किया है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये अपनायी गयी रणनीति के तहत ही हिलोपा का भाजपा में विलय हुआ है यह स्पष्ट हो चुका है। क्योंकि इस विलय के बाद ही खुशीराम बालनाहटा, राकेश पठानिया, महन्त राय चौधरी, रूप सिंह ठाकुर और महेश्वर सिंह को कार्यसमिति में शामिल किया गया। कांग्रेस विरोधी वोटों का बंटवारा रोकने के लिये ही यह कदम उठाया गया है। बल्कि अब राजन सुशान्त और महेन्द्र सोफ्त को भी वापिस लाने के लिये संघ के स्तर पर प्रयास किये जाने की चर्चा है। पचास का लक्ष्य प्राप्त करने के लिये वीरभद्र सरकार के खिलाफ आरोप पत्र लाकर आक्रामकता अपनाने का प्रयास किया जायेगा। वैसे भाजपा का यह आरोप पत्र कितना आक्रामक होगा इसका पता तो 24 दिसम्बर को ही लगेगा जिस दिन यह सौंपा जायेगा। वैसे आरोप पत्रों को लेकर भाजपा की गंभीरता अब विश्वसनीय नही रही है। क्योंकि जब से वीरभद्र ने उनके विरूद्ध चल रही सीबीआई, ईडी और आयकर जांच को भाजपा में धूमल, जेटली और अनुराग ठाकुर का प्रायोजित राजनीतिक उत्पीड़न करार देना प्रचारित किया है तब से भाजपा वीरभद्र के इस प्रकरण पर एक दम मौन हो गयी है। भाजपा के अन्दरूनी सूत्रों के मुताबिक इस मौन का कारण वीरभद्र के मामलों को उछालने से उन्हें सहानुभूति मिलना माना जा रहा है। सूत्रों के मुताबिक वीरभद्र मामलों पर भाजपा द्वारा करवाये गये सर्वे से सहानुभूति का गणित समाने आया है इतने गंभीर मामलों पर भी सहानुभूति का अर्थ है कि या तो भाजपा को स्वयं ही इन मामलों की पूरी समझ नहीं है या फिर वास्तव में ही यह प्रायोजित राजनीतिक उत्पीड़न ही है। यह दोनों ही स्थितियां भाजपा के लिये घातक हो सकती है। इस परिदृश्य में पचास का लक्ष्य केवल दावा होकर ही रह जाये यह भी हो सकता है। क्योंकि भाजपा अपने पहले सौंपे दोनों आरोप पत्रों को तो स्वयं ही भूल चुकी है फिर जनता के याद रखने का तो सवाल ही नहीं उठता। फिर यह तय है कि इस विधानसभा चुनाव का केन्द्र बिन्दु वीरभद्र के गिर्द ही घुमेगा।
वीरभद्र के संद्धर्भ में भाजपा का बंटवारा जग जाहिर है। शान्ता वीरभद्र एक दूसरे के कितने प्रशसंक है यह किसी से छिपा नही है। केन्द्रिय स्वास्थ्य मन्त्री जगत प्रकाश नड्डा भी वीरभद्र के प्रति गंभीरता से आक्रामक नही हो पा रहे हैं। अब जब से नड्डा नेतृत्व की चर्चा में चल रही है तब से धूमल खेमा भी इस दिशा में खामोश हो गया है फिर अनुराग स्वयं ही बीसीसीआई में इतना उलझ गये हैं कि प्रदेश के लिये वह ज्यादा समय ही नही निकाल पा रहें है। धूमल को लेकर पार्टी के ही एक वर्ग ने उन्हें निकट भविष्य में राज्यपाल बनाये जाने की चर्चा फैला दी है। सूत्रों के मुताबिक जब पिछले दिनों एक दलित नेता को राज्यपाल बनाया गया था तब उन्हे बधाई देने पहुंचे एक ग्रुप में हिमाचल के भी एक-दो लोग थे। इन लोगों ने बधाई देने के उस मौके पर धूमल को राज्यपाल बनाने की गुहार लगा दी। यह लोग हरियाणा के खट्टर की तर्ज पर स्वयं को प्रदेश का अगला नेता मानने लग पडे़ हैं। इन लोगों को कभी धूमल ने ही राजनीति में स्थापित होने का अवसर दिया था। आज यह ही धूमल को राज्यपाल बनाने का ताना बुनने में लग गये हैं। इन लोगों का तर्क है कि जब हरियाणा में खट्टर हो सकते हैं तो फिर हिमाचल में भी खट्टर जैसा ही कोई क्यों नही हो सकता। लेकिन हरियाणा और हिमाचल में एक मुल अन्तर है कि हरियाणा में पहली बार भाजपा की सरकार बनी है। जबकि हिमाचल में चार बार सरकार बन चुकी है। भले ही शान्ता कुमार दोनों बार अपना कार्यकाल पूरा न कर पाये हों परन्तु धूमल ने दोनों बार सफलता पूर्वक अपना कार्यकाल पूरा किया है। हालांकि उन्हें दोनो बार अपनों के भी विरोध और विद्रोह का सामना करना पड़ा है।
आज भाजपा केन्द्र में सरकार होने और प्रदेश में वीरभद्र के मुख्यमन्त्री होते हुए भी लोकसभा चुनावों में चारों सीटों पर कब्जा करके थोड़ा प्लस में है। लेकिन यदि चुनावों से पहले किसी को नेता घोषित न किया गया तो स्थिति बहुत सुखद नही रहेंगी। क्योंकि आज प्रदेश में भाजपा का मुकाबला वीरभद्र से होने जा रहा है और कांग्रेस ने अगला चुनाव उन्ही के नेतृत्व में लड़ने की अभी से घोषणा कर रखी है। भाजपा जिस गंभीरता से अगले चुनावों के लिये रणनीति बनाने में लगी हुई है उसमें नेतृत्व के प्रश्न पर उसकी अस्पष्टता उसके सारे प्रयासों पर भारी पड़ सकती है। इस समय नेतृत्व के लिये शान्ता-धूमल के अतिरिक्त नड्डा का नाम भी प्रबल दावोदारों में गिना जा रहा है। इनके अतिरिक्त पूर्व अध्यक्ष सुरेश भारद्वाज और जय राम ठाकुर का नाम भी कुछ हल्कों में चर्चा में है। भाजपा की कोर कमेटी की कसौली में हुई बैठक में भी नेतृत्व का प्रश्न गौण रहा है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमितशाह 11 दिसम्बर को हिमाचल आ रहे हैं उस समय नेतृत्व के प्रश्न पर फैसला हो पाता है या नही यह तो उसी समय पता चलेगा। लेकिन यह तय है कि घोषित नेतृत्व के बिना कार्यकर्ताओें को पूरी आक्रामकता में बनाये रखना आसान नहीं होगा।