शिमला/शैल। नगर निगम शिमला के चुनावों के बाद जहां भाजपा ने सत्ता परिवर्तन के लिये रथ यात्राएं शुरू की हैं वहीं पर वीरभद्र की विजिलैन्स ने भी अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। भाजपा की रथ यात्रा में वीरभद्र सरकार के भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर जनता को जागृत किया जा रहा है। उधर विजिलैन्स ने भ्रष्टाचार के दो मामलों में एफआईआर दर्ज कर ली है। एक एफआईआर धूमल शासन में खरीदी गयी एंटी हेलगन मामले में है तो दूसरी आईपीएच की गिरी वाॅटर स्पलाई योजना को लेकर है। इन दोनों मामलों में विजिलैन्स को एफआईआर दर्ज करने की अनुमति अभी निगम चुनावों के दौरान ही दी गयी है। स्वभाविक है कि यह अनुमतियां दिये जाने से पहले यह मामले मुख्यमन्त्री और उनके सचिवालय के संज्ञान में लाये गये होंगे क्योंकि गृह और सतर्कता का कार्यभार भी मुख्यमन्त्री के अपने ही पास है। यह मामले कांग्रेस के आरोप पत्र में दर्ज रहे हैं और आरोप पत्र विजिलैन्स को जांच के लिये भी सत्ता संभालने के बाद हुई पहली मन्त्रीमण्डल की बैठक में भेजने का निर्णय ले लिया गया था। ऐसे में यह सवाल उठना भी स्वभाविक है कि यह मामले अभी क्यों दर्ज हुए और क्या इनके अन्तिम परिणाम अभी आ पायेंगे? ऐसी संभावना कम है क्योंकि अब तक जिन मामलों पर विजिलैन्स का ध्यान केन्द्रित रहा है उनमें ही कोई परिणाम सामने नही आये हैं। ऐसे में इन नये मामलों को चुनावी रणनीति के आईने में ही देखा जायेगा। कांग्रेस और वीरभद्र सरकार की इस रणनीति के क्या परिणाम होंगे इसको लेकर सवाल उठने शुरू हो गये हैं, क्योंकि निगम चुनावों में मिली हार का ठीकरा वीरभद्र और सुक्खु ने खुलकर एक दूसरे के सिर फोड़ा है। दूसरी ओर भाजपा अपनी रथ यात्रा में भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर जनता से सत्ता परिवर्तन का आग्रह कर रही है। भाजपा का सारा शीर्ष नेतृत्व शान्ता से लेेकर नड्डा तक वीरभद्र सरकार को भ्रष्टाचार का पर्याय प्रचारित कर रहा है। सरकार पर माफियाओं को संरक्षण देने के आरोप लगाये जा रहे हैं। वीरभद्र सीबीआई से जमानत पर चल रहे है और उनका अधिकांश समय अदालतों में केसों के प्रबन्धन में व्यतीत हो रहा है। यह आरोप लगाया जा रहा है कि जिस मुख्यमन्त्री का ज्यादा वक्त अदालतों में गुजर रहा है उसके पास प्रदेश के विकास के बारे में सोचने का समय ही कहां बचा है। आम आदमी को थोड़े समय के लिये प्रभावित करने में इस प्रचार से लाभ मिल सकता है लेकिन जब इसी तस्वीर का दूसरा चेहरा जनता के सामने आयेगा तो स्थिति एकदम दूसरी हो जायेगी। क्योंकि यह सही है कि वीरभद्र केन्द्र की जांच ऐजैन्सीयों द्वारा बनाये गये मामलों में उलझे हुए हैं और इन मामलों के अन्तिम परिणाम नुकसानदेह भी हो सकते है। परन्तु बड़ा सवाल तो यह है कि अन्तिम परिणाम आयेगा कब? सीबीआई मामलें में वीरभद्र सहित सारे नामज़द अभियुक्तों को जमानत मिल चुकी है। इस मामले में राजनीतिक लाभ मिलना संभव नही है। सीबीआई मामले को अदालत से अन्जाम तक पहुंचाने में समय लगेगा। सीबीआई के साथ ईडी में चल रहे मनीलाॅंड्रिंग प्रकरण में ऐजैन्सी ने 23 मार्च 2016 को पहला अटैचमैन्ट आर्डर जारी किया और करीब आठ करोड़ की चल/अचल संपत्ति अटैच की। इसके बाद जुुलाई में वीरभद्र सिंह के एलआईसी ऐजैन्ट आनन्द चैहान की गिरफ्तारी हुई जो अब तक चल रही है। इस गिरफ्तारी के बाद अब ईडी ने एक और अटैचमैन्ट आदेश जारी किया है लेकिन इस पर कोई गिरफ्तारी नही हुई है। बल्कि अब जो तिलकराज प्रकरण हुआ है वह भी ईडी में जा पहुंचा है। तिलक राज और अशोक राणा गिरफ्तार चल रहे हैं। परन्तु उससे आगे कुछ नही हुआ है और यह न होना ही सारे प्रकरण को राजनीतिक द्वेष का रंग दे रहा है। ईडी पर अदालत की ओर से कोई रोक नहीं है। तिलकराज प्रकरण में सूत्रों के मुताबिक जो पैसा लिया जा रहा था वह वास्तव में ही मुख्यमन्त्री के ओएसडी रघुवंशी तक जाना था। उच्चस्थ सूत्रों के मुताबिक दिल्ली में एक बडे को 1.85 करोड़ की अदायगी की जानी थी। इसमें 1.50 करोड़ का प्रबन्ध शिमला में बैठे प्रबन्धकों ने कर लिया था। शेष 35 लाख तिलकराज ने जुटाना था और उसी के जुगाड़ में तिलकराज सीबीआई के ट्रैप का शिकार हो गया। चर्चा है कि इस ट्रैप के पिछले दिन ही चण्डीगढ़ के एक हितैषी ने जिससे सुभाष आहलूवालिया के प्रकरण में ईडी कभी कुछ पुछताछ भी कर चुकी है उसने बद्दी जाकर तिलकराज सहित ड्रग और पाल्यूशन के बड़ो को भी सचेत किया था कि किसी के भी खिलाफ कभी भी बड़ी कारवाई हो सकती है और दूसरे ही दिन यह घट गया। इसी तरह यह भी चर्चा है कि जब ईडी ने मई में वीरभद्र को रात करीब दस बजे तक पूछताछ के लिये रोका था उस दिन भी भाजपा के एक बडे़ नेता के ईशारे पर बड़ी कारवाई को रोक दिया गया था। चर्चा है कि इस बडे़ नेता ने अरूण जेटली के समाने यह रखा है कि यदि वीरभद्र के खिलाफ बड़ी कारवाई को अन्जाम दिया जाता है तो भाजपा को इससे प्रदेश के चुनावों में 25 सीटों का नुकसान हो सकता है। भाजपा के इस बड़े नेता की यह आशंका नगर निगम के चुनावांे में सही भी सिद्ध हुई है। क्योंकि इतने बडे चूनावी प्रचार के वाबजूद भाजपा को परिणामों में स्पष्ट बहुमत नही मिल पाया। वीरभद्र और सुक्खु के टकराव के परिणामस्वरूप कांग्रेस चुनाव में कहीं नजर ही नही आ रही थी। इतनी सफलता भी वीरभद्र के व्यक्तिगत प्रयासों से ही मिली है। ऐसे में आने वाले दिनों में वीरभद्र की विजिलैन्स की सक्रियता और वीरभद्र मामले में भाजपा की अस्पष्टता क्या रंग दिखाती है। इस पर सबकी निगाहें रहेंगी।