शिमला/शैल। प्रदेश भाजपा ने कोटखाई के बलात्कार और हत्या प्रकरण पर उभरे जनाक्रोश के बाद मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह को 26 जुलाई तक अपने पद से त्यागपत्र देने का अल्टीमेटम दिया था। इस अल्टीमेटम पर त्यागपत्र न आने के बाद भाजपा ने प्रदेश भर में पोलिंग बूथों पर एक साथ पुतले फूंके है। इसके बाद अब प्रदेश कार्यसमीति ने निन्दा प्रस्ताव पारित किया है। भाजपा का निन्दा प्रस्ताव दो मुद्दों पर प्रदेश की बिगड़ती कानून व्यवस्था और वीरभद्र के खिलाफ लगे भ्रष्टाचार के आरोपों पर आया है। कार्यसमिति के प्रस्ताव के साथ ही पार्टी के वरिष्ठ नेताओं पूर्व मुख्यमन्त्रीयों शान्ता कुमार और प्रेम कुमार धूमल ने भी अगल-अलग पत्रकार वार्ताओं में वीरभद्र पर हमला बोलते हुए उन्हें अपने पद से त्यागपत्र देने की सलाह दी है।
भाजपा नेतृत्व पिछले दो वर्षों से यह दावे करता आ रहा है कि वीरभद्र सरकार गिरने वाली है और प्रदेश में समय से पहले ही चुनाव हो जायेंगे। इस बार तो भाजपा ने वीरभद्र को त्यागपत्र देने के लिये 26 जुलाई की तारीख भी तय कर दी थी लेकिन इस बार भी पहले ही की तरह भाजपा का आकलन सफल नही हुआ है। अब जो चार माह के बाद प्रदेश विधानसभा के चुनाव ही हो जायेंगे। ऐसे में आज जनता के बीच जाने के लिये भाजपा ने फिर वीरभद्र के भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाने का फैसला लिया है। इसी के साथ पार्टी ने उन नेताओं को भी घर वापसी का खुला न्योता दिया है जो कभी किन्ही कारणों से संगठन से बाहर चले गये थे। इस दिशा में महेश्वर सिंह, राधा रमण शास्त्री, श्यामा शर्मा, राकेश पठानिया, खुशीराम बालनाहटा और टिक्कु ठाकुर आदि घर वापसी कर चुके हैं। अब राजन सुशान्त और महेन्द्र सोफत की वापसी की अटकलें चल पड़ी है। इसी कड़ी में अन्य दलों के नेताओं को भी भाजपा में आने का खुला आमन्त्रण दिया गया है। इस आमन्त्रण पर कांग्रेस से कोई लोग निकलकर भाजपा का दामन थामते है या नही इसका खुलासा तो आने वाले दिनों में ही होगा।
लेकिन भाजपा जिस भ्रष्टाचार की बात कर रही है उसको लेकर करीब हर वर्ष एक-एक आरोपपत्र सरकार के खिलाफ राज्यपाल को सौंपती आयी है। अभी शिमला नगर निगम चुनावों से पूर्व भी नगर निगम को लेकर ही एक आरोपपत्र राज्यपाल को सौंपा गया था। अब इस निगम की सत्ता पर भाजपा का ही कब्जा है और निगम के जिस भ्रष्टाचार को लेकर आरोप पत्र सौंपा गया था उसकी जांच करने के लिये किसी आदेश की भी आवश्यकता नही है। परन्तु इस दिशा में अब सत्ता मिलने के बाद आॅखें बन्द कर ली गयी है। यदि भ्रष्टाचार के खिलाफ थोड़ी सी भी ईमानदारी हो तो ऐसे मामलों पर व्यक्तिगत स्तर पर भी विजिलैन्स और अदालत में मामले दायर किये जा सकते है। लेकिन ऐसा हो नही रहा है बल्कि जब पिछली बार भाजपा सत्ता में थी तब अपने ही सौंपे आरोप पत्रों पर सरकार ने कोई कारवाई नहीं की थी। ऐसे में भ्रष्टाचार पर वीरभद्र को घेरने के लिये भाजपा के पास कोई नैतिक आधार नही रह जाता है। क्योंकि वीरभद्र के खिलाफ जिस भ्रष्टाचार की बात की जा रही है उसमें सीबीआई तो अदालत में चालान दायर कर चुकी है और उसका फैसला आने में कई वर्षों लग जायेंगे। सीबीआई के बाद ईडी में मामला चल रहा है। लेकिन उच्च न्यायालय के फैसले के बाद भी ईडी की कारवाई आगे नही बढ़ रही है। ईडी की कारवाई को लेकर आम चर्चा है कि प्रदेश भाजपा ही इस कार्यवाही को आगे नही बढ़ने दे रही है। क्योंकि अगली कारवाई में गिरफ्तारी की नौबत आ सकती है और यह नौबत आने का आधार ईडी द्वारा जारी दूसरे अटैचमैन्ट आदेश के बाद होने वाली पूछताछ है लेकिन यह पूछताछ अब तक नही हुई है जबकि पहले अटैचमैन्ट आदेश के बाद ही आनन्द चैहान की गिरफ्तारी हुई थी। 26 पन्नों के दूसरे अटैचमैन्ट के साथ लगे दस्तावेजों को देखने से यह स्पष्ट हो जाता है कि इसमें भी कोई गिरफ्तारी तो अवश्य होगी। चर्चा है कि ईडी की यह कारवाई भाजपा के ही कुछ बड़े नेताओं द्वारा ही रोकी गयी है और इसके लिये पार्टी द्वारा करवाये गये एक सर्वे को आधार बनाया गया है। इस सर्वे के मुताबिक वीरभद्र के खिलाफ किसी भी बड़ी कारवाई से पब्लिक सहानुभूति बदल जायेगी और भाजपा की सरकार बनना कठिन हो जायेगा। इसी सर्वे के कारण शान्ता जैसे बड़े भी भाजपा नेता अब जनता में इतना ही कह रहे है कि वीरभद्र जमानत पर है। जबकि भाजपा के भी कई बड़े नेताओं के खिलाफ मामलें चल रहे है और वह जमानत पर है। राजीव बिन्दल के खिलाफ चल रहा मामला फैसले के कगार पर पहुंचने वाला है।
ऐसे में भ्रष्टाचार और कानून एवम व्यवस्था के नाम पर सरकार के खिलाफ निन्दा प्रस्ताव पारित करके केवल राजनीति ही की जा सकती है। बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि भाजपा ने अब एक बार भी गंभीरता से वीरभद्र को सत्ता से हटाने का कोई प्रयास ही नही किया है। अब कोटखाई प्रकरण में सीबीआई के हाथ मामला जाने के बाद जनाक्रोश से लेकर सोशल मीडिया में हर तरह के दावे करने और सन्देह व्यक्त करने वालों के तेवर भी बहुत हद तक बदल गये है। ऐसे में अब तब तक सीबीआई की फाईल रिपोर्ट इस मामलें में नही आ जाती है तक तक राजनीतिक दलों को इसमें अपनी सक्रियता को जारी रखने का कोई आधार नही रह जाता है। संभवतः इस बार भाजपा द्वारा वीरभद्र के त्यागपत्र के लिये 26 जुलाई की तारीख का अल्टीमेटम देना राजनीतिक आंकलन की एक बड़ी चूक ही करार दी जा सकती है। जिसे अब निन्दा प्रस्ताव से कवर करने का प्रयास किया गया है।