शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह के सचिवालय में कार्यरत ओ एस डी त्रिलोक जनारथा और राकेश ढिंड़ोरा ने अपने-अपने पदों से त्यागपत्र दे दिया है। क्योंकि त्रिलोक जनारथा मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह और राकेश ढिंड़ोरा मुख्यमन्त्री के बेटे विक्रमादित्य सिंह के अधिकारिक चुनाव ऐजैन्ट बन गये हैं। चुनाव ऐजैन्ट बनने केे लियेे रिटर्निंग अफसर के पास चुनाव प्रत्याशी द्वारा एक फार्म भरकर अपने चुनाव ऐजैन्ट की जानकारी देनी होती है और इस फार्म पर ऐजैन्ट को भी हस्ताक्षर करने होतेे हैं। इसलिये जब इन अधिकारियों ने चुनाव ऐजैन्ट होना स्वीकार लिया तो फिर यह सरकार में बतौर ओ एस डी काम नही कर सकते थे। कानून की इस बाध्यता के चलते विपक्ष के शोर मचाने-शिकायत करने से पहले ही पद त्याग दिये।
स्मरणीय है कि त्रिलोक जनारथा पूर्व में वीरभद्र सिंह के प्रधान निजि सचिव भी रह चुके हैं। रोहडू से ताल्लुक रखने वाले जनारथा वीरभद्र के विश्वस्तों में गिने जाते हैं। इसलिये वीरभद्र ने इन्हें सेवानिवृति के बाद भी अपने साथ रखा हुआ है। राकेश ढिंड़ोरा एच ए एस इसी वर्ष सेवा निवृत हुए थे। वह मुख्यमन्त्री सचिवालय में वीरभद्र के चुनाव क्षेत्रा शिमला ग्रामीण के सारे कार्य देख रहे थे और इस नातेे पूरे चुनाव क्षेत्र की उन्हे जानकारी हो गयी थी। फिर ढिंड़ोरा नालागढ़ के एक प्रतिष्ठत स्वतन्त्रता सैनानी और राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखतेे हैं। बल्कि इस बार वह नालागढ़ से कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ना चाह रहे थे और इसके लिये उन्होने पार्टी से आवेदन भी कर रखा था। लेकिन अब जब वीरभद्र और विक्रमादित्य दोनों ने ही चुनाव लड़ने का फैसला लिया तब शिमला ग्रामीण में चुनाव ऐजैन्ट की जिम्मेदारी संभालने के लिये उनसे उपयुक्त और कोई नही था। विक्रमादित्य के लिये यह जिम्मेदारी निभाने के लिये ढिंडोरा ने स्वयं चुनाव लड़ने का फैसला छोड़ दिया।
स्मरणीय है कि मुख्यमन्त्री के सचिवालय पर विपक्ष हर समय यह आरोप लगाता रहा है कि यह कार्यालय सेवानिवृत अधिकारियों की शरण स्थली बना हुआ है। संयोगवश मुख्यमन्त्री के प्रधान निजि सचिव सुभाष आहलूवालिया , प्रधान सचिव टीजी नेगी, ओ एस डी राकेश शर्मा सभी सेवानिवृत अधिकारी हैं। इनके अतिरिक्त अमित पाल सिंह, भी मुख्यमन्त्री के ओ एस डी हैं लेकिन इनमें से किसी ने भी अपने पदों से त्यागपत्र नही दिया है। इस चुनाव में मुख्यमन्त्री का सचिवालय विपक्ष के विशेष निशाने पर रहने वाला है। बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि मुख्यमन्त्री कार्यालय की कार्यप्रणाली के कारण भी बहुत लोगों में रोश पैदा हुआ है। भाजपा के ‘‘हिमाचल मांगे हिसाब’’ में मुख्य सचिव से लेकर प्रधान निजि सचिव और सुरक्षा अधिकारी तक विशेष निशाने पर रहे है। ऐसे में वीरभद्र के यह विश्वस्त किस तरह की रणनीति अपनाकर विपक्ष को चुनाव में मात देते हैं इस पर सबकी निगाहें लगी हैं। क्योकि मुख्यमन्त्री के प्रधान निजि सचिव का कार्य देख रहेे सुभाष आहलूवालिया की नियुक्ति अभी भी सरकार के मीडिया सलाहकार के रूप में चल रही है। लेकिन आहलूवालिया सरकार के मीडिया सलाहकार का काम देखने की बजाये मुख्यमन्त्री के निजि सचिव का कार्य कर रहे है।
स्मरणीय है कि आहलूवालिया 2011 में सेवानिवृत हुए थे और 2012 में कांग्रेस की सरकार आते ही मीडिया सलाहकार के रूप में पुनः नियुक्ति मिल गयी थी। इस तरह मुख्यमन्त्री के विश्वस्त होने के नाते बतौर मीडिया सलाहकार उनकी निष्पक्षता पर सवाल उठने स्वभाविक है । इसी आधार पर चुनाव आयोग के आदेश से लोक संपर्क विभाग के निदेशक आर एस नेगी को हटना पड़ा है। अब भाजपा ने आहलूवालिया की शिकायत चुनाव आयोग को भेज दी है। माना जा रहा कि आहलूवालिया को भी उनके पद से त्यागपत्र देना ही पडे़गा।