कर्ज में डूबे प्रदेश की दस्तावेजों के आइने में प्रदेश की वित्तीय स्थिति

Created on Tuesday, 24 January 2017 08:44
Written by Shail Samachar

31 मार्च 2017 को 45000 करोड़ से ऊपर हो जायेगा प्रदेश का कर्जभार
 

शिमला/बलदेव शर्मा

वर्ष 2016-17 के बजट दस्तावेजों के मुताबिक 31 मार्च  2017 को प्रदेश का कर्जभार 45000 करोड़ से ऊपर पहुंच जायेगा यह तय है। वर्ष 2016 में मुख्यमन्त्री ने जितनी घोषणाएं कर रखी हैं यदि उन सबको अमली जामा पहनाया जाता है तो कर्जभार इतना अधिक हो जायेगा जो एफआरबीएम के प्रावधानों से आगे बढ़ जायेगा। भारत सरकार के सचिव राजस्व खर्च 2016 में ही प्रदेश सरकार को एक पत्र लिखकर इस बारे में सचेत कर चुकी है। वित्त विभाग के सूत्रों के मुताबिक सरकार इस समय कुछ खर्चे तो आपदा प्रबन्धन के नाम पर केन्द्र से मिलने वाली धनराशी में से कर रही है। अभी बर्फबारी के वक्त तो मुख्यमन्त्री ने 25 करोड़ जारी किये जाने के आदेश किये थे वह पैसा भी  आपदा प्रबन्धन में से ही लिया गया है। आज चैदहवें वित्तायोग के तहत जो सहायता सरकार को मिली है उससे सरकार का काम चल रहा है लेकिन जून 2017 तक वित्त विभाग एक बड़े वित्तिय संकट की संभावना मान रही है। पूर्व मुख्यमन्त्री  और नेता प्रतिपक्ष प्रेम कुमार धूमल अभी हाल ही में घटते राजस्व पर चिन्ता व्यक्त कर चुके हंै। लेकिन सरकार ने इसके वाबजूद सीमेन्ट पर 50ः टैक्स घटा दिया है।
अब वीरभद्र ने धर्मशाला को दूसरी राजधानी घोषित करके प्रदेश पर और वित्तिय बोझ पड़ने का प्रबन्ध कर दिया है। धर्मशाला में जब विधानसभा भवन बना था उस समय उस पर करीब 30 करोड़ खर्च हुए थे। इस समय यदि अस्थायी तौर पर भी पूरे प्रशासन को तीन चार माह के लिये धर्मशाला श्फ्टि करना पडता है तो उस पर ही सैंकडो करोड़ खर्च हो जायेंगे। वीरभद्र की घोषणा को अमली शक्ल देने के लिये राजधानी बनाने बसाने पर हजारों करोड़ खर्च होेंगे। इस समय भारत सरकार के पत्र के मुताबिक सरकार को आगे कर्ज उठाना भी आसान नही होगा। वर्ष 2016-17 के बजट दस्तावेज के मुताबिक सरकार ने 2014-15 में 5201.74 करोड़, 2015-16 में 4787.40 और 2016-17 में 6083.75 करोड़ ऋण के माध्यम से जूटाने का प्रावधान बजट में रखा है। इस समय 2002- 03 में सरकार का जो कर्जभार  130209.47 करोड़ था वह 31 मार्च 2015 को 35151.60 करोड़ तक पहुंच  गया है। इसमें 2015-16 और 2016-17 का कर्ज जोड़कर यह 45000 करोड़ से ऊपर चला जाता है। बढते कर्ज की इस स्थिति को देखते हुए मुख्यमन्त्री की घोषणाओं को किस तरह लिया जाना चाहिये यह एक बडा सवाल बनकर खडा है।