तीसरे दलों की दस्तक किसका खेल बिगाडे़गी चर्चा में आया यह सवाल

Created on Tuesday, 03 October 2017 10:16
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। इस बार होने वाले प्रदेश विधानसभा चुनावों में आधा दर्जन से अधिक नये राजनीतिक दल दस्तक देने जा रहे है। यह दस्तक उस माहौल में दी जा रही है जब केन्द्र में प्रचण्ड बहुमत के साथ सत्तारूढ़ हुई भाजपा ने प्रदेश में 60 सीटें जीतने का लक्ष्य घोषित कर रखा है और कांग्रेस ने वीरभद्र सिंह को सातवीं बार मुख्यमन्त्री बनाने का दावा कर रखा है। हिमाचल की सत्ता आज तक कांगे्रस और भाजपा में ही केन्द्रित रही है। इस सत्ता को जब भी तीसरे दलों ने चुनौती देने का प्रयास किया और उसमें कुछ आंशिक सफलता भी लोक राज पार्टी, जनता दल और फिर हिमाचल विकास पार्टीे के नाम पर भले ही हासिल कर ली लेकिन आगे चलकर यह दल अपने-अपने अस्तित्व को भी बचा कर नही रख पाये यह यहां का एक कड़वा राजनीतिक सच है। ऐसा क्यों हुआ? इसके क्या कारण रहे और कौन लोग इसके लिये प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार रहे इसका एक लम्बा इतिहास है। लेकिन अन्तिम परिणाम यही रहा कि सत्ता कांग्रेस और भाजपा में ही केन्द्रित रही बल्कि इसी कारण से यहां तीसरे दलों को आने से पहले ही असफल मान लिया जाता है।
लेकिन इस बार जो दल सामने आ रहे हैं क्या उनका परिणाम भी पहले जैसा ही रहेगा? इस सवाल का आंकलन करने से पहले यह समझना और जानना आवश्यक है कि यह आने वाले तीसरे दल हैं कौन, और इनकी पृष्ठभूमि क्या है। अब तक जो दल अपना चुनाव आयोग में पंजीकरण करवाकर सामने आ चुके हैं उनमें राष्ट्रीय आज़ाद मंच (राम), नव भारत एकता दल, समाज अधिकार कल्याण पार्टी, राष्ट्रीय हिन्द सेना, जनविकास पार्टी, लोक गठनबन्धन पार्टी और नैशनल फ्रीडम पार्टीे प्रमुख है। राष्ट्रीय आज़ाद मंच का प्रदेश नेतृत्व सेवानिवृत जनरल पी एन हूण के हाथ है। जनरल हूण सेना का एक सम्मानित नाम रहा है। अभी थोड़े समय पहले तक वह गृहमन्त्री राजनाथ सिंह के मन्त्रालय के अधिकारिक सलाहकार रहे है। इसी तरह लोग गठबन्धन पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष विजय शंकर पांडे कुछ समय पहले तक भारत सरकार में सचिव रहे है। उनका प्रदेश नेतृत्व भी भूतपूर्व सैनिक कर्नल कुलदीप सिंह अटवाल के हाथ है। इनके साथ ही नैशनल फ्रीडम पार्टी मैदान मे है। यह पार्टी स्वामी विवेकानन्द फाऊंडेशन मिशन द्वारा बनायी गयी है। इसके प्रदेश अध्यक्ष भाजपा में मन्त्री रहेे महेन्द्र सोफ्त है।
यह जितने भी नये दल अभी पंजीकृत होकर सामने आये है। इनकी पृष्ठभूमि से यह पता चलता है कि यह लोग कभी भाजपा/संघ के निकटस्थ रहे है। इस निकटता के नाते यह लोग भाजपा/संघ की कार्यप्रणाली और सोच से भी अच्छी तरह परिचित रहे हैं। आज राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के अन्दर ही मोदी सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों को लेकर आलोचना होना शुरू हो गयी है। पूर्व मन्त्री यशवन्त सिन्हा ने जो मोर्चा अब खोल दिया है उसमें नये लोग जुड़ने शुरू हो गये हैं। आर्थिक फैसलो को लेकर जो हमला जेेटली पर हो रहा था उसमें अब यह जुड़ना शुरू हो गया है कि यह फैसले तो सीधे प्रधानमन्त्री कार्यालय द्वारा लिये जा रहे हैं और इनका सारा दोष जेटलीे पर डालना सही नही है।
इस परिदृष्य में आने वाले चुनावों में भाजपा को कांग्रेस के अतिरिक्त इन अपनो के हमलों का भी सामना करना पड़ेगा। दूसरी ओर प्रदेश में भाजपा नेतृत्व के प्रश्न पर पूरी तरह खामोश चल रही है। भाजपा में आज अनुशासन को उसके अपने ही लोगों से चुनौती मिलना शुरू हो गयी है। क्योंकि अब तक करीब एक दर्जन विधानसभा क्षेत्रों से सार्वजनिक रूप से टिकट के लिये अपनी-अपनी दोवदारी पेश कर दी है। कल को यदि इन लोगों को टिकट नही मिल पाता है तब क्या लोग पार्टी के लिये ईमानदारी से काम कर पायेंगे या नही यह सवाल बराबर बना हुआ है। बल्कि कुछ उच्चस्थ सूत्रों का यह दावा है कि भाजपा में जिन लोगों को टिकट नही मिल पायेगा वह कभी भी इन नये दलों का दामन थाम लेंगे। इसलिये यह माना जा रहा है कि यह तीसरे दल भाजपा और कांग्रेस दोनो के समीकरणों को बदल कर रख देंगे क्योंकि यही दल कांग्रेस के असन्तुष्टों के लिये भी स्वभाविक मंच सिद्ध होंगे और यही कांग्रेस/भाजपा के लिये खतरे की घन्टी होगा।