शिमला/शैल। प्रदेश भाजपा ने इस बार भी 2012 की तर्ज पर मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह को घेरने की रणनीति अपनाई है। यह संबित पात्रा की पत्रकार वार्ता से स्पष्ट हो गया है। लेकिन 2012 में जिस मुद्दे पर अरूण जेटली ने वीरभद्र पर निशाना साधा था संयोगवश वही मुद्दा आज भी लगभग वैसा ही खड़ा है। फर्क सिर्फ इतना आया है कि आयकर के सारे मामले अदालतों में लंबित चल रहे हैं। सीबीआई अपनी जांच पूरी करके चालान अदालत में दायर कर चुकी है। लेकिन उसमें अभी ट्रायल की स्टेज नही आयी है। ईडी दो अटैचमैन्ट आदेश जारी कर चुकी है आधी जांच करके आनन्द चौहान के खिलाफ चालान दायर कर चुकी है और वह एक वर्ष से अधिक समय से ईडी की हिरासत में भी चल रहा है लेकिन ईडी की जांच अभी पूरी नही हुई है और इसी कारण से अनुपूरक चालान दायर नही हो सका है।
सीबीआई द्वारा दर्ज एफआईआर को रद्द करने के लिये वीरभद्र ने जो याचिका दायर की थी उसका फैसला दिल्ली उच्च न्यायालय की जस्टिस विपिन सांघी की पीठ 31 मार्च 2017 को सुना चुकी है। इस फैसले में वीरभद्र याचिका को अस्वीकार करने के साथ ही अदालत ने मुख्यमन्त्री के 2012 के चुनावों मे दायर शपथ पत्र पर भी चुनाव आयोग को गंभीर निर्देश दे चुकी है। यदि इन निर्देशों पर कारवाई हो जाती तो आज राजनीतिक परिदृश्य एकदम बदला हुआ होता। लेकिन वीरभद्र को भ्रष्टाचार पर घेरने वाली भाजपा ने एक दिन भी इस फैसले पर अपना मुंह नही खोला। संबित पात्रा से जब शैल ने पत्रकार वार्ता में इस संद्धर्भ में सवाल पूछा तो उनके पास इसका कोई जवाब नही था। यही नही जब ईडी के आनन्द चौहान और वीरभद्र को लेकर सामने आये अलग-अलग आचरण पर सवाल पूछा तो इसका भी कोई सन्तोषजनक उत्तर डा. पात्रा के पास नही था।
डा. पात्रा ने वीरभद्र की शासन व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए आरोप लगाया कि शासन को रिटायर्ड और टायरड अधिकारी चला रहे हैं। लेकिन जब इसी संद्धर्भ में उनसे पूछा कि मोदी मन्त्रीमण्डल में तो दो ऐसे रिटायर्ड नौकरशाहों को मंत्री बना दिया गया है जो संसद के किसी भी सदन के सदस्य ही नही है तो इस सवाल पर भी भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता के पास कोई उत्तर नही था। इस संद्धर्भ में यदि भाजपा की इस चुनावी आक्रामकता का आंकलन किया जाये तो स्पष्ट उभरता है कि सही मायनों में भाजपा भ्रष्टाचार के खिलाफ कतई गंभीर नही है। यदि गंभीर होती तो जनता से वायदा करती कि भ्रष्टाचार के इन आरोपों पर वह आज ही विजिलैन्स में विधिवत शिकायत दर्ज करवा कर एफआईआर दर्ज किये जाने की मांग करती और यदि विजिलैन्स मामला दर्ज न करती तो वह सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत अदालत का दरवाजा खटखटाकर इन आरोपों को अंजाम तक पहुंचाती। लेकिन भाजपा की ओर से ऐसा कोई वायदा और कारवाई सामने न आने से स्पष्ट हो जाता है कि उसे यह आरोप केवल चुनाव प्रचार के लिये चाहिये।