नेतृत्व की अस्पष्टता भारी पड़ेगी भाजपा पर
शिमला/शैल। नगर निगम चुनावों में जीत का सेहरा किसके सिर सजेगा यह स्थिति स्पष्ट होने की बजाये लगातार उलझती जा रही है। क्योंकि भाजपा और कांग्रेस दोनों बडे़ दावेदारों में अपने भीतर के असंतुष्टों/विद्रोहीयों की समस्या लगभग बनी हुई है। भाजपा ने जिस तरह से टिकट वितरण किया है उससे बहुत सारेे स्थानों पर उनकेे विद्रोही खुलकर सामने आ गये हैं। भाजपा ने कई वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को अनुशासनात्मक कारवाई के लिये नोटिस जारी कर दिये हैं। इस चुनाव के टिकट वितरण में ही पार्टी की गुटबंटी न चाहते हुए भी सामने आ गयी है जो निश्चित रूप से नुकसानदेह सिद्ध होगी। इसी गुटबंदी के कारण टिकट वितरण में परिवारवाद तक के आरोप लग गये। फिर आज तक निगम की सत्ता पर भाजपा का कब्जा नही हो पाया है। ऐसे में भाजपा को बहुमत मिल पाने की संभावनाएं बहुत कम होती जा रही हैं। हालांकि चुनाव प्रचार में भाजपा कांग्रेस के बहुत आगे चल हरी है।
कांग्रेस में सुक्खु-वीरभद्र विवाद के कारण पार्टी शुरू में यह फैसला ही नही ले पायी कि उसे उम्मीदवारों की अधिकृत सूचिजारी करनी चाहिये या नही। सबको अपने दम पर चुनाव लड़ने की छुट दे दी। लेकिन जब यह चर्चाे का विषय बना और सुक्खु-वीरभद्र को हाईकमान ने तलब किया तब नामांकन वापसी के दिन अधिकृतसूची जारी कर दी उसमें भी सारे वार्डो पर सहमति नही बन पायी। परिणामस्वरूप आधे से ज्यादा बार्डो में समानान्तर प्रत्याक्षी मौजूद हंै। फिर जिन मन्त्रीयों/विधायकों एवम अन्य नेताओं की चुनाव प्रचार से डियूटी लगायी गयी है वह अभी तक सामने आये नही हैं। सबके आने की उम्मीद भी नही है। कांगे्रस की इस स्थिति से स्पष्ट हो जाता है कि पार्टी अपने संख्याबल पर सत्ता पर काबिज नही हो पायेगी। हालांकि अब तक लगभग कांग्रेस का कब्जा निगम पर रहा है।
माकपा का पांच वर्ष निगम की सत्ता पर कब्जा रहा है और इस कब्जे के कारण ही आज तीस वार्डो से चुनाव लड़ रही है। माकपा ने चुनावी रणनीति के तहत करीब हर वार्ड में काफी वोटरों का पंजीकरण करवाया है। यह सारे वोटर माकपा के लिये ही मतदान करेगें यह तय है। इस रणनीति के तहत यह मानना गलत होगा कि माकपा के पाषर्दों की संख्या अब पहले से दोगुणी नही हो जायेगी फिर इस कार्यकाल में पानी आदि की जो समस्या रही हैं उसके लिये कांग्रेस और भाजपा भी बराबर के जिम्मेदार माने जायेंगे क्योंकि इनका संख्याबल माकपा से कहीं ज्यादा था।
इस परिदृश्य में निगम चुनाव का आकलन करते हुए यह सामने है कि निगम तीन विधानसभा क्षेत्रों शिमला, शिमला ग्रामीण और कुसुम्पटी में फैला है। शिमला ग्रामीण से वीरभद्र स्वयं हैं और कुसुम्पटी से अनिरूद्ध भी कांग्रेस के ही विधायक हैं करीब नौ वार्ड इन दो विधानसभा क्षेत्रों से हैं। माना जा रहा है कि इनमें बहुमत कांग्रेस के पक्ष में रहेगा और माकपा भाजपा यहां बराबरी पर रहेंगे। शिमला के 25 वार्ड हैं और पिछली बार भी इतने ही थे। पिछली बार भाजपा को यहां बहुमत मिला था। पिछली बार के निगम चुनावों के दौरान भाजपा की प्रदेश में सरकार थी। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी उस समय कौल सिंह थे। इसलिये उन चुनावों से वीरभद्र सिंह पर कोई सीधा राजनीतिक प्रभाव नही पड़ता था। बल्कि यह चुनाव हारने से वीरभद्र के प्रदेश अध्यक्ष बनने का दावा मजबूत हो गया और वह फिर बन भी गये। आज वीरभद्र प्रदेश के मुख्यमन्त्री हैं सातवीं बार बनने का दावा कर रहें है। भाजपा नेतृत्व पिछले दो साल से सरकार गिरने के दावे करता आ रहा है जो सफल नही हुए हैं। वीरभद्र के मामलें भी एक मोड़ पर आकर रूक गये हैं और इसी कारण से इन चुनावों में भाजपा इनका जिक्र तक करने का साहस नही कर पा रही है। वीरभद्र निगम चुनावों की राजनीतिक अहमियत को समझते हैं और स्वयं मैदान में आ गये हैं। इसी के साथ यह भी महत्वपूर्ण है कि शिमला जंहा प्रदेश की राजधानी है वहीं जिले का मुख्यालय भी है। इस समय अवैध कब्जों के प्रकरण में शिमला सबसे ज्यादा प्रभावित है। यहां के बागवान सबसे ज्यादा पीडित होने वाले हैं। इनको अपने हितों की रक्षा का सबसे ज्यादा भरोसा वीरभद्र पर ही है। इसी भरोसे के कारण निगम पर सबसे ज्यादा कब्जा कांग्रेस का रहा है। विधानसभा चुनावों में भी जिले में कांग्रेस का पलड़ा इसी कारण भारी रहता रहा है। निगम के जिन वार्डों में शिमला जिले के वोटरों का बहुमत है वहां पर अक्सर कांग्रेस ही जीत दर्ज करती रही है क्योंकि यह मतदाता अन्त में वीरभद्र के संकेत पर ही मतदान करते हैं यह सर्वविदित है। आज भी राजनीतिक परिदृश्य पहले जैसा ही है। फिर भाजपा में नेतृत्व के प्रश्न पर कोई स्पष्टता नही उभर पायी है इस परिदृश्य में विश्लेष्कों का मानना है कि इन निगम चुनावों में भाजपा को सत्ता मिलना संभव नहीं है। यह हो सकता है कि यदि कांग्रेस को अपने दम पर 18 का आंकड़ा हासिल नही होता है तो माकपा के साथ मिलकर बहुमत बनाया जायेगा क्योंकि माकपा की भी राजनीतिक निकटता कांग्रेस के ही साथ है भाजपा के नही। ऐसे में साफ है कि अन्त में निगम पर फिर कांग्रेस का ही कब्जा होगा भले ही माकपा को भी कुछ हिस्सा मिल जाये।