शैल/शिमला। विधानसभा पटल पर रखी कैग रिपोर्ट खुलासे के मुताबिक वन विभाग की चपत लगी है। वन महकमे के मन्त्री ठाकुर सिंह भरमौरी और वन निगम के उपाध्यक्ष केवल सिंह पठानियां दोनो ही मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह के अति विश्वस्त माने जाते है। इसी कारण पठानिया का दखल विभाग मे भी विशेष चर्चा का विषय बना हुआ है। कैग रिपोर्ट के परिणामों के आधार पर संबधित अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक मामला तक दर्ज किया जा सकता है ऐसा एग्रो पैकेजिंग कारपोरेशन के केस में हो भी चुका हैं लेकिन आज विभाग और निगम का राजनीतिक नेतृत्व मुख्यमन्त्री के खास लाडलों के पास है इसलिये इस तरह का कड़ा कदम नही उठाया जायेगा यह तय है। फिर भी कैग का खुलासा पाठकों के सामने रखा जा रहा है।
वनों के उत्पादन, प्रबन्धन और संरक्षण की जिम्मेदारी वन विभाग के पास है। लेकिन वन उपज के दोहन की जिम्मेदारी वन विभाग के पास है। वन उपज के दोहन के लिये संबधित वन क्षेत्र को एक तय समय सीमा तक निगम को लीज पर दिया जाता है। वन उपज के दोहन के लिये पेड़ कटान आदि हर चीज के रेट निर्धारित करने के लिये एक प्राईसिंग कमेटी बनी हुई है। मई 2011 में इस कमेटी ने तय किया था कि वन उपज के लिये प्रदेश के हर कोने में एक समान रेट लागू होंगे। 1991 में विभाग ने यह निर्देश जारी किये थे कि जो वनभूमि गैर वन उपयोग के लिये आवंटित की जायेगी उस पर पाये जाने वाले वृक्षों की कीमत संबधित ऐजैन्सी से ली जायेगी। 2004 में ब्लाॅक अधिकारियों और रंज अधिकारियों को पीसीसीएफ की ओर से निर्देश जारी किये गये थे कि अपने - अपने क्षेत्र का नियमित दौरा करें और यदि किसी तरह का कोई अवैध कटान सामने आता है तो उसकी तुरन्त रिपोर्ट करके अगली कारवाई को अन्जाम दें। ऐसे मामलों में पुलिस में भी समानान्तर कारवाई करके एफआई आर दर्ज करने का भी प्रावधान है। अवैध कटान आदि के मामलों में जब्त की गयी लकड़ी को तुरन्त सुपुर्ददारी में लेकर उसकी सुरक्षा करना और फिर उसकी निलामी आदि का प्रबन्ध करना फॅारेस्ट एक्ट 1951 की धारा 52 में पहले से ही दर्ज है।
इस तरह प्रबन्धन की जिम्मेदारी है कि राॅयल्टी की उगाही या उसके आकलन के कारण विभाग को राजस्व का नुकसान न हो। राॅयल्टी के साथ ही यह भी सुनिश्चित करना प्रबन्धन की जिम्मेदारी होती है कि यदि लीज अवधि के अन्दर काम पूरा नही हो सका है और उसके लिये समय अवधि बढ़ाई गयी है। उसके लियेे फीस ली जानी होती है। जब्त की गयी लकडी़ की समय अवधि बढ़ाई गयी है तो उसके लिये बढी हुई फीस ली जानी होती है। जब्त की गयी लकड़ी की समय पर निलामी सुनिश्चित करना, यह सब कुछ विभाग के प्रशासकीय दायित्वों का एक बहुत अहम भाग है। विभाग के शीर्ष प्रबन्धन और राजनीतिक नेतृत्व की यह जिम्मेदारी है कि वह देखे कि विभाग के कर्मचारी/अधिकारी इन दायित्वों को ईमानदारी से निभा रहे है या नहीं जब यह दायित्व नहीं निभाने के कारण सरकारी राजस्व को हानि पहुंचाई जाती है और उसके लिये किसी को भी जिम्मेदार नही ठहराया जाता है तब उस स्थिति को जंगल राज की संज्ञा दी जाती है इस जंगल राज के कारण आनी, बिलासपुर, देहरा , किन्नौर, करसोग, मण्डी, नाचन, रेणुकाजी, सिराज, शिमला, सोलन और ठियोग मण्डलों में जब्त की गई लकड़ी की निलामी न किये जाने के कारण अब 6.94 करोड़ के राजस्व का नुकसान हो चुका है। विभाग ने 2011 से 2015 के बीच वन विभाग को 57488.75 घन मीटर लकड़ी की निकासी का काम सौंपा। इसमें विभाग की 2011 की प्राईसिंग कमेटी के अनुसार रायल्टी का आकलन न करने के कारण 8.30 करोड़ के राजस्व की हानि हुई है। गैर वन उपयोग के लिये किन्नौर में 20 मैगवाट के राओरा हाईड्रो पावर को दी गयी जमीन पर खडे 536 पेड़ो की कीमत प्रौजेक्ट से न वसूलने के कारण 32.50 लाभ का नुकसान हुआ है। इसी तरह ई- सी भवन शिमला, छोटा शिमला कार पार्किंग निर्माण और लोक निर्माण विभाग को एवर सन्नी, गोलचा - भौंट सकड़ निर्माण और भूमि के एवज में यूजर ऐजैन्सी से 50.70 लाख नही वसूले गये। सिराज में 2008 एक्सटैंशन फीस नही वसूली। इसी तरह चुराह में 91 पेड़ो के अवैध कटान की कोई डैमेज रिपोर्ट तक नही काटी गयी और न ही कोई एफआईआर दर्ज करवायी गयी। इससे करीब एक लाख का नुकसान हुआ। इन मामलों का कैग ने गंभीर संज्ञान लिया है लेकिन सरकार के स्तर पर कहीं कोई कारवाई नहीं है।