शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह एवम उनके परिवार के खिलाफ चल रहे मनीलाॅडिंग मामले में ईडी ने तीसरी बार संपति अैटच किये जाने के आदेश किये हैं। पहला अटैचमैन्ट आर्डर 23 मार्च 2016 को जारी हुआ था। इसके तहत प्रतिभा सिंह के नाम पर दिल्ली के ग्रेटर कैलाश में खरीदा गया मकान अटैच हुआ था। इस अैटचमैन्ट के बाद ही एलआईसी ऐजैन्ट आनन्द चौहान को ईडी ने जून 2016 को गिरफ्तार किया था जो अब तक हिरासत में ही चल रहा है। इसके बाद ईडी ने वीरभद्र, प्रतिभा सिंह और अन्य को सम्मन किया था। वीरभद्र और प्रतिभा सिंह ने सम्मन किये जाने को दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी। लेकिन इसी बीच ईडी ने 31.3.2017 को दूसरा अटैचमैन्ट आर्डर जारी करके दिल्ली के डेरा मंडी महरौली स्थित फार्म हाऊस को अैटच कर दिया। यह फार्म हाऊस विक्रमादित्य और अपराजिता की कंपनी मैप्पल डैस्टीनेशन और ड्रीम बिल्ड के नाम पर खरीदा गया है।
इस अटैचमैन्ट के बाद ईडी के सम्मन आदेश को चुनौती देने वाल मामलें मेें दिल्ली उच्च न्यायालय का फैसला आया। सम्मन आदेश को ूwithout jurisdiction and authority कह कर चुनौती दी गयी थी। दिल्ली उच्च न्यायालय ने वीरभद्र की याचिका को अस्वीकार करते हुए तीन जुलाई 2017 को अपने फैसले में यह कहा कि It is clear from the above discussion that the Prvention of Money- Laundering Act, 2002 is a complete Code which overrides the general criminal law to the exrent of inconsistency. This law establishes its own enforcement machinery and other authorities with adjudicatory powers and jurisdiction. There is no requirement in law that an officer empowered by PMLA may not take up investigation of a PMLA offence or may not arrest any person as permitted by its provision without obtaining authorization from the court. Such inhibitions cannot be read into the law by the court. उच्च न्यायालय के इस फैसलेे के बाद अब 12.10.17 को ईडी की ओर से एक अटैचमैन्ट आर्डर जारी किये जाने की खबर सामने आयी है। इस अैटचमैन्ट आर्डर में प्रतिभा सिह, विक्रमादित्य और अपराजिता की 5.6 करोड़ की और संपति इसी फार्म हाऊस से जुड़ी हुई होने को अटैच किये जाने का दावा किया गया है। वीरभद्र ने इस तीसरे कथित अटैचमैन्ट आर्डर को आधारहीन करार देते हुए आरोप लगाया है कि किसी और की संपति अटैच की गयी है। जिसे शरारतपूर्ण तरीके से वीरभद्र के परिजनों के नाम पर दिखा दिया गया। वीरभद्र ने इसे परिवार को बदनाम करने का प्रयास बताया है।
स्मरणीय है कि इस मनीलाॅडिंग मामले में गिरफ्तार चल रहे आनन्द चौहान के खिलाफ ईडी ट्रायल कोर्ट में चालान दायर कर चुकी है। आनन्द चौहान वीरभद्र के साथ यह अभियुक्त है। वह मुख्य आरोपी नहीं है। आनन्द चौहान के खिलाफ यह आरोप है कि उनके माध्यम से ली गयी एलआईसी पालिसियां ग्रेटर कैलाश का मकान खरीदने में निवेश हुई है। दिल्ली के डेरा मण्डी मैहरौली में खरीदे गये फार्म हाऊस में वक्कामुल्ला से लिया गया कर्ज निवेशित हुआ है। इसी आधार पर ईडी ने जो अटैचमैन्ट आर्डर 23.3.2016 को जारी किया था उसमें स्पष्ट कहा है कि वक्कामुल्ला से लिये गये कर्ज को लेकर अभी जांच पूरी नही हुई है। इस जांच के पूरा होने के बाद इस मामले में अनुपूरक चालान दायर किया जायेगा। लेकिन यह चालान अब तक दायर नही हुआ है। अब माना जा रहा है कि 31.3.2017 को जारी अटैचमैन्ट आर्डर के साथ ही इस मामले में ईडी की जांच पूरी हो गयी है। आनन्द चौहान के खिलाफ दायर हुए चालान में अगली कारवाई तब तक आगे नही बढ़ सकती है जब तक की उसमें यह अनुपूरक चालान दायर नही हो जाता है। ट्रायल कोर्ट ने ईडी को पिछली बार निर्देश दिये थे कि इस मामले में 31.10.2017 तक अनुपूरक चालान दायर किया जाये।
अब ईडी को 31 अक्तूबर तक यह चालान दायर करना है। अभी जो अैटचमैन्ट आर्डर प्रचारित हुआ है उसमें वक्कामुल्ला के माध्यम से हुए निवेश का जिक्र आया है। वक्कामुल्ला से वीरभद्र परिवार ने कर्ज लिया है इसे परिवार स्वीकार कर चुका है ईडी के मुताबिक इस कर्ज का निवेश फार्म हाऊस खरीदने में हुआ है और इस नाते यह Crime Proceed बन जाता है तथा इसी आधार पर इसकी अटैचमैन्ट हुई है। लेकिन जब 23.3.2016 को पहला अटैचमैन्ट आर्डर जारी हुआ था उसके बाद ही आनन्द चौहान की गिरफ्तार हुई थी। परन्तु 31.03.2017 को हुये अटैचमैंट आर्डर के बाद कोई गिरफ्तार नहीं हुई है। इसीलिये अब जो अैटचमैन्ट आर्डर 12 अक्तूबर को जारी हुआ प्रचारित हुआ है जिसे वीरभद्र ने आधारहीन करार दिया है। तो इससे ई डी की नीयत और नीति को लेकर सवाल उठने स्वभाविक है। इस आर्डर के प्रचार से यह सन्देह बन रहा है कि इसमें कहीं ईडी वक्कामुल्ला के खिलाफ आनन्द चौहान जैसी कारवाई की भूमिका तो नहीं बना रहा है। क्योंकि उत्तराखण्ड में भी चुनाव से पूर्व हरीश रावत को ऐजैन्सीयों ने ऐसे ही घेरा था।