शिमला/शैल। प्रदेश के पर्यटन विकास बोर्ड के उपाध्यक्ष पूर्व मन्त्री विजय सिंह मनकोटिया को वीरभद्र सिंह ने जनहित में अपने पद से हटा दिया है। राज्यपाल के नाम से मुख्य सचिव वीसी फारखा के हस्ताक्षरों से जारी पत्र में यही कहा गया है कि ‘‘जनहित’’ की एक बहुत ही व्यापक परिभाषा है जिसके मूल में यही निहित रहता है कि ऐसे फैसले से प्रदेश का बहुत बड़ा सार्वजनिक हित जुड़ा हुआ था। जनहित के परिदृश्य में यदि मनकोटिया के बतौर उपाध्यक्ष काम का आकलन किया जाये तो यह सामने आता है कि उनके विरूद्ध पर्यटन विकास बोर्ड या किसी भी अन्य मामले में भ्रष्टाचार का कोई आरोप नही लगा है। यह भी नही रहा है कि वह सरकार के विरूद्ध कोई षडयंत्र रच रहे थे। ऐसे में जनहित के नाम पर मनकोटिया की वर्खास्तगी कतई गले नही उतरती है। फिर मनकोटिया ने जब इस जनहित के छदम आरोप पर मीडिया के माध्यम से अपना पक्ष प्रदेश की जनता के सामने रखा और उस पर मुख्यमन्त्री तथा उनके कुछ सहयोगीयों ने जो प्रतिक्रियाएं जारी की है उनसे भी जनहित का कोई खुलासा सामने नही आया है।
जबकि दूसरी ओर से मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह और उनका बेटा तथा पत्नी आयकर सीबीआई और ईडी की जांच झेल रहे हैं। सीबीआई तो अदालत में चालान तक दायर कर चुकी है और इसमें सब अभियुक्तों को जमानत लेनी पड़ी है। विपक्ष इस मामले में वीरभद्र से नैतिकता के आधार पर त्यागपत्र की मांग कर रहा है। बल्कि राज्यपाल से वीरभद्र सिंह को जनहित में हटाने की मांग कर चुका है। संगठन और सरकार में कैसा तालमेल चल रहा है इसको लेकर वीरभद्र और सुक्खु की अब तक सामने आ चुकी ब्यानबाजी से इसका खुलासा हो जाता है। परिवहन मन्त्री जीएस बाली की कार्यप्रणाली को लेकर भी जिस तरह की प्रतिक्रियाएं मुख्यमन्त्री अब तक देते रहे हैं उनमें भी कभी जनहित के तहत कारवाई की नौबत नही आयी है। राजेश धर्माणी, राकेश कालिया के विद्रोही होने पर भी जनहित का प्रश्न नही उठा। ऐसे में यह स्पष्ट हो जाता है कि जनहित के नाम पर मनकोटिया की वर्खास्तगी में वीरभद्र एक बहुत बड़ी राजनीतिक भूूल कर बैठे हैं।
अब यह सवाल खड़ा होता है कि फिर मनकोटिया को हटाया क्यों गया? इसके लिये सबसे पहले पर्यटन विभाग के अन्दर ही झांकना पड़ेगा। क्योंकि मनकोटिया पर्यटन विकास बोर्ड के ही उपाध्यक्ष थे। इस समय पर्यटन में एशियन विकास बैंक के करीब 260 करोड़ के ऋण से शिमला और कुछ अन्य स्थानों के सौंर्दयकरण की योजना चल रही है। इस योजना के तहत जिस तरह का काम हो रहा है और उस पर जो खर्च हो रहा है उसको लेकर बहुत सारे सवाल जनता में उठ चुके हैं। भाजपा ने इस सौंदर्यकरण को अपने आरोप पत्र में भी मुद्दा बनाया है और इसकी जांच करवाने का दावा किया है। इस सौंदर्यकरण के नाम पर शहर के दो चर्चों की रिपेयर पर ही 25 करोड़ खर्च किये जा रहे हैं। पर्यटन के नाम पर फारखा की स्पेन यात्रा भी सवालों में रह चुकी है। बल्कि इस यात्रा पर जब माकोटिया ने कुछ विवरण मांगा था उस समय मुख्यमन्त्री ने इस मुद्दे को आगे न बढाने का आग्रह मनकोटिया से किया था। पर्यटन के कुछ मामलों में ओ पी गोयल की शिकायत को सीबीआई अधिकारिक तौर पर जांच के लिये स्टेट विजिलैन्स को भेज चुकी है। पर्यटन के प्रचार -प्रसार के नाम पर विज्ञापनों के माध्यम से जो खर्च किया जा रहा है उसकी आरटीआई के तहत बाहर आयी सूचना काफी रौंगटे खड़े करने वाली है। अभी जो तिलक राज शर्मा की गिरफ्तारी हुई है उसमें भी मुख्यमन्त्री के कुछ विश्वस्त मंत्रीयों और अधिकारियों के नाम सामने आने की चर्चा है। आने वाले दिनों में यह सबकुछ चर्चा का विषय बनेगा यह तय है।
इस परिदृश्य में विजय सिंह मनकोटिया की वर्खास्तगी की राय देकर मुख्यमन्त्री के सलाहकारों ने विपक्ष के हाथ एक ऐसा हथियार थमा दिया है जिसकी काट से बचना संभव नही होगा। प्रदेश के भूत पूर्व सैनिको में मनकोटिया की विश्वसनीयता आज भी बरकरार है क्योंकि उसके ऊपर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगा है। पार्टी के प्रति वीरभद्र की निष्ठा को मनकोटिया ने 2012 के चुनावों से पहले शरद पवार और प्रफुल्ल पटेल के साथ हुई सांठगांठ को सार्वजनिक करके हाईकमान के सामने भी एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। वीरभद्र के इस कार्यकाल में लोकसभा चुनाव हारने से राजनीतिक लोकप्रियता पर भी गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है। माना जा रहा है कि वीरभद्र ने मनकोटिया की वर्खास्तगी का फैसला उन अधिकारियों की सलाह पर लिया है जिन्होने सचिवालय से बाहर जनता में वोट मांगने नही जाना है। अभी विधानसभा चुनावों को केवल चार माह का समय शेष बचा है ऐसे में मनकोटिया जैसे नेता को इस तरह से बाहर धकेलना केवल अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारने की कहावत को चरितार्थ करता है।