शिमला/शैल। प्रदेश उच्च न्यायालय ने एचपीसीए के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इन्कार कर दिया है। इसमें अनुराग ठाकुर भी अभियुक्त नामजद हैं। इसी के साथ धूमल के खिलाफ 2013 से लंबित चली आ रही आय से अधिक सम्पति की शिकायत पर जांच तेज हो गयी है। इस जांच के लिये विजिलैंस की टीम पंजाब में जालन्धर जाकर आ गयी है। जालंधर में धूमल परिवार का तब से कारोबार चला आ रहा है जब हमीरपुर पंजाब का ही भाग हुआ करता था। बल्कि कांगड़ा, ऊना और हमीरपुर के अधिकांश लोगों का पंजाब के विभिन्न शहरों में कारोबार है और बहुत से लोग तो पंजाब में स्थायी तौर पर ही बस गये हैं लेकिन उनका हिमाचल से भी पुश्तैनी रिश्ता बराबर बना हुआ है। इसलिये धूमल और परिवार की पंजाब में संपतियां होना स्वभाविक है। प्रश्न सिर्फ इतना है कि यह संपतियां वैध स्त्रोतों से बनाई गयी है या नहीं। दूसरा प्रश्न है कि 1998 में जब धूमल हिमाचल के मुख्यमन्त्री बने उसके बाद कितनी संपतियां बनाई गयी और वह क्या परिवार की आय से मेल खाती है या नहीं। धूमल ने इस संद्धर्भ में वीरभद्र को खुली चुनौति दी है कि वह विजिलैंस की बजाये सीबी आई से जांच करवा लें। बल्कि एक बार धूमल ने प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी को भी पत्र लिखकर आग्रह किया था कि इस समय हिमाचल के मुख्यमन्त्री रह चुके तीनों व्यक्ति शान्ता, वीरभद्र और धूमल जिन्दा है इसलिये तीनों की ही सीबीआई से जांच करवा ली जाये। धूमल की इस चुनौति पर शान्ता और वीरभद्र की ओर से कोई प्रतिक्रिया तक नहीं आई थी। धूमल के खिलाफ 2003 में भी कांग्रेस नेताओं आनन्द शर्मा, मोती लाल बोहरा और अमरेन्द्र सिंह ने ऐसे ही आरोप लगाये थे। उस समय बड़ोग में एक पत्रकार वार्ता में आनन्द शर्मा ने ऐसी सम्पतियों की एक लिस्ट भी जारी की थी लेकिन यह आरोपी कभी प्रमाणित नहीं हो पाये।
अब फिर सरकार के एक उप महाधिवक्ता विनय शर्मा की शिकायत पर धूमल के खिलाफ जांच करवाई जा रही है। वीरभद्र जब से आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में सीबीआई और ई डी की जांच झेल रहे हैं तभी से वह इसके लियेे धूमल,अनुराग और जेटली को कोसते आ रहे हैं। वीरभद्र लगातार यह आरोप लगा रहे हैं कि उनके खिलाफ चल रही जांच इनका षडयंत्र है। वीरभद्र धूमल को इस कदर कोस रहें हैं कि वह यहां तक कह रहें हैं कि यदि भाजपा सत्ता में आ गयी तो धूमल इसके मुख्यमन्त्री नही होंगे। वीरभद्र यह भी की रहे हैं कि धूमल पार्टी में भी अलग थलग पड़ते जा रहे हैं। कुल मिलाकर वीरभद्र की प्रतिक्रियाओं से यह स्पष्ट झलक रहा है कि भाजपा में वह धूमल को ही अपना सबसे बड़ा प्रतिद्वन्दी मानते हैं। ऐसे में राजनीतिक विश्लेषकों की नज़र में इस समय धूमल-अनुराग को घेरना वीरभद्र की पहली प्राथमिकता बन चुकी है। क्योंकि यदि वीरभद्र की विजिलैंस धूमल के खिलाफ पुख्ता आधारों पर आय से अधिक संपति का मामला दर्ज कर लेती है तो यह मामला भी समानान्तर रूप से ईडी के पास पंहुच जायेगा जैसे वीरभद्र का अपना मामला पहुंचा हुआ है।
लेकिन धूमल के खिलाफ जब 2003 में अमरेन्द्र सिंह, आनन्द शर्मा और मोतीलाल बोहरा ने आरोप लगाये थे और इन आरोपों पर धूमल ने इन नेताओं के खिलाफ मानहानि का मामला दायर किया था तब अमरेन्द्र सिंह ने तो इसमें बाद में क्षमा याचना कर ली थी। परन्तु आनन्द शर्मा और मोतीलाल बोहरा के खिलाफ यह मामला आगे चला लेकिन अन्त में धूमल इसे अदालत में प्रमाणित नही कर पाये और यह याचिका खारिज हो गयी। इस पर धूमल ने कहा था कि वह उच्च न्यायालय में अपील दायर करेंगे। परन्तु यह अपील आज तक दायर नहीं हुई है। इसी के साथ ए डी जी पी स्व0 वी एस थिंड ने भी धूमल के खिलाफ लोकायुक्त में इसी आश्य की एक याचिका दायर की थी। इस याचिका पर थिंड की मौत के बाद फैसला आया था। इस पर लोकायुक्त ने अपने फैसले में यह कहा है कि इस शिकायत में दर्ज आरोप शिकायत की तिथि से पांच वर्ष पहले के हैं और इस नाते उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर के हैं। इस तरह थिंड के आरोपों पर गुण-दोष के आधार पर फैंसला नहीं आया है। एक तरह से यह आरोप अपनी जगह खडे़ माने जा रहे हैं। अब यदि विजिलैंस सूत्रों की माने तो विजिलैंस इसी आधार पर अपनी जांच को आगे बढ़ा रही है। माना जा रहा है कि विजिलैंस इसी बिन्दु पर कानूनी विशेषज्ञों की राय ले रही है। सूत्रों का यह भी मानना है अब विजिलैंस को जालन्धर से डीपीएस मामले के भी कुछ सूत्र हाथ लगे हैं। लेकिन क्या इन सारे सूत्रों के बाद भी विजिलैंस धूमल के खिलाफ मामला दर्ज कर पायेगी इसको लेकर कुछ हल्कों में संदेह व्यक्त किया जा रहा है। क्योंकि इस समय शान्ता, नड्डा, धूमल से लेकर भाजपा के निचले स्तर के नेताओं नेे भी वीरभद्र सिंह से त्यागपत्र मांगना शुरू कर दिया है बल्कि भाजपा ने वीरभद्र के मामले को पूरे देश में प्रचारित-प्रसारित कर दिया है। सूत्रों का यह भी दावा है कि केन्द्र ने आईबी से भी प्रदेश के राजनीतिक हालात पर रिपोर्ट तलब की है। संभवतः इसी वस्तुस्थिति के कारण राज्यपाल की भूमिका को लेकर भी सवाल उठे हैं। इस समय प्रदेश का राजनीतिक परिदृश्य एकदम अनिश्चितता की ओर बढ़ता नज़र आ रहा है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि क्या विजिलैंस धूमल के खिलाफ मामला दर्ज करने का साहस कर पायेगी।