महिलाओं की शिकायत पर अदालत के निर्देशों के बावजूद एफआईआर दर्ज नही हुई

Created on Tuesday, 29 November 2016 11:34
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। क्या हमारीे पुलिस अभी तक महिलाओं के प्रति असंवेदनशील है? क्या पुलिस पर अदालत के निर्देशों का भी कोई असर नही पड़ता है? क्या सरकार कोई समाधान आदि के सारे दावों की जमीनी हकीकत बिल्कुल निराशाजनक है? यह सवाल मनाली की दो बहनों की व्यथाकथा से उभर कर सामने आये है। शैल को मिले इनकी व्यथाकथा के ब्यौरे से पूरी व्यवस्था पर ंगभीर सवाल खड़े हो जाते है। मनाली थाना के एसएचओे और मनाली के एसडीएम को दो महिलाओं पुष्पलता और पूर्णिमा ने 19.1.2016 को एक लिखित शिकायत देकर दोषियों के विरूद्ध मामला दर्ज करके कारवाई करने की गुहार लगायी। इनकी शिकायत थी कि शिनाग गंाव की टीकम राम और जीया गांव के देशराज ने इनके पिता अली राम और इनके साथ करीब एक करोड़ की धोखाधड़ी की है। जिसमें इन लोगों ने इनके ही किसी रिश्तेदार के नाम से झूठी पावर आफ अटार्नी बनाकर बडुआ गांव स्थित इनका बागीचा 6 लाख 90 हजार रूपये में बेच दिया है। जबकि रिश्तेदार को जिस गांव का रहने वाला बताकर पावर आॅफ अटार्नी बनायी गयी है उस गांव में उनका रिश्तेदार कभी रहा ही नहीं है।
एक आदमी का इस तरह का षडयंत्र करके बागीचा बेच दिया जाये तो स्वभाविक है कि वह इसकी शिकयत लेकर सबसे पहले पुलिस और प्रशासन के पास ही जायेगा। यह महिलाएं भी अपने पिता के साथ हुई धोखाधड़ी की शिकायत लेकर एसएचओ मनाली और एसडीएम मनाली के पास गयी। 19.1.2016 को दी गयी इस शिकायत पर 18.5.2016 को इन महिलाओं को डीसीपी मनाली के कार्यालय में बुलाया गया। वहां पर इनके ब्यान दर्ज किये गये लेकिन दोषीयों के खिलाफ एफआईआर दर्ज नही हुई। मुख्यमंत्री को भी फैक्स करके शिकायत भेजी। कुछ मन्त्रीयों से भी फरियाद की। लेकिन कहीं से कोई कारवाई नहीं हुई। इसकेे बाद हारकर 9.9.2016 को सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत मनाली में अदालत का दरवाजा खटखटाया। अदालत ने 12.9.2016 को मामला दर्ज करने और जांच रिपोर्ट अदालत में पेश करने के निर्देश जारी किये। लेकिन इन निर्देशों के बाद भी पुलिस हरकत में नही आयी। करीब सात लाख में बागीचा षडयंत्र करके बेच दिया जाता है। ऐसा करने वालों के खिलाफ पुलिस अदालत केे निर्देशों के बाद भी मामला दर्ज नहीं करती है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि ऐसे संगीन अपराध को पुलिस क्यों दबा रही है। क्या पुलिस पर किसी का दवाब है?
ल्ेकिन सवालों से हटकर व्यवस्था पर जो सवाल खड़े होतेे है वह बहुत गंभीर है। 1978 में सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका संख्या 101 of 1978 में 9.4.1978 को पुलिस को निर्देश जारी किये है कि महिलाओं को पुसिल स्टेशन में न बुलाया जाये। बुलाये की बाध्यता में स्पष्ट कहा गया है कि सूर्यास्त के बाद तो कदापि नहीं। पुलिस के पास आने वाली हर शिकायत पर एक एफआईआर दर्ज किया जाना अनिवार्य है। यदि शिकायत एफआईआर दर्ज करने लायक नहीं पायी जाती है तो उसके कारण सात दिन के भीतर रिकार्ड पर लाकर उसकी सूचना शिकायतकर्ता को देनी होगी। सत्यनारायण बनाम स्टेट आफॅ राजस्थान में 25.9.2001 को सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्देश जारी किये है। परन्तु इन निर्देशों की अनुपालना न किया जाना पूरी व्यवस्था की विश्वसनीयता को ही कठघरे में खड़ा कर देता है। इस मामले में सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत मामला दर्ज किये जाने के निर्देशों के बाद भी एफआईआर दर्ज न किया जाना और वह भी महिला शिकायतकर्ताओं के मामलों में यही दर्शाता है कि अभी भी हमारी पुलिस महिलाओं के बारे मे पूरी तरह असंवेदनशील है।