शिमला/शैल। मुख्यन्त्री वीरभद्र सिंह के बेटे और प्रदेश युवा कांग्रेस के अध्यक्ष विक्रमादित्य सिंह शिमला ग्रामीण विधान क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं। इस चुनाव के लिये उन्होने जो शपथ पत्र दायर किया है उसमें अपनी चल- अचल संपति 84 करोड़ दिखा रखी है। यह 84 करोड़ संपत्ति दिखाने पर भाजपा ने वीरभद्र सिंह और विक्रमादित्य से सवाल पूछा है कि इतनी संपत्ति पांच वर्षों में उन्होने कैसे अर्जित कर ली। फिर इसी शपथ पत्र में विक्रमादित्य ने वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर से 84 लाख का कर्ज लिया भी दिखाया है। इस कर्ज पर भी भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता डा. पात्रा ने सवाल पूछा है कि जब विक्रमादित्य के पिता मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह और उनकी माता पूर्व सांसद प्रतिभा सिंह के पास करोड़ो रूपया कैश- इन- हैंड था तो उन्हे यह कर्ज लेने की आवश्यकता क्यों पड़ गयी। डा. पात्रा ने विक्रमादित्य और वक्कामुल्ला की कंपनीयों केे व्यापारिक रिश्तों पर गंभीर सवाल उठाये हैं।
विक्रमादित्य की संपति पर यह सवाल इसलिये उठाये गये कि जब वीरभद्र सिंह ने 17.10.12 को विधानसभा चुनाव लडते हुए जो शपथ पत्र दायर किया था उसें विक्रमादित्य को अपनेे पर आश्रित दिखाया था। उस समय विक्रमादित्य के नाम करीब 1.5 करोड़ की संपति दिखायी गयी है। 2012 तक विक्रमादित्य कोई आयकर रिर्टन भी दायर नही करते थे। उसके बाद विक्रमादित्य ने अपनी कंपनी के नाम महरौली में जो फार्म हाऊस गड्डे परिवार से 1.20 करोड में खरीदा था उसके लिये उन्हें 90 लाख वीरभद्र सिंह ने दिये थे। 30 लाख उन्होने अपने साधनों से दिये थे। लेकिन सीबीआई और ईडी की जांच में यह खुलासा हुआ है कि यह तीस लाख भी दो कंपनीयों से 15- 15 लाख के चैकों के माध्यम से आया है। इन कंपनीयों की वैद्धता पर भी ईडी ने सवाल उठाये हैं और इसी कारण से फार्म हाऊस की अटैचमैन्ट केे आदेश हुए है।
यही नही ईडी के अटैचमैन्ट आदेश में हुए खुलासे के मुताबिक 19 नवम्बर 2011 से 25 नवम्बर के बीच वक्कामुल्ला की तीन कंपनीयों से विक्रमादित्य के स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया के खाते में 25.11.11 को दो करोड़ रूपये आते हैं और फिर 10.01.12. को विक्रमादित्य की कंपनीे मैप्पल डैस्टीनेशन से 50 लाख वक्कामुल्ला को दे दिये जाते है। 11.1.12 को इसी कंपनी से वक्कामुल्ला की कंपनी तारिणी सुगर को 1.50 करोड़ दे दिये जाते हैं। वीरभद्र से विक्रमादित्य को 90 लाख 2.8.11 को मिलते है और विक्रमादित्य 4.8.11 को 45-45 लाख सुनीता गड्डे और पिचेश्वर गड्डे के खातों में जमा करवाते हैं। लेकिन इसके बाद नवम्बर 2011 में पहले वक्कामुल्ला दो करोड़ विक्रमादित्य को देते हैं फिर 10 जनवरी को 2012 को विक्रमादित्य की कंपनी दो करोड़ वक्कामुल्ला और उसकी कंपनी को देते हैं। संभवतः इसी लेन देन के आधार पर विक्रमादित्य और वक्कामुल्ला के रिश्तों पर सवाल उठाये जा रहे हैं। इसी कारण से विक्रमादित्य की संपति के 84 करोड़ हो जाने पर सवाल उठ रहे है।