प्रदेश के तीनों विश्वविद्यालयों पर भाजपा के आरोप पत्र में गंभीर आरोप क्या राज्यपाल जांच के आदेश देंगे?

Created on Tuesday, 27 December 2016 11:54
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। प्रदेश भाजपा ने राज्यपाल को वीरभद्र सरकार के खिलाफ आरोप पत्र सौंपा है। इस आरोप मुख्यमन्त्री से लेकर मन्त्रीयों, संसदीय सचिवो और विभिन्न निगमों-बार्डो के अध्यक्षों/उपाध्यक्षों और कुछ विधायकों तक के खिलाफ गंभीर आरोप लगाये गये है। इन आरोपों की जांच के लिये राज्यपाल इस आरोप पत्र को सरकार को भेजेेंगे और सरकार पर निर्भर करेगा कि वह कैसे इन आरोपों पर आगे बढ़ती है। लेकिन इस आरोप पत्र में प्रदेश के तीनों विश्वविद्यालयों के खिलाफ भी गंभीर वित्तिय और शैक्षणिक अनियमितताओं के आरोप लगे है। विश्वविद्यालयोें के संद्धर्भ में सरकार के विभागों से स्थिति भिन्न है। इनके लिये राज्यपाल ही सर्वेसर्वा हैं। वह विश्वविद्यालयों को लेकर अपने स्तर पर जांच आदेशित कर सकते हैं बल्कि जांच अधिकारी भीे अपनी पसन्द से नियुक्त कर सकते हैं। इसमें राज्य सरकार कोई हस्ताक्षेप नही कर सकती है। ऐसे विश्वविद्यालयों के खिलाफ लगे आरोपों की प्रमाणिकता और भ्रष्टाचार के प्रति भाजपा की गंभीरता भी राज्यपाल के आदेश से प्रमाणित हो जायेगी।
                                                    यह है कुछ आरोप
हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में नियमो की अनदेखी कर, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा निर्धारित (NET/SLET/SET) की अनिवार्य शैक्षणिक योग्यताओं (प्रतिलिपी संलग्न-1) का हटा कर तथा माननीय सर्वोच्च न्यायाल के आदेशों (प्रतिलिपी संलग्न-2-5) को छुपा कर एक बहुत बड़ी साजिश के तहत विश्वविद्यालय के हिमालयन एकीकृत अध्ययन संस्थान (IIHS) में चहेतों को जो किसी परियोजना में निर्धारित पारिश्रमिक (Emoluments) पर काम कर रहे थे, को वित अधिकारी यानि एक व्यक्ति की कमेटी की सिफारिशों से सीधे पे-बैंड 15600-39100 में बिना विश्वविद्यालय के अध्यादेश व एक्ट में निर्धारित चयन प्रक्रिया से नियमित कर दिया गया और साथ में नियमितिकरन की तारीख से दो-दो पदोन्नतियां (ए0जी0पी0 7000 व 8000) भी दी गई (प्रतिलिपी संलग्न-4) वित्त संबधित मामलो को कुलपति द्वारा 12(सी) 7 में करना अपने आप ही न्यायसंगत नहीं है और साथ ही टाईम स्केल व एफ0आर0एस0आर0 नियमों के विरूद्ध है और करदाताओं के पैसों का सरेआम दुरूपयोग है। लगता है इस प्रदेश में व इस विश्वविद्यालय में कानून नाम की कोई चीज ही नहीं है।
हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति डा0 राजिन्द्र सिंह चैहान हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में शिक्षक बनने के भी लायक नहीं थे, क्योंकि उनके बी0ए0 में मात्र 42.9 प्रतिशत और एम0ए0 में 50.7 प्रतिशत अंक थे, लेकिन कांग्रेस ने नियमों को ताक पर रखकर उसे पहले आचार्य भी बनाया और सेवानिवृति के बाद विश्वविद्यालय का प्रति कुलपति भी नियुक्त किया, जो एक बहुत बड़ा शैक्षणिक फ्राॅड है। लाखों बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है और करदाताओं के पैसों का सरेआम दुरूपयोग है।
*हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय की अगली घटना भी वित्तीय अनियमितताओं से जुड़ी हुई हैं जहां गैर शिक्षक कर्मचारियों, श्री बरयाम सिंह बैंस वव श्री नित्यानंद को सेवानिवृति से पहले फायदा पहुंचाने के लिए उन्हें अल्प समय में नियमों में ढील दे कर तीन-तीन प्रमोशन दी गई। जबकि एस0ओ0 से सहायक कुलसचिव के लिए तीन वर्ष व सहायक कुलसचिव से उप कुलसचिव के लिए दो वर्षों का अंतराल होना आवश्यक था लेकिन एक विचारधारा विशेष के व्यक्तियों को लाखों रूपयों का फायदा देने के लिए भारत सरकार के वित्त व सर्विस नियमों के खिलाफ कुलपति ने विश्वविद्यालय को लाखों रूपयों का घाटा करवाया और करदाताओं के पैसों का दुरूपयोग किया।
*हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय की मेहरबानी कुछ और काग्रेसी नेताओं पर ऐसी हुई कि उन्हें ड्राट्समैन से सीधे एस0डी0ओ0 ही बना दिया। घटना विश्वविद्यालय के शिल्पकार शाखा की है जहां नियमों के विरूद्ध श्री नगिन्दर गुप्ता व श्री रतन गुप्ता को ड्राट्समैन से सीधे एस0डी0ओ0 ही बना दिया तथा इसके साथ कुछ और लोगों को भी अनुचित लाभ पहुंचाये गये और इस तरह व्यक्ति विशेषों को फायदा पहुंचाने के लिए विश्वविद्यालय को लाखों का नुकसान कर दिया। सनद रहे कि इस प्रपोजल को वित्त समिति ने इनकार किया था। बावजूद इसके इन्होनें मिल मिला कर इसे कार्यकारिणी परिषद से करवा दिया।
*प्रदेश विश्वविद्यालय ने विभिन्न विभागों में साक्षात्कार प्रक्रिया 2012 में शुरू की लेकिन उन सिफारिशों को 2016 में पूरा किया गया, क्योंकि सरकार बदलने के साथ कांग्रेसियों ने कहा कि अपात्र लोगों को नियुक्ति दी जा रही है और इस संदर्भ में उस वक्त के कुलसचिव डा0 मोहन लाल झारटा ने उच्च न्यायालय में तीन-तीन झूठे हल्फनामे दायर किय गए जिससे विश्वविद्यालय को वकीलों व कोर्ट को लाखों रूपये देने पड़े लेकिन जब कांग्रेसियों ने अपने लोगों को लगाना था जो हालांकि अपात्र थे, तो 2012 व 2016 के सभी साक्षात्कार की सिफारिशों को लागू कर दिया। अगर 2012 की सिफारिशें गलत थी तो वह 2016 में कैसे ठीक हो गई और अगर ठीक थी तो उन्हें 4 वर्षों तक क्यों रोका गया और लाखों रूपये वकीलों व कोर्ट को क्यों दिए गए? और कैसे बाद में गलत भी ठीक हो गए या अपने अपात्र लोगों को लगाने के लिए यह षडयंत्र रचा गया था, यह गहन जांच का विषय है।
*प्रदेश विश्वविद्यालय ने नियमों की परवाह न करते हुए कांग्रेस विचारधाराओं के शिक्षक श्री एन एस बिस्ट जो शैक्षणिक योग्यताएं पूरी नहीं रखते थे (Non PhD) को फायदा  पहुंचाने के लिए निदेशक पी आर सी बनाया गया जो नियमों के विपरीत था।
*प्रदेश विश्वविद्यालय ने हर कदम पर वित्तीय अनिमितताओं को बढ़ावा दिया और कानून के विपरीत विशेष विचारधाराओं के लोगों को फायदा पहुंचाने का काम किया। एक और घटना में प्रदेश विश्वविद्यालय ने एक शारीरिक शिक्षा विभाग के कोच डा0 रमेश चैहान को पहले बिना साक्षात्कार के सह-आचार्य नामित किया और बाद में उसे आचार्य एवं निदेशक शारीरिक शिक्षा लगाया गया, जो नियमों के विरूद्ध था।
*प्रदेश विश्वविद्यालय ने विशेष विचारधारा के लोगों को फायदा पहुंचाते हुए टूरिज्म विभाग में काॅन्ट्रैक्ट पर सहायक आचार्य (Ms. Preeti)को वित्तीय नियमो के विरूद्ध तीस हजार प्रति माह का वेतन दिया जबकि बाकि विभागों में यू0जी0सी0 के नियमो के तहत व हिमाचल प्रदेष सरकार की संविदात्मक (Contractual) पाॅलिसी के तहत 21600/- प्रतिमाह की दर से भुगतान किया गया।
*हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य अरूण दिवाकर नाथ वाजपई ने कांग्रेस के डा0 यशवंत सिंह हारटा को शिक्षक लगाने के लिए जानबूझ कर निर्धारित शैक्षणिक योग्यताओं से परे पांच वर्षों का अनुभव लगा दिया जिसका विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यू0जी0सी0द्) की शैक्षणिक में कोई जिक्र भी नहीं है।
*हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय ने NAAC की टीम से ठीक पहले विभागों को सफेदी व पेंट करने को कहा गया और बाद में कांग्रेस नेता व ई0सी0 सदस्य श्री हरीश जनारथा के जान पहचान के व्यक्ति को डेढ़ करोड़ का ठेका दिया गया और मोदी रकम की हेराफेरी हुई।
*एक बहुत बड़ी साजिश के तहत विश्वविद्यालय का स्थाई कुलसचिव दो या चार दिन के लिए छुट्टी जाता था और IIHS व अन्य मामलों सम्बन्धित फाइलें विश्वविद्यालय के किसी शिक्षक, जो अस्थाई कुलसचिव नियुक्त किया जाता था, से करवाई जाती थी जबकि नियुक्तियों सम्बन्धी मामले अस्थाई कुलसचिव के अधिकार में नहीं आते, यह एक गहन जांच का विषय है।
* हिमाचल प्रदेश सरकार ने विश्वविद्यालय को रूसा के तहत चार करोड़ रूपये दिए लेकिन कुलपति आचार्य अरूण दिवाकर नाथ वाजपेयी की टीम ने वह पैसा कहां खर्चा इसकी कोई जानकारी नहीं है और अगर वह पैसा नहीं खर्चा तो क्यों नहीं ?क्या यह वित्तीय अनियमिततायें नहीं है?अतः रूसा के तहत आए 4 करोड़ रू0 की उच्च स्तरीय जांच की जाए।
* हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य अरूण दिवाकर नाथ वाजपेयी वे प्रतिकुलपति डा0 राजिन्द्र सिंह चैहान तथा हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय की कांग्रेसी कार्यकारिणी ने महामहिम राज्यपाल व कुलाधिपति हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय आचार्य देवव्रत जी की गरिमा को भी मिट्टी में मिला दिया जब इन्होनें जीव विज्ञान के आचार्य के मामले में चयन समिति के उपर विश्वविद्यालय की अपनी समिति बना दी। हालांकि विश्वविद्यालय के एक्ट व अध्यादेश में ऐसी किसी भी समिति का कोई प्रबधन नहीं है, क्योंकि चयन सिमति महामहिम राज्यपाल व कुलाधिपति हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय द्वारा मंजूर व सत्यापित की गई होती है और उससे उपर कोई भी समिति गठित करना विश्वविद्यालय के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है और इसका मकसद महामहिम राज्यपाल व कुलाधिपति की गरिमा को नीचा दिखाना था।
* हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के मैथ विभाग के डा0 जोगिन्दर सिंह धीमान जिनको चयन समिति ने आचार्य पद के लिए अनुतीर्ण घोषित किया था और नियमों के अनुसार उनका अगला साक्षात्कार आगामी एक वर्ष तक नहीं हो सकता था और इसके साथ उनको ज्वाईनिंग की तारीख से ही प्रभावी माना जाता था लेकिन घोटालों के महाधिपति हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य अरूण दिवाकर नाथ वाजपेयी व प्रतिकुलपति डा0 राजिन्दर सिंह चैहान ने उस कांगे्रसी का 6 महीनों में ही साक्षात्कार करवा दिए और उनको (Retrospective) अतित्लक्षी वरिष्ठता व वित सम्बन्धी फायदे दे दिए गए जिससे लाखों रूपयों का नुकसान विश्वविद्यालय को हुआ। साथ ही व्यक्ति विशेष के लिए 6 महीनों में साक्षात्कार समिति गठित करने में लाखों का बोझ फिर से विश्वविद्यालय को उठाना पड़ा जो करदाताओं के पैसों का फिर से दुरूपयोग था। अगर इसमें तकनीकि कारणों का बहाना लगाया जाता है तो व्यक्ति विशेष की जेब से इसका खर्चा वहन होना चाहिए जिसके लिए स्वयं कुलपति व प्रतिकुलपति जिम्मेवार है।
* एक और घटना के तहत प्रदेश विश्वविद्यालय ने डा0 कमल मनोहर जिसकी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अनुसार अनिवार्य शैक्षणिक योग्यताएं नहीं थी, को पहले राजनीति शास्त्र का आचार्य लगाया और बाद में उसे बिना निर्धारित चयन प्रक्रिया व साक्षात्कार के डा0 दीनदयाल उपाध्याय पीठ पर संयोजक नियुक्त किया गया जो नियमांे के विरूद्ध था। इसी तरह प्रदेश विश्वविद्यालय ने कुछ कांग्रेसी मित्रों को बिना निर्धारित चयन प्रक्रिया व साक्षात्कार के ही सह आचार्य के वेतनमान व पदनाम से अलंकृत कर दिया जिससे विश्वविद्यालय को वित्तीय घाटा सहन करना पड़ा। यह एक गहन जांच का विषय है।
डा0 यशवंत सिंह परमार विश्वविद्यालय
1. पूर्व कुलपति डा0 विजय सिंह ठाकुर जब विश्वविद्यालय के क्षेत्राी अनुसंधान केन्द्र, मशोबरा में वरिष्ठ वैज्ञानिक/प्रमुख वैज्ञानिक के नातम कार्यरत थे, ने यूरोपियन संघ (European Union) द्वारा 2.10 करोड़ रू0 की एक अनुसंधान परियोजना का स्वतंत्र रूप से संचालन 2003 के बाद किया जिसके संदर्भ में कोई भी रिकाॅर्ड विश्वविद्यालय प्रशासन को उपलब्ध नहीं करवा कर सरेआम विश्वविद्यालय के नियम/कानून तथा लोख नियमावली (Act/Statute and Accounts Manual) का उल्लंघन किया है। परियोजना के अंतर्गत मिले विदेश से धन को अपने बैंक खाते में जमा करवाया जोकि विश्वविद्यालय के Comptroller के सरकारी खाते में जाने चाहिए थे। विश्वविद्यालय के नियमित कर्मचारी होने के नाते वह सरकार के सी0सी0एस0 नियम में आते हैं। इस तरह सरेआम इस परियोजना संचालन में सब नियमों को ठेंगा दिखा गया।
2. कुलपति लगने के लिए इन महानुभाव ने अपने विषय में गलत जानकारी उस समय में महामहिम राज्यपाल को देकर कुलपति का गरिमापूर्ण पद प्राप्त किया था जिसमें अपने आप को Post-Doc एवं 10 वर्ष का प्रशासनिक अनुभव बताया था।
विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति डा0 विजय सिंह ठाकुर द्वारा विश्वविद्यालय के एन0एस0यू0आई0 के तत्कालीन अध्यक्ष श्री प्रेम प्रकाश को वैज्ञानिक अनाधिकृत रूप से लगाने के लिए ’’वैज्ञानिकों की नियुक्ति के लिए प्रकाशित अधिसूचना’’ में वैज्ञानिक पद के लिए आवेदन की अंतिम तिथि जोकि प्रकाशन नं0 04/2015 दिनांक 17-10-2015 को थी, विश्वविद्यालय अधिसूचना नं0 UHF/Regr. Rectt. 2-04/2015/019929-20079 से दिनांक 21-11-2015 तक बढ़ा दिया ताकि NSUI President श्री प्रेम प्रकाश इसमें आवेदन के लिए पात्रा बन जाए। तत्पश्चात इसी प्रत्याशी को नियुक्त करने के लिए इन्टरव्यू तथा Presentation में इसे 20 में से 19 नम्बर दिए गए। जबकि इसने पी0एच0डी0 की डिग्री पूरी नहीं की थी।दूसरा प्रत्याशी जो पी0एच0डी0 की डिग्री प्राप्त था, को 20 में से 7.5 अंक दिए गए जोकि मा0 उच्चतम न्यायालय की निर्देशना के विरूद्ध है जिसमें किसी भी प्रत्याशी की इंटरव्यू में 50 प्रतिशत से कम अंक नहीं दिए जा सकते। यह बहुत ही गंभीर विषय है जिसकी उच्च स्तरीय जांच हो।
चैधरी सरवन कुमार कृषि विश्वविद्यालय
चैधरी सरवन कुमार हि0प्र0कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के पूर्व कुलपति डा0 के0के0 कटोच ने अपने पद का दुरूपयोग करते हुए सी0डी0ए0 फंड से 6 लाख रूपये अवैध रूप से विदेश यात्रा के लिए खर्च किए। विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से 13 अगस्त, 2014 को जब सरकार से विश्वविद्यालय के प्रतिनिधि मण्डल जिसमें स्वयं तत्कालीन कुलपति डा0 के0के0 कटोच, केवल सिंह पठानिया, जो एक कांग्रेसी नेता होने के साथ बोर्ड आॅफ मैनेजमैंट का सदस्य भी हैं और डा0एस0पी0 शर्मा, डायरेक्टर रिसर्च के विदेश दौरे (मंगोलिया) पर जाने की अनुमति मांगी। उस समय पत्रा में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि प्रदेश सरकार व विश्वविद्यालय प्रशासन को इस यात्रा का कोई भी वित्तीय बोझ नहीं पड़ेगा, परन्तु सरकार से अनुमति पत्रा प्राप्त होने के बाद तत्कालीन कुलपति ने अपने पद का दुरूपयोग करते हुए अवैध तरीके से विश्वविद्यालय के सी0डी0ए0 फंड से 6 लाख रूपये इस विदेश यात्रा में जाने के लिए खर्चे गए। इस गबन से प्रतीत होता है कि यह 6 लाख रू0 एक कांग्रेसी नेता श्री केवल सिंह पठानिया, जो विश्वविद्यालय बोर्ड आॅफ मैनेजमैंट का सदस्य भी था, को खुश करने के लिए अवैध रूप से खर्च किए जिसका विश्वविद्यालय के शैक्षणिक कार्यों में कोई भूमिका नहीं थी। तत्कालीन कुलपति द्वारा खर्च किए गए इस पैसे की उच्च स्तरीय जांच की जाए।
फरवरी, 2016 में प्रदेश सरकार कृषि विश्वविद्यालय को 15 करोड़ रू0 की अनुदान राशि दी गई जोकि मंहगाई भत्तों की बकाया राशि, वेतन वृद्धि की बकाया राशि, चिकित्सा प्रतिपूर्ति की बकाया राशि और पदोन्नति की बकाया राशि का भुगतान इत्यादि के लिए स्वीकृत की गई थी, तत्कालीन कुलपति के0के0 कटोच ने अपनी पैंशन की कम्यूटेशन के लिए इस्तेमाल करने की मंशा से 31.12.2015 तक सेवानिवृत हुए सभी कर्मचारियों के पैंशन कम्यूटेशन के लिए उपरोक्त राशि का प्रयोग कर लिया जबकि इस उदेश्य के लिए इस राशि का आबंटन नहीं हुआ था। यह राशि अपने फायदे के लिए इस्तेमाल की गई। प्रदेश सरकार द्वारा स्वीकृत की गई 15 करोड़ रू0 की अनुदान राशि का अवैध रूप से किए गए दुरूपयोग की उच्च स्तरीय जांच की जाए और दोषी के खिलाफ कड़ी कार्यवाही अमल में लाई जाए।