क्या अधिकारियों के आपसी हितों के टकराव का परिणाम है 14 करोड़ का सब्सिडी प्रकरण

Created on Saturday, 01 July 2017 06:35
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश का बागवानी विभाग इन दिनों अचानक चर्चाओं का केन्द्र बन गया है, क्योंकि राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत 2010-11 में स्थापित की गयी एंटीहेल गन खरीद को लेकर विजिलैन्स विभाग ने अब एक एफआईआर दर्ज की है। मिशन निदेशक और हेलगन स्पलाई करने वाली कंपनी ग्लोबल एवियेशन हैदराबाद के नाम यह मामला दर्ज हुआ है। जब से यह हेलगन स्थापित हुई है तभी से संबंधित क्षेत्र के बागवान इसके परिणामों से सन्तुष्ट नहीं रहे है। इस खरीद की जांच किये जाने की मांग तभी से उठती आयी है। कांग्रेस के आरोप पत्र में भी इस मामले को उठाया है लेकिन इस मामले में एफआईआर अब नगर निगम चुनावों के बाद हुई है। स्मरणीय है कि भारत सरकार ने वर्ष 2008- 09 में प्रदेश सरकार को इसके लिये 80 लाख रूपये दिये थे। इसके बाद वर्ष 2009 -10 में 2.80 लाख रूपया प्रदेश को दिया और इस तरह तीन करोड़ में से 2.89 करोड़ में ग्लोबल एवियेशन से हेलगन की खरीद हो गयी। इस पूरे प्रकरण की प्रक्रिया सचिवालय और सरकार के स्तर पर ही अंजाम में लायी गयी है। इसलिये विजिलैन्स की जांच इस सं(र्भ में तत्कालीन बागवानी मन्त्री और सचिव तक अवश्य आयेगी। इस हेलगन के आप्रेशन के लिये संभवतः रक्षा मन्त्रालय से भी अनुमति ली जानी थी जो कि शायद नही ली गयी है।
हेलगन प्रकरण अभी शान्त भी नही हुआ था कि ठियोग के बलघार में बने कोल्डस्टोर के लिये दी गयी 14 करोड़ की सब्सिडी पर सवाल उठ गये। मुख्यमन्त्री ने भी इस प्रकरण में जांच करवाये जाने की बात की है। मजे की बात यह है बागवानी विभाग के परियोजना निदेशक डा. प्रदीप संाख्यान जिन्होने यह सब्सिडी जारी की है उन्होने भी इसमें उच्च स्तरीय जांच की मांग की है। बलघार में यह कोल्डस्टोर भारत सरकार की 50ः उपदान योजना के तहत 2015-16 में स्थापति हुआ है। 28 करोड़ के निवेश का यह कोल्डस्टोर एक हिम एग्रो फ्रैश ने स्थापित किया है। केन्द्र सरकार में यह प्रौजैक्ट 20.7.2015 को स्वीकृत हुआ और फिर इसके निर्माण का कार्य शुरू हुआ। इसका निर्माण शुरू होनेे के बाद विभाग की पहली संयुक्त निरीक्षण कमेटी ने 11.7.2016 को इसका निरीक्षण किया। इस कमेटी का गठन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव तरूण श्रीधर द्वारा किया गया था। परियोजना निदेशक, वरिष्ठ मार्किटिंग अधिकारी, फ्रूट टैक्नौलोजिस्ट, विषय विशेषज्ञ, बैंकर और कोल्डस्टोर स्थापित करने वाली कंपनी के प्रतिनिधि इस निरीक्षण कमेटी के सदस्य थे। इस कमेटी की रिपोर्ट के बाद कंपनी को तब तक हुए काम और निवेश के आधार पर 3.8.2016 को 20 लाख की सब्सिीडी रिलिज कर दी जबकि 25.93 लाख दी जानी थी। 5.93 लाख इसलिये नहीं दी गयी कि विभाग के पास पैसा ही नही था। इस निरीक्षण कमेटी ने मौके पर हुए काम के बारे में पूरा सन्तोेष व्यक्त किया है।
इस पहली निरीक्षण के बाद विभाग के निदेशक डा. बवेजा स्वयं 10.3.2017 को इस कोल्डस्टोर को देखने गये। इसी बीच विभाग को केन्द्र से इसकी सब्सिडी के 11 करोड़ मिल जाते हैं और 23.3.2017 को विभाग इस पैसे को ड्रा कर लेता है। यह पैसा आने के बाद कंपनी को 5.93 लाख की पैमैन्ट कर दी जाती है जो पहले नही हो पायी थी। जब निदेशक डा. बवेजा इसके निरीक्षण के लिये गये तो उन्होनेे इसके निर्माण आदि पर कोई सवाल खडे नहीं किये। बल्कि 29.4.17 को अपनी रिपोर्ट में केवल यह कहा कि निरीक्षण टीम में कुछ और विशेषज्ञ शामिल कर लिये जायें। निदेशक के इस सुझाव पर एसएलईसी की फिर प्रधान सचिव की अध्यक्षता में बैठक हुई और इसमें पहली कमेटी में एचपीएमसी के रैफरिजेटर इंजिनियर डीजीएम और नौणी विश्वविद्यालय के प्रौफैसर को भी शामिल कर लिया विभाग के प्रधान सचिव जेसी शर्मा ने 22.5.17 को यह दूसरी संयुक्त निरीक्षण टीम का गठन कर दिया। इसी टीम ने 26.5.2017 को कोल्डस्टोर का निरीक्षण करके अपनी रिपोर्ट उसी दिन सौंप दी। यह रिपोर्ट मिलने के बाद 27.5.17 को ही सब्सिडी का सारा शेष पैसा कंपनी को रिलीज कर दिया गया। जब यह दूसरी निरीक्षण टीम गठित हुई निरीक्षण पर की गयी, उसने अपनी रिपोर्ट सौंपी और रिपोर्ट के दूसरे ही दिन सब्सिडी रिलिज कर दी गयी। इस पूरी प्रक्रिया में पांच दिन का समय लगा। 22.5.17 को यह प्रक्रिया शुरू होती है और 27.5.17 को पेमैन्ट के साथ पूरी हो जाती है। सब्सिडी रिलिज करने के लिये कंपनी ने सर्वोच्च न्यायालय के एक वकील कंवर जीत सिंह के माध्यम से विभाग को एक नोटिस भी जारी किया था।
इस पूरे प्रकरण में यह सवाल उठाया जा रहा है कि पूरी प्रक्रिया केवल पांच दिन में ही क्यों पूरी कर गयी? इस दौरान विभाग के निदेशक संभवतः विदेश दौरे पर थे और यह सारी प्रक्रिया प्रधान सचिव जेसी शर्मा के आदेशों से पूरी हुई है। इसमें यह महत्वपूर्ण है कि पहली जेआईटी केन्द्र की गाईडलाईनज़ पर विभाग के तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य सचिव तरूण श्रीधर के आदेशों पर गठित हुई थी। इस जेआईटी में निदेशक बवेजा ने कुछ और विशेषज्ञ शामिल करने का सुझाव दिया? क्या उनकी नजर में पहली जेआईटी सक्षम नही थी? बवेजा के निर्देशों पर दूसरी जेआईटी गठित होती है और उसमें तीन नये लोग शामिल कर लिये जाते हैं। क्या बवेजा के निर्देशों पर दूसरी जेआईटी में तीन नये विशेषज्ञ शामिल किये जाने आवश्यक थे? यदि यह आवश्यक थे और उन्हे शामिल भी कर लिया गया तो क्या इस दूसरी जेआईटी की रिपोर्ट भी बवेजा के समाने नही रखी जानी चाहिये थी? क्या निरीक्षण टीम के सदस्यों की योग्यता पर दोनों बार डा. बवेजा को सन्देह था या फिर उनकी मंशा कुछ और थी? यदि मुख्यमन्त्री वास्तव में इसकी जांच करवाते हंै तभी इन सारे सवालों का खुलासा हो पायेगा। वैसे इस प्रकरण के इस तरह चर्चा में आने से भविष्य में कोई भी निवेश करने के लिये आगे नही आयेगा।