शिमला/शैल। विधानसभा के आखिरी सत्र में चारो दिन प्रश्नकाल नियमों के खेल की भेंट चढ़ा दिया गया। प्रश्नकाल से सदन कार्यवाही शुरू होती है और इसी प्रश्नकाल में सरकार विभिन्न विषयों पर आये विधायकों के प्रश्नो का उत्तर देती है। तारांकित प्रश्नों का उत्तर संबधित मन्त्री का सदन में प्रश्नकर्ता को सीधे देना पड़ता है और अतांरिकत का लिखित में सदन में आता है। प्रश्न पूछने में यह भी प्रावधान है कि प्रश्नकर्ता विधायक के अतिरिक्त अन्य विधायक भी मन्त्री का जबाव सुनने के बाद उस पर अनुपूरक प्रश्न पूछ सकते है। कई बार कई प्रश्नों पर काफी लम्बी चर्चा तक हो जाती है। इस तरह प्रश्न पूछने का प्रावधान केवल प्रश्नकाल में ही है और संभवतः इसी कारण से प्रश्नकाल को स्थगित नही करने का प्रयास किया जाता है। इसमें तो यहां तक बंदिश है कि similarly a matter which can be rised under any other procedural device, viz, calling attention notices, questions, short notice questions, half-an-hour discussions, short duration discussions, etc. 81 cannot be raised through an adjournment motion 82.
इसीलिये नियम 296(3) में यह प्रावधान किया गया है। The Speaker may in his discretion, convert any notice from one rule to another rule. भाजपा ने कानून एवम व्यवस्था पर चर्चा की मांग नियम 67 के तहत की थी। नियम 67 में प्रश्नकाल को स्थगित करके चर्चा करवाने का प्रावधान है। स्थगन प्रस्तावों पर नियम 67 से लेकर नियम 74 तक पूरी प्रक्रिया तय है। इसमें नियम 69(8) में यह कहा गया है कि The Motion shall not deal with any matter which is under adjudication by a Court of Law having jurisdiction in any part of India and जबकि नियम 130 के तहत स्पष्ट है कि इसमें Motion to consider policy, situation, Statement, report or any other matter पर चर्चा की जा सकती है।
सरकार इस नियम के तहत चर्चा को तैयार थी लेकिन भाजपा को यह स्वीकार नही हुआ। परन्तु नियमों के इस खेल मेें केवल प्रश्नकाल की ही आहुति दी गयी। जबकि सत्र के अन्तिम भी प्रश्नकाल को इसी प्रतिष्ठा की भेंट चढ़ा कर बाद में अन्तिम सौहार्द के नाम पर एक विश्वविद्यालय खोलने का बिल पास कर दिया गया। इसके लिये दोनों पक्षों में सौहार्द बन गया। जबकि इस सत्र में भाजपा का प्रश्न था कि उसके इस कार्यकाल में सौंपे आरोप पत्रों पर क्या कारवाई हुई है। यह भी प्रश्न था कि 1.1.2013 से 31.10.2016 तक कितने कर्मचारी अनुबन्ध पर नियुक्त किये और इनमें से कितने नियमित हो पाये हैं। लेकिन यह जानकारियां सिर्फ सवाल बन कर ही रह गयी। इन पर सरकार की कारगुजारी क्या रही है। यह सामने नही आ पाया। वैसे सूत्रों के मुताबिक आरोप पत्रों पर अब तक कोई कारवाई नही हुई है और सरकार ने इस कार्यकाल में केवल 25159 कर्मचारियों की भर्ती अनुबन्ध के आधार पर की है और इनमें से 6901 को ही नियमित किया जा सका है। नियमों की इस स्थिति से जनता स्वयं आंकलन कर सकती है कि पक्ष और विपक्ष में से कौन कितना सही था। जबकि राजनीतिक विश्लेष्को की नजर में अन्तिम सत्र को मैच फिक्सिंग से अधिक कुछ नही था।