धर्मशाला के अपने ही बुने चक्रव्यूह में उलझे वीरभद्र और उनके सलाहकार

Created on Tuesday, 21 March 2017 11:43
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। धर्मशाला प्रदेश की दूसरी राजधानी बनेगी या धर्मशाला को केवल दूसरी राजधानी होने का दर्जा दिया जायेगा यह विधानसभा में उठी बहस में भी साफ नही हो पाया है। क्योंकि मन्त्रीमण्डल ने इस आशय का जो फैसला लिया है उसके प्रतिसदन के पटल तक नहीं पंहुच पायी है। मन्त्रीमण्डल के समक्ष रखे गये प्रस्ताव की Statement of objection मेें क्या कहा है यह भी अभी तक सामने नही आ पाया है। किसी शहर को राजधानी घोषित करने की एक तयप्रक्रिया है और उसके कुछ तय मानक हैं। राजधानी बनाया जाने वाला शहर उन मानकों को कितना पूरा करता है इस विस्तृत विचार करना आवश्यक होता है क्योंकि राजधानी बनाने और एक तहसील का कार्यालय खोलने में अन्तर होता है। अभी तक देश के किसी भी राज्य में एक साथ दो राजधानीयों की व्यवस्था नही है। जम्मू-कश्मीर में भी छः माह के लिये जम्मु और श्रीनगर में पूरी राजधानी रहती है। यह नही होता कि एक ही वक्त में जम्मू और श्रीनगर के लिये एक ही आदेश की दो प्रतियां बनाकर एक जम्मू के नाम से और दूसरी श्रीनगर शहर जो राजधानी के मानक तो पूरे करता हो परन्तु वह Seat of Governance के लिये उपयुक्त स्थान न हो। ऐसे में राजधानी और Seat of Governance दो अलग-अलग स्थान हो सकते हैं। इस परिप्रेक्ष में यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि धर्मशाला को दूसरी राजधानी बनाने की आवश्यकता क्यों खड़ी हुुई है। क्या शिमला से प्रदेश का प्रशासन चलाना कठिन हो रहा है। इन सारे बिन्दुओं पर चर्चा के लिये एक ही मंच है। विधानसभा पटल और उसी में यह चर्चा नही हो पायी है। राजधानी केवल राजधानी होती है वह पहली और दूसरी नही होती है।
लेकिन धर्मशाला-शिमला को लेकर इस  संद्धर्भ  में चर्चा होने से पहले ही इसे राजनीति का रंग दे दिया गया है। धर्मशाला को दूसरी राजधानी घोषित करने के ऐलान के साथ ही पूरे मुद्दे को यह मोड दे दिया गया कि यहां से अधिकारिक तौर पर काम कब से शुरू होगा। कब इसकी अधिसूचना जारी होगी। कब सारे कार्यालय यहां स्थानान्तरित होंगें। इसके विस्तार के लिये धर्मशाला में कंहा जमीन का अधिग्रहण किया जायेगा। जैसे ही इन बिन्दुओं पर जनता में चर्चा उठी उसी अनुपात में शिमला, सोलन और सिरमौर के क्षेत्रों में इसको लेकर विरोध के स्वर मुखर हो गये। चैपाल में वाकायदा इसके खिलाफ प्रस्ताव पारित किया गया। चैपाल से मुखर हो विरोध के स्वर जब अन्य स्थानों पर फैले तो शिमला के कालीबाड़ी हाल में भी इस तरह का विरोध प्रस्ताव पारित करने की रणनीति बनी। लेकिन आयोजन को शक्ल लेने से पहले ही जिला प्रशासन के अपरोक्ष दखल से रद्द कर दिया। लेकिन जैसे ही इस उठते विरोध की भनक वीरभद्र सिंह को मिली उन्होने तुरन्त सदन में यह कह दिया कि अभी शिमला से कोई कार्यालय और कर्मचारी धर्मशाला के लिये स्थानान्तरित नहीं होंगे। लेकिन धर्मशाला को लेकर किया गया मन्त्रीमण्डल का फैसला अभी तक बरकार है। शिमला, सोलन, सिरमौर से इस फैसले को वापिस लेने की मांग उठ गयी है। यदि यह फैसला वापिस न लिया गया तो इस क्षेत्र में इसके परिणाम कांग्रेस और स्वयं वीरभद्र के लिये भारी पड़ सकते हैं क्योंकि जनरोष बढ़ता जा रहा है।
दूसरी ओर धर्मशाला को दूसरी राजधानी घोषित करके प्रदेश के सबसे बडे़ जिले को साधने का जो प्रयास किया गया था उस पर भी वीरभद्र के सदन में दिये जबाव के बाद प्रश्न चिन्ह लगने शुरू हो गये हैं। वीरभद्र के जबाव के बाद यह संदेश गया है कि धर्मशाला को दूसरी राजधानी घोषित करने की ब्यानबाजी और फैसला महज चुनावी घोषणा है। ऐसे में कांगड़ा के जो नेता धर्मशाला को राजधानी घोषित करवा कर इसे अपनी एक बड़ी राजनीतिक उपलब्धी करार देकर चुनावी सुरक्षा सुनिश्चित करने में लगे थे उनके प्रयासों पर भी पानी फिरता नजर आ रहा है। लगता है कि वीरभद्र और उनके सलाहकार धर्मशाला को लेकर रचे चक्रव्यूह को स्वयं ही भेदने में असफल हो गये हैं।