शैल/शिमला। वीरभद्र सरकार विभिन्न सरकारी विभागों /निकायों में आऊट सोर्स के माध्यम से कार्यरत कर्मचारियों को लेकर एक पाॅलिसी लाने की घोषणा एक लम्बे समय से करती आ रही है। बल्कि संवद्ध प्रशासन पर यह पाॅलिसी
लाने के लिये दवाब भी बनाया गया और जब इसे अधिकारियों ने उकदम नियमों के विरूद्ध करार दिया तो कुछ अधिकारियों को इसका खमियता भी भुगतना पड़ा है इस समय सरकार में करीब 35000 कर्मचारी आऊट सोर्स के माध्यम से अपनी सेवाएं दे रहें है। यह कर्मचारी एक ही कंपनी के माध्यम से रखे गये है। यह आरोप कर्मचारी नेता विनोद ठाकुर ने लगाया है। आरोप है कि इस कंपनी को सरकार 20% कमीशन दे रही है। 80% कर्मचारी को जाना है लेकिन यह 80% भी पहले इस कंपनी के खाते मे जाता है और फिर कंपनी अपने खाते से इनका भुगतान करती है इस तरह यह भी स्पष्ट नही है किे यह 80% भी कर्मचारी को वास्तव में ही मिल रहा है या नही।
आऊट सोर्स के नाम पर प्रदेश के श्रम विभाग के पास कितनी कपनीयां पंजीकृत है और विभाग का उनपर किस तरह का कितना नियन्त्रण है इसको लेकर विभाग में कुछ भी स्पष्ट नही है। जिस कंपनी के माध्यम से हजारों कर्मचारी सरकार में अपनी सेवाएं दे रहे है। उस कंपनी का दफ्तर के नाम पर न्यू शिमला में एक छोटा सा बोर्ड टंगा है लेकिन दफ्तर में कितने कर्मचारी है इसको लेरक भी बहुत कुछ स्पष्ट नही हे क्योंकि कंपनी में फोन करने पर कोई जानकरी नही मिल पाती है इससे यह आशंका और पुख्ता हो जाती है। कि इस कंपनी के नाम पर केवल एक तरह से लेवर सप्लाई का काम किया जा रहा है। क्योंकि आज तक इस कंपनी की ओर से ने तो किसी विज्ञापन के माध्यम से या न ही किसी रोजगार कार्यालय के माध्यम से यह सामने आ पाया है कि अमुक कार्यालय या कार्य के लिये उसे अमुक योग्यता के इतने व्यक्ति चाहिये। क्योंकि यदि कंपनी ऐसी प्रक्रिया अपनाती है तो वह रोजगार कार्यालय के समकक्ष हो जाती है और सरकार के मौजूदा नियम इसकी अनुमति नही देते है इससे हटकर यदि कंपनी ऐसी नियुक्तियों के लिये आमन्त्रण देती है तो उसे अपने ही कार्यालय में या उससे संवद्ध संस्थान में नियुक्ति देनी होगी लेकिन इस कंपनी का अपना कोई ऐसा संस्थान है नही जहां पर यह किसी को नौकरी दे सके।
क्या सरकारी विभागक आऊट सोर्स के माध्यम से किसी को दफ्तर में लिपिक या सहायक आदि की नौकरी दे सकते है ऐसा कोई प्रावधान भी नियमों में नही है ऐसे में आऊट सोर्स के माध्यम से केवल अस्थायी लेवर ही सप्लाई की जा सकती है और सरकारी दफ्तर में ऐसी लेवर रखने का भी प्रावधान नहीं है। इसी कारण से 20% कमीशन के बाद का 80% भी कंपनी के खाते में ही जमा करवाना पड़ता। क्योंकि यदि सरकार के दफ्तर की ओर से कर्मचारी को सीधे 80% का भुगतान कर दिया जाये तो यह लोग सीधे सरकारी कर्मचारी हो जाते हैं इसी के साथ एक सवाल यह खड़ा होता है कि क्या यह कंपनी अपने रिकार्ड में इसके माध्यम से रखे गये कर्मचारियों को अपना रेगुलर कर्मचारी दिखाती है या नही। आज सरकारी कार्यालयों में इस कपंनी के माध्यम से रखे गये हजारों कर्मचारी इस उम्मीद में चल रहे है कि वह कभी नियमित हो जायेंगे। सरकार द्वारा इन कर्मचारियों को लेकर पाॅलिसी लाये जाने के वायदों से भी इन्हें यह उम्मीद बंधी थी जो कि एकदम आधारहीन थी।
आरोप है कि अभी सरकार ने आऊट सोर्स कर्मचारियों के लिये विभागों को दस करोड़ रूपये जारी किये है। इसमें से दो करोड़ तो कंपनी को सीधे कमीशन के रूप में मिल जायेंगें शेष आठ करोड़ भी कंपनी के खाते में ही जमा होंगे और इसमें से वास्तव में ही संवद्ध कर्मचारियों को कितने मिलेंगे इसकी कोई जानकारी पैसे देने वाले विभाग को नही होगी। ऐसे में हजारों कर्मचारियों का भविष्य जहां अनिश्चितता में हे वहीं पर इसमें करोड़ों का घपला होने की भी पूरी - पूरी संभावना बनी हुई है।