क्या चुनावी हार की आशंका से लाया गया था ये प्रस्ताव उठने लगा है ये स्वाल

Created on Tuesday, 08 August 2017 13:49
Written by Shail Samachar

शैल/शिमला। प्रदेश सरकार पूर्व मुख्यमन्त्रीयों को कुछ सुविधाएं देने का प्रस्ताव लायी थीं मन्त्री परिषद की बैठक में सामान्य विभाग की ओर से उलाये गये प्रस्ताव के अनुसार पूर्व मुख्य मन्त्रीयों से अब एक नियमित डाक्अर और काफिले में डाक्टर मुक्त एंबुलैन्स डाक्टर सहित एक एस यू वी गाडी पंसद के दो सुरक्षा अधिकारी एवम लैण्ड लाईन और मोबाईल के लिये वर्ष 50 हजार तथा प्रशासनिक खर्च के लिये एक लाख रूपये प्रतिवर्ष देने जा रही थी। इस आश्य का प्रस्ताव मन्त्री परिषद में लाया गया लेकिन जब इसके राजनीतिक प्रभाव की ओर कुछ मन्त्रियों ने ध्यान आर्किषत किया तो इसे वापिस ले लिया गया। मन्त्रियों का तर्क था कि अब तीन माह बाद प्रदेश विधान सभा के चुनाव होने वाले है। ऐसे में इस फैसले को लेकर पार्टी की चुनावी संभावनाओं के बारे में लोगों में नकारात्मक संदेश जायेगा इसलिये ऐसा फैसला नही लिया जाना चाहिये।
सरकार और पार्टी सत्ता में न केवल वापसी बल्कि वीरभद्र को सातंवी बार मुख्यमन्त्री बनाने के दावे करती आ रही है। पार्टी के नये प्रभारी शिंदे ने वीरभद्र और सुक्खु के बीच चल रहे टकराव को विराम देने के लिये अनुशासन का चाबुक चलाकर सबको एकजुट रहने की नसीहत देते हुए यहां तक ऐलान कर दिया कि न तो सुक्खु हटेंगे और न ही वीरभद्र। बल्कि कुछ कांग्रेस के कार्यकर्ताओं द्वारा सुक्खु को हटाने के लिये लगाये गये नारों का कड़ा संज्ञान लेते हुए वीरभद्र के बेटे और युवा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष विक्रमादित्य सिंह से भी मंच से यह ऐलान करवाया कि भविष्य में प्रदेश अध्यक्ष की राय से ही हर फैसला लेंगे और उन्हे पूरा सहयोग देंगे। यह माना जा रहा है कि यदि आने वाले विधानसभा चुनावों में ईमानदारी से पार्टी एक जुटता के साथ काम करेगी तो वह भाजपा को कड़ी चुनौती पेश कर सकती है।
लेकिन इस समय कार्यकाल के अन्तिम दिनों में पूर्व मुख्यमन्त्रीयों को यह सुविधाएं देने का प्रयास किया गया उससे अनचाह ही यह संदेश चला गया कि वीरभद्र और उनके सचिवालय ने अभी से स्वीकार कर लिया है कि चुनावों में उनकी हार होने जा रही है। मन्त्री परिषद में यह प्रस्ताव सामान्य प्रशासन विभाग की ओर से लाया गया और सामान्य प्रशासन विभाग स्वयं मुख्यमन्त्री के पास है। फिर मनत्री परिषद के सचिव की जिम्मेदारी मुख्य सचिव के पास होती है। ऐसे में सामन्य प्रशासन विभाग द्वारा तैयार किया गया यह प्रस्ताव मन्त्री परिषद के ऐजेंण्डा में डालने से पूर्व इसे मुख्य सचिव और मुख्यमन्त्री द्वारा अवश्य देखा गया होगा क्योंकि हर मन्त्री अपने विभाग से संबधित ऐजेण्डे को स्वयं मन्त्री परिषद में रखता है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि यह प्रस्ताव तैयार करने से पहले इससे जुडे़ अधिकारी राजनीतिक आकंलन करने में या तो एकदम असफल रहे है। या फिर उन्होने जानबूझकर अपने राजनीतिक विरोधीयों को एक मुद्दा और थमा दिया। बल्कि इससे यह आशंका और बन गयी है कि लोग चुनाव आते- आते एकाध ऐसा और कारनामा कर सकते है।