शिमला/शैल। प्रदेश का शिक्षा के लिये गठित रेगुलेटरी कमीशन एक वर्ष से भी अधिक समय से खाली चला आ रहा है। प्रदेश में पिछले छः महीने से ही कोई लोकायुक्त भी नही है। पिछले दिनो प्रदेश प्रशासनिक ट्रिब्यूनल में प्रशासनिक सदस्य का खाली हुआ पद भी अभी तक भरा नहीं गया है। यह सारे संस्थान महत्वपूर्ण संस्थाएं हैं और इनका इस तरह खाली रहना न केवल इनकी अहमियत को ठेस पहुंचाता है बल्कि सरकार और उसके शीर्ष प्रशासन की नीयत और नीति पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है। रेगुलेटरी कमीशन और प्रशासनिक ट्रिब्यूनल में सरकार के मौजूदा या सेवानिवृत हो चुके बडे़ बाबूओं में से ही किसी की तैनाती होनी है। इन पदों के लिये दर्जनों बाबुओं ने दावेदारी भी पेश कर रखी है। लोकायुक्त के पद पर किसी उच्च न्यायालय का वर्तमान या सेवानिवृत मुख्य न्यायधीश या फिर सर्वोच्च न्यायालय का भी ऐसा ही कोई न्यायधीश नियुक्त होना है। चर्चा है कि इस पद के लिये अन्यों के अतिरिक्त प्रदेश उच्च न्यायालय के सेवानिवृत मुख्य न्यायधीश मंसूर अहमद मीर और सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत मुख्य न्यायधीश टी एस ठाकुर भी दावेदार हैं। इन दोनों के ही मुख्यमन्त्राी के साथ अच्छे व्यक्तिगत संबंध है। संभवतः इन्ही संबंधो के कारण यह चयन कठिन हो गया है।
लेकिन रेगुलेटरी कमीशन और प्रशासनिक ट्रिब्यूनल में नियुक्तियां क्यों नही हो पा रही हैं इसको लेकर कई तरह की चर्चाएं उठनी शुरू हो गयी हैं। इस समय वीसी फारखा की बतौर मुख्यसचिव पदोन्नति और तैनाती को उनसे वरिष्ठ विनित चैधरी ने कैट में चुनौती दे रखी है। इसमें अभी प्रदेश सरकार और केन्द्र सरकार से जवाब दायर होने हैं। माना जा रहा है कि इस समय केन्द्र सरकार में सचिव कार्मिक का पदभार अजय मित्तल के पास आ गया है और मित्तल हिमाचल कार्डर से ही ताल्लुक रखते हैं इसलिये अब केन्द्र सरकार से जवाब आने में ज्यादा समय नही लगेगा। बल्कि फारखा के बाद तरूण श्रीधर दूसरे वरिष्ठ अधिकारी हैं और केन्द्र के सचिव पैनल में आ गये है। मुख्यमन्त्राी ने उनके दिल्ली जाने को भी हरी झण्डी दे दी है। परन्तु विनित चैधरी की याचिका में फारखा से ज्यादा तरूण श्रीधर की भूमिका पर सवाल खड़े किये गये हैं। संभवतः इन्ही सवालों के साथ उनके केन्द्र में सचिव पद के चयन पर भी सवाल उठाये गये हैं और इन सवालों पर राज्य सरकार से भी जवाब मांगा गया है। इस परिदृश्य में फारखा और श्रीधर दोनों ही अधिकारियों के रेगुलेटरी कमीशन या ट्रिब्यूनल में जाने की संभावना बहुत कम है क्योंकि अभी दोनों की नौकरी काफी शेष है। फिर फारखा को मुख्यमन्त्री भी छोड़ना नही चाहंेगे। लेकिन कल को विधानसभा चुनावों की घोषणा के साथ ही इलैक्शन कोड लागू होने पर यदि उनके मुख्य सचिव रहने पर चुनाव आयोग में आपत्ति उठा दी जाती है तो उस स्थिति में एकदम सारा परिदृश्य बदल जायेगा। लेकिन इस स्थिति को आने में अभी दो तीन माह का समय लग जायेगा।
ऐसे में यह सवाल सचिवालय के गलियारों की चर्चा बना हुआ है कि अभी निकट भविष्य में इन पदों को भरे जाने की संभावना नही है। परन्तु इसी के साथ यह भी चर्चित हो रहा है कि यदि कोड आॅफ कन्डक्ट लागू होने तक यह पद नही भरे जाते हैं तो फिर यह नियुक्तियां नई सरकार के गठन के बाद ही हो पायेंगी। मजे की बात यह है कि इन अहम पदों के खाली चले आने पर विपक्ष की ओर से भी कोई सवाल नही उठाये जा रहें हैं। रेगुलेटरी कमीशन में मुख्यमन्त्री के प्रधान निजि सचिव सुभाष आहलूवालिया की पत्नी मीरा वालिया ने प्रधानाचार्य के पद से सेवानिवृत होकर बतौर सदस्य ज्वाईन किया था लेकिन जैसे ही लोक सेवा आयोग में सदस्य का पद खाली हुआ तो मीरा वालिया ने रेगुलेटरी कमीशन से त्यागपत्रा देकर लोकसेवा आयोग में जिम्मेदारी संभाल ली। अब रेगुलैटरी कमीशन बिल्कुल खाली हो गया है। इन पदों को समय पर भरने के लिये और सारी स्थिति को मुख्यमन्त्राी के संज्ञान में लाने की जिम्मेदारी मुख्यमन्त्री के अपने ही कार्यालय की होती है, परन्तु मुख्यमन्त्री के कार्यालय पर तो सेवानिवृत अधिकारियों का कब्जा है। उन्होने चुनाव लड़कर जनता से वोट मांगने तो जाना नही है। फिर ऐसे पदों के इतने लम्बे समय तक खाली रहने से सरकार की जनता में छवि पर क्या असर पड़ता है इससे उनको कोई सरोकार कैसे हो सकता है। माना जा रहा है कि बडे़ बाबूओं के हितों में चल रहे टकराव के कारण अभी यह पद भरे जाने की कोई संभावना नही है।