वीरभद्र का विरोध ही बना सुक्खु की ताकत

Created on Monday, 05 June 2017 06:19
Written by Shail Samachar

                                  18 विधायकों ने किया सुक्खु का समर्थन
शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह एक लम्बे अरसे से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ठाकुर सुखविन्दर सिंह सुक्खु को हटवाने का प्रयास करते आ रहे हैं। संगठन की कार्य प्रणाली से लेकर पदाधिकारियों तक वीरभद्र सिंह के निशाने पर रहते आ रहें है। कभी पिछले दिनों विधायक दल की विशेष बैठक में भी जहां विधायकों ने वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में विश्वास दिखाकर अगला विधानसभा चुनाव भी उन्ही के नेतृत्व में लड़ने का संकल्प लिया वहीं पर कांग्रेस अध्यक्ष को लेकर भी कुछ लोगों ने सवाल उठाये। इसके बाद जब जीएसटी विधेयक पारित करने के लिये विधानसभा का दो दिन के लिये विशेष सत्र बुलाया गया था तब भी विधायकों के हस्ताक्षर करवाये गये थे। इस बार भी मुख्यमन्त्री पर विश्वास के नाम पर ही यह हस्ताक्षर वाई सरकुलेेशन करवाये गये और 31 विधायकों ने हस्ताक्षर कर दिये।
लेकिन जब यह हस्ताक्षरित प्रस्ताव कांग्रेस हाईकमान के पास प्रभारी के माध्यम से पहुंचाया गया तब इसका मसौदा बदलकर यह प्रस्ताव सुक्खु को बदलने का मांगपत्र बन गया। इस तरह प्रस्ताव का मसौदा बदलने से फिर विधायकों में रोष फैल गया। यह रोष इतना बढ़ा कि एक बार भी कुछ विधायकों में समर्थन का प्रस्ताव तैयार कर दिया और इस प्रस्ताव पर 18 विधायको ने अपने हस्ताक्षर कर दिये। सूत्रों की माने तो इस प्रस्ताव में स्पष्ट कहा गया कि पहले प्रस्ताव की उन्हे सही जानकारी नही दी गयी थी। यदि सही जानाकरी होती तो वह ऐसे प्रस्ताव पर कतई हस्ताक्षर न करते। सुक्खु के समर्थन में 18 विधायकों के आ जाने से एक बार फिर वीरभद्र सिंह की रणनीति की करारी हार हुई है।
इस परिदृश्य में यह सवाल उभरना स्वाभाविक है कि वीरभद्र और उनके कुछ विश्वस्त लोग बार- बार सुक्खु को हटवाने क्यों प्रयास कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि वीरभद्र के इस कार्यकाल में विभिन्न निगमो/वार्डोे में जितनी राजनीतिक ताजपोशीयां हुई है उनके कारण करीब चालीस विधानसभा हल्कों में समानान्तर सत्ता केन्द्र बन गये हैं। इनमें ताजपोशीयां पाये सभी लोग आने वाला विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं। यह भी सार्वजनिक हो चुका है कि ताजपोशीयां पाने वाले अधिकांश लोग विक्रमादित्य सिंह के समर्थन से इस मुकाम तक पहुंचे है। यह भी जगजाहिर है कि इन्ही लोगों ने वीरभद्र बिग्रेड का गठन किया था जिसे भंग करके अब एक एनजीओ की शक्ल दी गयी है। यह एनजीओ भी एक प्रकार से समानान्तर राजनीतिक मंच है। इसके लोग भी विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं लेकिन इसी एनजीओ के अध्यक्ष ने कुल्लु में सूक्खु के खिलाफ मानहानि का मामला दायर कर रखा है। जिसका सीधा अर्थ है कि सुक्खु तो बतौर कांग्रेस अध्यक्ष टिकट के लिये ऐेसे लोगों के नाम का अनुमोदन करेगा नही। संभवतः इसी स्थिति को भांपते हुए विक्रमादित्य भी कई बार यह ब्यान दे चुके हैं कि केवल जीतने की संभावना रखने वालो को ही टिकट दिया जाना चाहिये लेकिन जीत की संभावना की क्या परिभाषा है इसका कोई खुलासा नही किया गया है। ऐसे में केवल व्यक्तिगत वफादारी ही इसकी कसौटी रह जाती है। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक वीरभद्र की रक्षा की मंशा से ही बार-बार सुक्खु को हटवाने का प्रयास करते आ रहे हैं। क्योंकि केवल पार्टी अध्यक्ष बनकर ही इन लोगों का टिकट के लिये अनुमोदन किया जा सकता है और यदि ऐसा न हो पाया तो संगठन में एक बड़ा विघटन भी शक्ल ले सकता है लेकिन इस समय वीरभद्र सिंह का यह सुक्खु विरोध ही सुक्खु की राजनीतिक ताकत बन गया है। क्योंकि वीरभद्र के विरोध का दम रखने वाला ही दूसरों की रक्षा कर पायेगा।