शिमला/शैल। कोटखाई क्षेत्र में एक दसवीं कक्षा की नाबालिग छात्रा से हुए बलात्कार और फिर हत्या मामलें में सीबीआई ने अपनी जांच शुरू कर दी है। इस प्रकरण में दो अलग-अलग मामले दर्ज किये गये हैं क्योंकि इसी मामले में पकड़े गये एक कथित अभियुक्त सूरज की पुलिस कस्टडी में ही मौत हो चुकी है। इस कारण से ‘गुड़िया’ और सूरज दोनो के मामलों में अलग-अलग प्रकरण दर्ज किये गये हैं। स्मरणीय है कि जब यह मामला मीडिया में चर्चा में आया था तब दस तारीख को ही प्रदेश उच्च न्यायालय ने इसका संज्ञान ले लिया था और 17 तारीख को इसमें सरकार से रिपोर्ट तलब की थी। लेकिन इससे पहले ही पुलिस की जांच पर सवाल उठने लग पडे़ और सरकार को इसमें एक एसआईटी गठित करनी पड़ गयी। एसआईटी द्वारा मामलें की जांच शुुरू करते ही जनता ने फिर पक्षपात के आरोप लगाने शुरू कर दिये। प्रदेश भर में जगह-जगह प्रदर्शन शुरू हो गये। जनक्रोश के दवाब के आगे झुकते हुए 14 तारीख को सरकार ने जनता की मांग पर मामला सीबीआई को देने का फैसला ले लिया। मुख्यमन्त्री ने व्यक्तिगत स्तर पर भी प्रधानमन्त्री को पत्र लिखकर सीबीआई जांच का आग्रह किया। इसी परिदृश्य मेें जब उच्च न्यायालय में सुनवाई के लिये मामला आया तब अन्तः शीर्ष अदालत ने भी सीबीआई को यह मामला अपने हाथ में लेने के निर्देश दे दिये। उच्च न्यायालय ने दो सप्ताह के बाद मामलें पर कोर्ट में स्टेट्स रिपोर्ट दायर करने के भी निर्देश दिये हैः-In the post lunch session, when the matter was taken up, we were informed by the learned Advocate General that Malkhana of Police Station at Kotkhai, District Shimla, H.P., stands ransacked; some of the files kept in the Police Station burnt; five vehicles of the police department burnt; Fire Brigade is not allowed by the mob to enter the area; and three police personnel injured, who stand referred for medical treatment to the respective hospitals. Also, though there is huge public outcry, yet police is exercising restraint in maintaining the law and order situation. It is further submitted that in view of peculiar facts and circumstances, matter warrants investigation to be conducted by the Central Bureau of Investigation (in short CBI). It is further prayed that necessary orders in that regard be passed. The Chief Secretary to the Government of Himachal Pradesh shall ensure that appropriate action is taken against the erring officials/officers/functionaries of the State, in accordance with law. Within a period of two weeks from today, he shall independently examine the matter and take appropriate action. (vii) The Director General of Police, Himachal Pradesh shall ensure maintenance of law and order. (viii) Affidavit of the Chief Secretary and status report by the SIT be filed not later than two weeks.जनता ने पुलिस और फिर एसआईटी दोनों की नीयत और नीति पर गंभीर आरोप लगाये हैं। सीधा आरोप लगाया गया है कि असली दोषीयों को बचाने और बेगुनाहों को फसाने का प्रयास किया जा रहा है। बल्कि जब पुलिस कस्टडी में सूरज की हत्या हो गयी तब इस पर मुख्यमन्त्री ने भी अपनी प्रतिक्रिया में मृतक सूरज को बेगुनाह करार देते हुए यह भी कहा था कि मृतक सूरज तो सरकारी गवाह बनने जा रहा था। इसी प्रकरण में जब मृतक सूरज की पत्नी का पत्र और ब्यान सामने आया है तो उससे ये तीन महत्वपूर्ण सवाल आते हैं। पहला है कि इस मामलें के असली दोषीयों को पकड़कर उन्हें कड़ी सजा दिलाना। दूसरा सवाल यह सामने लाने का होगा कि क्या पुलिस ने इस मामलें में कोई पक्षपात किया है या नहीं। यदि हां तो किसके कहने पर और क्यों? तीसरा अहम सवाल है कि पुलिस हिरासत में हुई सूरज की मौत कैसे हुई? क्या उसे पुलिस ने मारा और इल्जाम राजू के सिर लगा दिया। क्योंकि इस संद्धर्भ में भी सवाल उठने शुरू हो गये हैं।
सीबीआई को इन सवालों तक पहुंचने में पुलिस और एसआईटी द्वारा की गयी जांच से कितनी सहायता मिलती है और उसे अलग से अपने स्तर पर कितने साक्ष्य नये सिरे से जुटाने पड़ते हैं इसका पता तो आने वाले समय में ही लगेगा। यदि सीबीआई की जांच से भी यही प्रमाणित हुआ कि पुलिस और एसआईटी की जांच सही दिशा में ही चल रही थी तो इससे जांच पर सवाल उठाने वालों के अपने खिलाफ ही सवाल उठने शुरू हो जायेंगे। यदि पुलिस की जांच पर उठे सवालों की सीबीआई जांच से थोड़ी भी पृष्टि हुई तो इसके परिणाम बहुत गंभीर होंगे। क्योंकि प्रदेश उच्च न्यायालय ने मुख्य सचिव को स्पष्ट निर्देश दिये हैं कि इस मामलें में अपने स्तर पर भी जांच करे और दोषी पाये जाने वाले अधिकारियों कर्मचारियों के खिलाफ कड़ी कारवाई करे। निश्चित है कि उच्च न्यायालय का संकेत इस जांच के साथ परोक्ष/अपरोक्ष में जुड़े अधिकारियों/ कर्मचारियों की ओर ही है। क्योंकि कई ऐसे बिन्दु हैं जिनसे जांच की निष्पक्षता सन्देह के घेरे में आती ही है।