अब वीरभद्र ने आयकर अपील न्यायाधिकरण को कहा कंगारू कोर्ट

Created on Tuesday, 20 December 2016 14:22
Written by Shail Samachar

शिमला/बलदेव शर्मा
सीबीआई और ईडी में मामले झेल रहे मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने दिल्ली उच्च न्यायालय के जज की निष्ठा पर सवाल उठाने के बाद आयकर विभाग के चण्डीगढ़ स्थित अपील न्यायाधिकरण पर रोष प्रकट करते हुए उसे वित्त मन्त्री अरूण जेटली का कंगारू कोर्ट करार दिया है। स्मरणीय है कि दिल्ली उच्च न्यायालय में चल रहे सीबीआई मामले में फैसला सुरक्षित चल रहा है और आयकर न्यायाधिकरण में वीरभद्र सिंह के खिलाफ फैसला आ गया है। सीबीआई में वीरभद्र सिंह के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज है। इस मामले का आधार वीरभद्र सिंह द्वारा मार्च 2012 में तीन वर्षो की संशोधित आयकर रिटर्नज दायर करते हुए पहले दिखायी गयी 47.35 लाख की मूल आय को संशोधन में 6.10 करोड़ दिखाना बना है। बढ़ी हुई आय को सेब बागीचे की आय कहा गया लेकिन जांच में यह दावा सही नही पाया गया इसलिये यह आय से अधिक संपत्ति का मामला माना गया। इस अघोषित आय को बागीचे की आय बताकर वैध बनाने का प्रयास ईडी में मनीलाॅडंरिग बन गया और ईडी में भीे सीबीआई के बाद मामला दर्ज कर लिया गया। ईडी इसमें करीब आठ करोड़ की संपत्ति अटैच कर चुकी है और इसमें एलआईसी एजैन्ट आनन्द चौहान इस समय जेल में है। क्योंकि आनन्द चौहान ने बागीचे का प्रबन्धक बनकर इस अघोषित आय को एलआईसी की पालिसियों के माध्यम से वैध बनाने में केन्द्रिय भूमिका निभायी है।

वीरभद्र इस पूरे मामलें को आपराधिक न मानते हुए आयकर का मामला करार देते आये है। लेकिन अब जब आयकर अपील न्यायाधिकरण ने भी उनके दावे को अस्वीकार कर दिया है तो उनकी कठिनाई बढ़ना स्वाभाविक है। क्योंकि यदि आयकर अपील न्यायाधिकरण उनके दावे को स्वीकार कर लेता तो इससे सीबीआई और ईडी में चल रहे मामलों की बुनियाद हिल जाती। लेकिन अब ऐसा नही हुआ है और इससे सीबीआई तथा ईडी का आधार और पुख्ता हो जाता है। आयकर न्यायाधिकरण के फैसले की अपील हिमाचल उच्च न्यायालय में दायर हो चुकी है लेकिन अदालत ने न्यायाधिकरण के फैसले को स्टे नही किया है और यह शपथ पत्र दायर करने को कहा है कि क्या यह वही मामला है जो दिल्ली में चल रहा है या उससे भिन्न हैं यदि इस मामले के तथ्य और संद्धर्भ दिल्ली में चल रहे मामले के ही अनुरूप पाये जाते हैं तो इस मामलें को भी दिल्ली उच्च न्यायालय को ही भेज दिये जाने की संभावना हो सकती है। क्योंकि हिमाचल उच्च न्यायालय से वीरभद्र का मामला सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों पर पहले ही दिल्ली उच्च न्यायालय को स्थानान्तरित होकर वहां फैसले के कगार पर पहुंचा हुआ है। 

आयकर अपील न्यायाधिकरण के फैसले को वीरभद्र ने एचपीसीए के खिलाफ प्रदेश विजिलैन्स द्वारा चलाये जा रहे मामलों की रिर्टन गिफ्रट करार दिया है। वीरभद्र उनके खिलाफ आयकर, सीबीआई और ईडी में चल रहे मामलों को लगातार धूमल, जेटली और अनुराग का षडयंत्र करार देते आ रहे है। इस षडयंत्र का आधार वह एचपीसीए के मामलों को बताते है। लेकिन स्मरणीय है कि वीरभद्र सिंह के खिलाफ प्रशांत भूषण के एनजीओ कामन काॅज ने तो यूपीए शासन में सीबीआई और सीवीसी के यहां शिकायतें कर दी थी और इन्ही शिकायतों का परिणाम है कि सीबीआई और ईडी 2015 के अन्त में मामले दर्ज किये जो आज इस मुकाम तक पहुंच गये हैं। दूसरी ओर एचपीसीए के खिलाफ 2013 में ही विनय शर्मा की शिकायत आ गयी थी। एचपीसीए का मामला कांग्रेस के आरोप पत्र में भी था और उसी के आधार पर विजिलैन्स ने इसमें मामले दर्ज किये। एचपीसीए को जमीन आंबटन से लेकर होटल पैब्लियन बनाने के लिये पेड़ काटने, स्टेडियम के लिये धर्मशाला काॅलिज के आवासीय होस्टल को गिराकर उसकी जमीन पर अवैध कब्जा करने तथा एचपीसीए के सोसायटी से कंपनी बनने तक के सारे प्रकरणों में जिन-जिन अधिकारियों की सक्रिय भूमिका रही है वह सब वीरभद्र के इस शासन में उनके विशेष विश्वस्त रहे हैं। बल्कि कई अधिकारियों को तो विजिलैन्स ने चालान में खाना 12 को दोषी दर्ज कर रखा है। एचपीसीए के लाभार्थीयों को तब तक सजा नही हो सकती जब तक खाना 12 में नामजद लोगों को सजा नही होती। लेकिन खाना 12 में नामजद यह अधिकारी आज भी मुख्यमंत्री कार्यालय में अहम पदों पर बैठे हैं। संभवत इन्ही लोगों के कारण सोसायटी से कंपनी बनाये जाने का मामला अभी तक आरसीएस और उच्च न्यायालय के बीच लंबित है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि एपीसीए को लेकर वीरभद्र जो भी ब्यानवाजी जनता में कर रहे हैं वह तथ्यों पर आधारित नहीं है बल्कि इसके माध्यम से इन लोगों पर अपने पक्ष में दवाब बनाने का प्रयास है। क्योंकि दोनों चीजें एक ही वक्त में सही नही हो सकती कि एचपीसीए के खिलाफ आरोप भी सही हों और एचपीसीए को अनुमति लाभ पहुंचाने में केन्द्रिय भूमिका निभाने वाले अधिकारी ही वीरभद्र सिंह की सरकार चला रहे हों। वैसे वीरभद्र सिंह प्रशासन और जांच ऐजैनसीयों पर किस तरह दवाब बनाते हैं यह मार्च 1999 में कामरू मूर्ति प्रकरण की पुनःजांच किये जाने को रोकने के लिये लिखे पत्र से स्पष्ट हो जाता है क्योंकि इस समय भी ठीक वैसा ही परिदृश्य है।