शिमला/शैल। उद्योग विभाग के संयुक्त निदेशक तिलक राज के रिश्वत प्रकरण में सीबीआई ने चण्डीगढ़ ट्रायल कोर्ट में चालान दायर कर दिया है। बल्कि यह चालान दायर होने के बाद ही तिलक राज को जमानत मिली और वह फिर से नौकरी पर आ गये हैं। लेकिन सीबीआई के इस चालान को आगे बढ़ाने के लिये इसमें सरकार की ओर से अभियोजन की अनुमति चाहिये जो कि अभी तक सरकार ने नहीं दी है। सेवा नियमों के मुताबिक किसी भी सरकारी कर्मचारी के विरूद्ध अपराधिक मामला चलाने के लिये अभियोजन की अनुमति अपेक्षित रहती है। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय कई मामलों में यह व्यवस्था दे चुका है कि जब सरकारी कर्मचारी उस पद से हट चुका हो जिस पद पर रहते उसके खिलाफ ऐसा मामला बना था तब ऐसे मामलों में सरकार की अनुमति की आवश्यकता नही रह जाती है। तिलक राज के खिलाफ जब यह मामला बना था तब वह बद्दी में संयुक्त निदेशक के पद पर कार्यरत थे लेकिन यह कांड घटने पर सीबीआई ने उन्हे गिरफ्तार कर लिया और जमानत मिलने के बाद विभाग ने उन्हे बद्दी से बदलकर शिमला मुख्यालय में तैनात कर दिया है। शिमला में उन्हे जो काम दिया गया है उसका उनके बद्दी में रहते किये गये काम से कोई संबंध नही है। काम की इस भिन्नता के चलते विभाग के अधिकारियों का एक बड़ा वर्ग अभियोजन की अनुमति दे दिये जाने के पक्ष में था लेकिन कुछ लोग अनुमति के नाम पर इस मामले को लम्बा लटकाने के पक्ष में हैं और इस नीयत से इस मामले को विधि विभाग की राय के लिये भेज दिया गया है। जबकि नियमों के अनुसार इसमें अन्तिम फैसला तो उद्योग मन्त्री के स्तर पर ही होता है।
उच्चस्थ सूत्रों के मुताबिक विधि विभाग को मामला भेजने के लिये जो आधार बनाया गया है कि जब तिलक राज पर छापा मारा गया था उस समय सीबीआई ने उसके खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज नही कर रखी थी। इसी के साथ यह भी कहा गया है कि पैसे की रिकवरी भी तिलक राज से न होकर अशोक राणा से हुई है जो कि सरकारी कर्मचारी नही है। लेकिन इस मामले में जो एफआईआर सीबीआई ने दर्ज कर रखी है उसके मुताबिक 29 मई को यह मामला विधिवत रूप से दर्ज हो गया था और तिलक राज से रिकवरी 30 मई को हुई थी। रिकवरी के बाद ही अगली कारवाई शुरू हुई थी। ऐसे में विभाग का यह तर्क है कि छापेमारी से पहले एफआईआर दर्ज नही थी कोई ज्यादा पुख्ता नही लगता। एफआईआर में दर्ज विवरण के मुताबिक इसमें बद्दी के ही एक फार्मा उद्योग के सीए चन्द्र शेखर इसके शिकायत कर्ता हैं। शिकायत के मुताबिक चन्द्र शेखर ने फार्मा उद्योग की 50 लाख सब्सिडी के लिये 28 मार्च को बद्दी में संयुक्त निदेशक तिलक राज के कार्यालय में दस्तावेज सौंपे थे। दस्तावेज सौंपने के बाद चन्द्र शेखर को एक अशोक राणा से संपर्क करने के लिये कहा जाता है, इसके बाद 22 मई को उसे इस संद्धर्भ में विभाग का नोटिस मिलता है और फिर वह अशोक राणा से मिलता है तथा इस दौरान हुई बातचीत रिकार्ड कर लेता है। चन्द्रशेखर की बातचीत अशोक राणा से 19 मई और 22 मई को होती है। इसमें उससे रिश्वत मांगी जाती है। चन्द्रशेखर यह रिश्वत मांगे जाने की शिकायत सीबीआई से 27 मई को करता है और प्रमाण के तौर पर यह रिकार्डिंग पेश करता है। सीबीआई अपने तौर पर 28 और 29 मई को स्वयं इस बातचीत और रिकार्डिंग की व्यवस्था करती है। जब 29 मई को इस तरह सीबीआई की वैरीफिकेशन पूरी हो जाती है तब उसी दिन 29 को यह एफआईआर दर्ज होती है। इसके बाद 30 को यह रिश्वत कांड घट जाता है, और सीबीआई तिलक राज को गिरफ्तार कर लेती है।
एफआईआर में दर्ज इस विवरण से विभाग द्वारा अब अभियोजन की अनुमति के लिये लिया गया स्टैण्ड मेल नही खाता है। तिलक राज की गिरफ्तारी के बाद उसके कांग्रेस सरकार और पूर्व की भाजपा सरकार में शीर्ष तक उसके घनिष्ठ संबंधों की चर्चा जगजाहिर हो चुकी है। क्योंकि एफआईआर के मुताबिक ही यह रिश्वत का पैसा मुख्यमन्त्री के दिल्ली स्थित ओएसडी रघुवंशी को जाना था। अब रघुवंशी भी इस मामले में सीबीआई के एक गवाह हैं। ऐसे में अब यह मामला एक ऐसे मोड़ पर है जहां सबकी नजरें इस ओर लगी है कि क्या उद्योग मन्त्री मुकेश अग्निहोत्री इसमें अभियोजन की अनुमति देते है या नही? क्या सीबीआई इसमें अनुमति के बिना ही इस मामले को अंजाम तक पंहुचा पायेगी या नही।