शिमला/शैल।
मुख्यसचिव की नियुक्ति में नजर अन्दाज हुए प्रदेश के वरिष्ठ आई ए एस अधिकारियों दीपक सानन और विनित चैाधरी को प्रशासनिक ट्रिब्यूनल चण्डीगढ़ द्वारा दी गयी पहली राहत में यह निर्देश हुए थे कि इन अधिकारियों को मुख्यसचिव वी सी फारखा के प्रशासनिक नियन्त्रण से बाहर करते हुए इन्हें समुचित नियुक्तियां दी जायें। कैट के इन निर्देशों के बाद इन अधिकारियों को प्रिंसिपल एडवाईजर बनाकर इन निर्देशों की अनुपालना कर दी गयी। इसके बाद सानन 31 जनवरी को रिटायर हो गये। इसके बाद जब यह मामला कैट में पुनः सुनवाई के लिये आया तब तक राज्य सरकार ने इसमें पूर्ण जवाब दायर नहीं किया जबकि अन्तरिम जवाब पहले ही दायर कर दिया गया था। अन्तरिम जबाब में राज्य सरकार ने दीपक सानन के खिलाफ चार्जशीट और विनित चैाधरी के खिलाफ सी बी आई में एक पी ई लंबित होने को इनकी नजरअन्दाजी का कारण बताया था। लेकिन संपूर्ण जवाब दायर नही किया गया और कैट ने इसका कड़ा संज्ञान लेते हुए न केवल राज्य सरकार को फटकार लगायी है बल्कि यहां तक कह दिया है कि यदि अगली तारीख तक यह जवाब न आया तो मुख्य सचिव वी सी फारखा की शक्तियां भी छीन ली जायेंगी। इसी के साथ विनित चैाधरी को तुरन्त प्रभाव से मुख्य सचिव के समकक्ष वेतन भत्ते और अन्य सुविधायें प्रदान की जायें।
जिस तरह के आदेश इस मामले में कैट से आ रहे है उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि कैट ने इस प्रकरण का कड़ा संज्ञान लिया है। कैट के निर्देशों के बाद राजनीतिक और प्रशासनिक हल्कों में यह मामला चर्चा का विषय बन गया है। विधानसभा में पूर्व मन्त्री भाजपा विधायक रविन्द्र रवि द्वारा इसका उल्लेख उठाया जाना इसका प्रमाण है। भले ही मुख्यमन्त्री द्वारा इस उल्लेख का कड़ा सज्ञांन लेने के बाद इसे सदन की कारवाई में दर्ज नहीं किया गया है लेकिन इससे इसकी गंभीरता और बढ़ गयी है। माना जा रहा है कि जब सरकार ने अन्तरिम जवाब में सानन और विनित चैाधरी के खिलाफ मामलें लंबित होने का तर्क रखा है तो उसी अनुपात में पर्यटन निगम के पूर्व कर्मचारी नेता गोयल की फारखा के खिलाफ राष्ट्रपति, राज्यपाल, मुख्यमन्त्री और सीबीआई तक को भेजी शिकायतों का संद्धर्भ भी कैट के सामने रखा जा चुका है क्योंकि सीबीआई ने गोयल की शिकायत को विधिवत् प्रदेश की विजिलैन्स को भेज रखा है। इस शिकायत से चैाधरी और फारखा एक ही धरातल पर आ खड़े होते है।
इस परिदृश्य में यह चर्चा उठना स्वाभाविक है कि राज्य सरकार कैट में इस याचिका पर पूरा जवाब क्यों दायर नही कर पा रही है। याचिका में सरकार के खिलाफ ऐसे क्या गंभीर आरोप हैं जिनका जबाब देना कठिन हो रहा है। इस संद्धर्भ में यदि याचिका पर नजर डाली जाये तो उसके मुताबिक प्रदेश में मुख्य सचिव और अतिरिक्त मुख्य सचिव की दो ही काडर पोस्टें है। इनके अनुसार दो एक्स काडर पोस्ट अतिरिक्त मुख्य सचिव के सृजित किये जा सकते हैं। इस तरह मुख्यसचिव और अतिरिक्त मुख्यसचिव के प्रदेश में केवल चार ही काडर पद हो सकते है। राज्य सरकार अपने काम के सुचारू निर्वहन के लिये अतिरिक्त मुख्य सचिव के अन्य पद तो सृजित कर सकती है लेकिन ऐसे पद केवल दो वर्ष के लिये रह सकते हैं और उसके बाद भी इन्हें चलाये रखने के लिये केन्द्र सरकार की अनुमति वांच्छित है और अनुमति के साथ भी केवल अगले तीन वर्ष तक ऐसा किया जा सकता है। लेकिन ऐसे पदों को किसी भी गणित में नियमित काडर करार नहीं दिया जा सकता।
That as already explained in paragraph No. 23, since there is one cadre post of Chief Secretary and one post of Additional Chief Secretary in the State of Himachal Pradesh, therefore, by virtue of powers vested in the State Government, under Rule 9(7) of Pay Rules (supra), two more posts could have been created by the State Govt. in the apex scale. In terms of the said Rules the State Govt. created two ex-cadre posts against the sanctioned strength of State Deputation Reserves vide order, dated 20.08.2007 against which the cadre officers can be posted.
That thus these are the only four posts i.e. two cadre and two ex-cadre posts that are part of the sanctioned strength in accordance with the rules and form part of the State cadre.
That the State Govt., however, has the power to create posts of like nature to cadre posts by virtue of the second proviso to Rule 4(2) of the IAS (Cadre) Rules, 1954, whereby, the State Government may add for a period not exceeding two years and with the approval of the Central Government for a further period not exceeding three years, to a State or Joint Cadre one or more posts carrying duties or responsibilities of a like nature to cadre posts.
That as per Office Memorandum No.11030/4/2012-AIS -II dated 20th January 2015 issued by the Department of Personnel and Training, Govt. of India, clarified in para 3 of the OM ibid that many State Governments have been using the second proviso to Rule 4(2) of IAS Cadre Rules, 1954 for creation of additional ex-cadre posts.The relevant portion of the afore-mentioned OM is reproduced below:
" It is also observed that many State Governments have been using the second provison to Rule 4(2) of IAS Cadre Rules, 1954 for creation of additional ex-cadre posts. The Rule provided that a " State Government concerned may add for a period not exceeding two year [and with the approval of the Central Government for a further period not exceeding three years] to a State or a Joint Cadre one or more posts carrying duties or responsibilities of a like nature to cadre posts". The provision indicates that the temporary posts created may be restricted to one or two posts only. This provision, however, cannot be used for creating a post in the Apex level."
This communication from GOI makes it crystal clear that the temporary posts created may be restricted to one or two posts only. This provision, however, cannot be used for creating a post in the Apex level.
इस वस्तुस्थिति को सामने रखते हुए आज जितने पद इस तरह के सृजित किये जा चुके है उनको चलाये रखने पर भी प्रश्न चिन्ह लग सकता है। पी मित्रा की सेवानिवृति के बाद जब 31-5-16 को फारखा के आदेश हुए थे उस पर प्रोटैस्ट करते हुए चैाधरी 1-6-2016 को 60 दिन के अवकाश पर चले गये थेे। उसके बाद 30-07-16 को मुख्यमन्त्री को इस नजरअन्दाजी पर एक प्रतिवेदन सौंपा गया था। लेकिन आर टी आई में ली गयी जानकरी के मुताबिक यह प्रतिवेदन मुख्यमन्त्री के समक्ष रखने से पहले ही फाईल कर दिया गया। इससे आहत होकर अन्ततः विनित चैाधरी को कैट में दस्तक देनी पड़ी है। अब चैाधरी को फारखा के समकक्ष लाने के निर्देश दिये गये हैं। यदि सरकार उन्हें फारखा के बराबर वेतन भत्ते और अन्य सुविधाएं प्रदान करती है तो इसका अर्थ होगा मुख्यसचिव का एक और पद सृजित करना, जो कि नियमों के मुताबिक संभव नही होगा। बल्कि इस समय प्रिंसिपल एडवाईजर का जो पद दिया गया है वह भी रूल्ज आॅफ विजनैस के तहत परिभाषित नही है। इस तरह यह पूरा मामला बेहद रोचक हो गया है और इसमें जो भी फैसला आयेगा उसका प्रभाव पूरे देश पर पड़ेगा।