शिमला/बलदेव शर्मा। क्रिकेट प्रशासन में सुधार के लिये सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों को अमली जामा पहनाने के लिये एक वर्ष ये भी अधिक समय से शीर्ष अदालत में चल रहे मामले में आये फैसले में सर्वोच्च अदालत ने बीसीसीआई के अध्यक्ष अनुराग ठाकुर और सचिव अजय शिर्के को उनके पदों से हटा दिया है। अभी अध्यक्ष के काम काज की जिम्मेदारी वरिष्ठ उपाध्यक्ष ओर सचिव की जिम्मेदारी सयुंक्त सचिव को सौंपी गयी है। बोर्ड का अगला प्रबन्धन किसके पास कैसे रहेगा इसका फैंसला 19 जनवरी को आयेगा। बीसीसीआई विश्व का सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड है लेकिन इस बोर्ड पर लगभग देश के राजनेताओं का कब्जा है और इसमें सभी राजनीतिक दल बराबर के हिस्सेदार हैं। बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि सभी खेलों का प्रबन्धन राजनेताओं के हाथों में पहुंच चुका है। क्रिकेट में खिलाड़ियों की बोली लगती है। इसमें चल रहे सट्टे के खेल पर भी जांच कमेटी बिठानी पड़ी थी। क्रिकेट में फैल ‘‘इस सब कुछ’’ में सुधार कैसे लाया जा सकता है इसके लिये ही लोढ़ा कमेटी का गठन किया गया था। लोढ़ा कमेटी ने इस संद्धर्भ
में इसके प्रबन्धक अधिकारियों की उम्र, कार्यकाल, एक राज्य एक वोट जैसी कई महत्वपूर्ण सिफारिशें की है। लेकिन बीसीसीआई ने इन सिफारिशों को मानने में अडियल रूख अपना लिया। बीसीसीआई का अडियल रूख जब इसके अध्यक्ष अनुराग के शपथ पत्र के रूप में सर्वोच्च न्यायालय के सामने आया तब स्थिति और भी गंभीर हो गयी। सर्वोच्च न्यायालय ने इस शपथ पत्र को अदालत की मानहानि करार दिया जिसका परिणाम अध्यक्ष और सचिव की बर्खास्तगी के फैंसले के रूप में सामने आया है।
बीसीसीआई अध्यक्ष अनुराग हमीरपुर सांसद है और नेता प्रतिपक्ष प्रेम कुमार धूमल के बड़े बेटे हैं। बीसीसीआई तक पहुंचने से पहले अनुराग एचपीसीए के सर्वेसर्वा थे। यह एक संयोग है कि जब धूमल हिमाचल के मुख्यमन्त्री बने उसी दौरान एचपीसीए ने अपना यहां पर विस्तार किया। इस विस्तार के नाम पर एचपीसीए ने प्रदेश में धर्मशाला जैसा स्टेडियम स्थापित किया और अन्य स्थानों पर भी स्टेडियमों की स्थापना की है। लेकिन एचपीसीए का यह विस्तार राजनीति के आईने में धूमल शासन का भ्रष्टाचार बन गया। और आज वीरभद्र सरकार ने एचपीसीए के खिलाफ कई आपराधिक मामले चलाये हुए है। जिन पर ट्रायल कोर्ट से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक से स्टे मिला हुआ है। एचपीसीए को इंगित करके ही वीरभद्र सरकार नया खेल विधेयक लेकर आयी। जो कि राजभवन में स्वीकृति के लिये लंबित पड़ा हुआ है। अनुराग ठाकुर की गिनती केन्द्रिय वित्त मंत्री अरूण जेटली के निकटस्थों में होती है। इसी कारण वीरभद्र अपने खिलाफ चल रहे सीबीआई और ईडी के मामलों को धूमल, जेटली और अनुराग का षडयंत्र करार देते हैस्मरणीय है कि जब सर्वोच्च न्यायालय ने बीसीसीआई के मामले मे फैंसला सुरक्षित किया था और अनुराग के शपथ पत्र पर कड़ी प्रतिक्रिया दी थी तब वीरभद्र ने अनुराग को लेकर जिस तर्ज में अपनी प्रतिक्रिया दी थी उससे स्पष्ट हो जाता है कि अब जब बीसीसीआई को लेकर सर्वोच्च न्यायालय का फैंसला आ गया तब वीरभद्र और उनकी विजिलैन्स भी एचपीसीए के मामलों में ऐसे ही परिणाम पाने के लिये पूरा - पूरा प्रयास करेंगे।
दूसरी ओर भाजपा के भीतर भी जो लोग धूमल विरोधी माने जाते है वह भी अनुराग के खिलाफ आये इस फैंसले का पूरा - पूरा राजनीतिक लाभ उठाने का प्रयास करेंगे। क्योंकि यही विरोधी खेमा है जिसने नड्डा को भी मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदारों के रूप में प्रचारित किया है। कांग्रेस और वीरभद्र भी इस प्रचार को अपनी सुविधानुसार हवा देते रहे हैं। इस परिदृश्य में यह स्वाभाविक है कि वीरभद्र एचपीसीए के मामलों को आगे बढ़ाने का पूरा प्रयास करें। क्योंकि राजनीतिक तौर पर वीरभद्र को जो चुनौती धूमल से है वह नड्डा से नहीं है। ऐसे में बहुत संभव है कि आने वाले दिनों में धूमल और वीरभद्र दोनो की ओर से ही आक्रामक राजनीति देखने को मिले। क्योंकि जहां अनुराग के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय का फैंसला आया है वहीं पर वीरभद्र के खिलाफ भी आयकर अपील ट्रिब्यूनल चण्ड़ीगढ़ और उसके बाद हिमाचल उच्च न्यायालय के फैंसले आये हैं। इन फैसलों को लेकर कौन कितना आक्रामक होता है यह आने वाले दिनों में देखने को मिलेगा।