राज्य सहकारी बैंक की हिम ऋण निवारण योजना सवालों में

Created on Monday, 22 May 2017 09:07
Written by Shail Samachar

सीमा वर्मा का मामला चर्चा में 

शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश राज्य सहकारी बैंक पिछले कुछ समय से ‘‘शेडयूल्ड बैंक’’ की श्रेणी में आ गया है और अब वाणिज्यिक ऋण देने का भी अधिकारी हो गया है। बैंक ने 05-05-2017 से हिम ऋण निवारण योजना शुरू कर रखी है। इस योजना के तहत कृषि तथा गैर कृषि क्षेत्र के व्यक्तिगत ऋण, स्वयं सहायता समूह, सयुंक्त देयता समूह, फर्म, पार्टरनशिप फर्मे जिनके खाते 31-3-2011 या इससे पहले ही एनपीए हो गये हो योजना के दायरे में आते  हैं। ऐसे कर्जदारों को ओटीएस के तहत बहुत सारी सुविधाएं दी गयी हैं। यह योजना 31.3.2011 को या उससे पहले ही एनपीए हो चुके कर्जदारों पर ही लागू होगी। बैंक 31.3.2011 के बाद ही शेडयूल्ड बैंक की श्रेणी में आया है। जिसका अर्थ है कि तब तक गैर सहकारी क्षेत्र के लिये कमर्शियल लोन बैंक नहीं दे सकता था। यह राज्य बिजली बोर्ड के माध्यम से आईडर फाईनेश्यल सर्विसज चण्डीगढ़ को दिये ऋण के प्रकरण में स्पष्ट हो चुका है। ऐसे में कुछ हल्कों में यह सवाल उठ रहा है कि क्या 31.3.2011 से पहले तक के ऋण धारकों को इस योजना का लाभ दिया जा सकता है। बैंक सूत्रों के मुताबिक कुछ होटलों और हाईडल परियोजनाओं को दिये ऋण एनपीए हो चुके हैं। संभवतः इस योजना को लाने में ऐसे लोगों का भी दवाब रहा है।
इसी कड़ी में न्यू शिमला के सैक्टर दो में एक श्रीमति सीमा वर्मा को दिया लोन भी बैंक के गलियारों में काफी चर्चित हो रहा है। सीमा वर्मा ने न्यू शिमला में मकान बनाने के लिये बैंक की माल रोड शाखा से वर्ष 2000 में कोई दस लाख का ऋण लिया था। सीमा वर्मा ने जो मकान बनाया है वह उसकी अपनी जमीन में न होकर हिमुडा की जमीन पर है। यह 20.6.2015 को एसओ शिमला द्वारा दिये फैसले में स्पष्ट हो चुका है। इस संद्धर्भ में सीमा चैहान के खिलाफ 2013 से ही शिकायतें चल रही थी। विजिलैन्स तक शिकायत गयी थी। राजस्व अधिकारियों द्वारा की गयी डिमारकेशन के समय विजिलैन्स के एक इन्सपैक्टर और एक सब इन्सपैक्टर भी शामिल रहे हैं। हिमुडा के जेई और पटवारी भी डिमारकेशन में शामिल रहे  हैं इन सबके ब्यान रिकार्ड पर लगे हैं। एस ओ के फैसले की जानकरी हिमुडा और विजिलैन्स तथा सरकार के राजस्व विभाग को रही है। लेकिन सरकारी तन्त्र के किसी भी कोने से सीमा वर्मा के खिलाफ कोई कारवाई अभी तक अमल में नही लायी गयी है। जबकि न्यू शिमला रैजिडैन्शयल अलाॅटी संगठन ने वाकायदा सरकार को दिये प्रतिवेदन में इस प्लाॅट को रैजिडैन्शयल सोसायटी को रिस्टेार करने की मांग कर रखी है। इस सोसायटी के मुताबिक न्यू शिमला काॅलीनी की जमीन की मालिक हिमुडा नही है। हिमुडा केवल ट्रस्टी है। न्यू शिमला के इस पक्ष पर शैल आने वाले दिनों में खुलासा करेगा।
सीमा वर्मा के इस मकान में वर्ष 2009 से राज्य सहकारी बैंक की ब्रांच भी कार्यरत है। जब इसकी डिमारकेशन की गयी थी उसकी जानकारी इस ब्रांच को रही है और ब्रांच के माध्यम से बैंक के शीर्ष प्रबन्धन को भी रही है। बैंक सूत्रों के मुताबिक सीमा वर्मा को वर्ष 2000 में दिया गया दस लाख का ऋण पहले दिन से ही एनपीए हो गया था। बल्कि इसी कारण से यहां पर बैंक की ब्राच खोलने का प्रबन्ध किया गया है। बैंक इस ब्रांच का करीब 7800 रूपये मासिक किराया दे रहा है। लेकिन इसके बावजूद यह ऋण मूल के तीन गुणा से भी अधिक हो गया है। सूत्रों की माने तो बैंक प्रबन्धन ‘‘हिम ऋण निवारण’’योजना के तहत सीमा वर्मा को बड़ी राहत देने का प्रयास कर रहा है। सीमा वर्मा का मकान उसकी अपनी जमीन पर नही है। इसकी जानकारी बैंक हिमुडा और सरकार सबको है लेकिन किसी भी स्तर पर इस मामले पर कोई कारवाई नहीं हो रही है। चर्चा है कि बैंक के शीर्ष प्रबन्धन का पूरा सहयोग सीमा वर्मा को मिल रहा जिसके चलते कहीं से भी कोई कारवाई नहीं हो रही है। सूत्रों की माने तो इसकी जानकारी प्रदेश उच्च न्यायालय को भी भेज दी गयी है। क्योंकि 2012 में उच्च न्यायालय ने न्यू शिमला काॅलोनी को लेकर आये मामलों में दिये फैसले में हिमुडा की कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रश्न चिन्ह लगाये हैं। सीमा वर्मा जैसे और भी कई मामले चर्चा में आ रहे हैं। माना जा रहा है कि इस ऋण निवारण योजना से बैंक को करोड़ो का नुकासान पंहुचेगा।