ठियोग रोहडू सड़क चड्डा एण्ड चड्डा को काम पूरा करने के लिये दिया छः माह का और समय तथा 45 करोड़ रूपया

Created on Tuesday, 04 July 2017 06:23
Written by Shail Samachar

                                   बाईसरकुलेशन मन्त्रीमण्डल ने किया यह फैसला
                           अन्तर्राष्ट्रीय विकास ऐसोसियेशन आईबीआरडी ने और ऋण देने से किया इन्कार
                            नौ वर्षोे में 80 कि.मी. सडक की रिपेयर नही कर पायी सरकार
शिमला/शैल। 80 किमी लम्बी ठियोग-रोहडू सड़क की रिपेयर का काम प्रदेश सरकार नौ वर्षो में भी पूरा नही कर पायी है जून 2008 में धूमल शासन के दौरान अन्र्तराष्ट्रीय विकास ऐसोसियशन आईबीआरडी से 228.26 करोड़ रूपये का ऋण लेकर यह काम शुरू हुआ था और जून 2011 में पूरा होने का लक्ष्य रखा गया था। इसके लिये अमेरिका के लूईस बर्गर ग्रुप को कन्सलटैन्ट नियुक्त किया गया था लेकिन जब तय समय सीमा के भीतर काम पूरा नही हुआ तो धूमल सरकार ने इसका कार्यकाल 14.4.2012 तक बढ़ा दिया। परन्तु जब मार्च 2012 में काम का आकलन किया गया तो पाया कि केवल 13.49% काम ही पूरा हुआ है कंपनी ने काम पूरा न होने के जो कारण बातये उनमें तीन मामलों में अदालत से स्टे जमीन अधिग्रहण के बाद कुछ लोगों को मुआवजे का भुगतान न हो पाना और 875 पेड़ो का न काटा जाना प्रमुख थें। इसी सड़क को लेकर जुब्बल के एक देवेन्द्र चैहान ने 2010 में उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की थी। इस याचिका की सुनवाई के दौरान 20.5.2011 को भू- अधिग्रहण अधिकारी को जमीन के मुआवजों के मामलें में एक माह के भीतर शपथपत्र दायर करने तथा कंजरवेटर फाॅरेस्ट भारत सरकार चण्डीगढ़ को पेडो के संद्धर्भ में आवश्यक अनुमतियां देने के निर्देश दिये। उच्च न्यायालय के इन निर्देशों पर भू-अधिग्रहण अधिकारी ने 15,46,22,031 रूपये का मुआवजा जाम करवा दिया। जिसमें से 13, 36,66, 867 रूपये का संबधित लोगों को तुरन्त भुगतान भी हो गया पेड़ों के संद्धर्भ में भी तीन दिन के भीतर सारी कारवाई हो गयी। उच्च न्यायालय ने सत्र न्यायधीश को भी सड़क के संबंध में आयी सारी याचिकाओं का एक माह के भीतर निपटारा करने के निर्देश दिये और यह निपटारा भी हो गया। इस तरह सड़क से जुडे सारे मामलों का उच्च न्यायालय के निर्देशों पर एक माह में निपटारा हो गया। लेकिन जब 2.7.2012 को यह मामला पुनः उच्च न्यायालय में लगा तब जो टिप्पणी अदालत ने की है वह चैंकाने वाली है। अदालत ने कहा है कि That there is hardly   tangible progress in work,  apparently, neither the  contractor nor the          Government is serious in the matter, what action the Govt. has taken in the     matter is not quite clear   despite the unsatisfactory progress in the execution of work. The contractor has been raising one or the other evasive objection to justify  their in-action,   instead of taking proper action for completing the work as per contract. It is high time that the Govt. view tha matter with       required seriousness.सरकार और उसके तन्त्र पर की गयी इस टिप्पणी के बाद 2013 में सरकार ने चीन की कंपनी से करार रद्द करके एक चड्डा एण्ड कंपनी को शेष बचा हुआ काम 350 करोड़ में दे दिया। अब यह कंपनी भी तय समय के भीतर जब काम पूरा नही कर पायी तो अन्र्तराष्ट्रीय विकास ऐसोसियेशन आईबीआरडी ने इस काम से अपने हाथ पीछे खींच लिये है। इस संगठन ने सरकार और कंपनी के काम पर गंभीर टिप्पणीयां की है। लेकिन सरकार ने ठेकेदार कंपनी के विरूद्ध ठेके की शर्तो के मुताबिक कोई कारवाई करने की बजाये कंपनी को छः माह का और समय काम पूरा करने के लिये दे दिया है। शेष बचे हुए काम के लिये करीब 45 करोड़ रूपया प्रदेश सरकार अपने पास से कंपनी को देगी। इस आशय का प्रस्ताव मन्त्रीमण्डल से बाई सरकुलेशन 30 जून को पारित करवाया गया है क्योंकि उसी दिन लोक निर्माण विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव नरेन्द्र चैहान ने सरकार से त्यागपत्र देकर मुख्य सूचना आयुक्त का पदभार ग्रहण किया है।
अभी भी यह काम छः माह मे पूरा हो पायेगा इसको लेकर सन्देह व्यक्त किया जा रहा है। जब 20.5.2011 को उच्च न्यायालय के निर्देशों पर एक माह के भीतर सारे मामलों का निपटारा हो गया था तो उसके बाद तय समय के भीतर काम क्यों पूरा नही हुआ? वीरभद्र सरकार आने के बाद 2013 में नयी कंपनी चड्डा एण्ड चड्डा को 350 करोड़ में काम दिया गया लेकिन 30 जून 2017 तक फिर काम पूरा नही हुआ और कंपनी को छः माह का और समय तथा करीब 45 करोड़ प्रदेश सरकार को अपने साधनों से देने का फैसला लेना पड़ा है। इस तरह 228 करोड़ से शुरू हुआ काम 400 करोड़ से भी अधिक में पूरा होगा लेकिन इस बढे़ हुए खर्च के लिये कौन जिम्मेदार है इसके लिये किसी की जवाबदेही क्यों तय नही की गयी है? कंपनी को और समय तथा पैसा देने की बजाये कंपनी के खिलाफ कारवाई क्यों नही की गयी? क्योंकि इस नयी कंपनी को तो काम करने के लिये कोई रूकावट ही नही थी। रूकावटें तो चीन की कंपनी के सामने थी जो उच्च न्यायालय के निर्देशों से जुलाई 2011 में ही समाप्त हो गयी थी, फिर यह चड्डा एण्ड चड्डा समय के भीतर काम क्यों नही कर पायी? इस काम के लिये नियुक्त कन्सलटैन्ट लुईस बर्गर से जवाब तलब क्यों नहीं किया गया? क्योंकि आखिर इस ऋण की भरपायी तो यहीं से होनी है। क्या यह कर्ज लेकर घी पीने का काम हो रहा है? ऐसे बहुत सारे सवाल जिनका जवाब सरकार को आने वाले समय में सरकार को देना होगा।