भाजपा पर भारी पड़ सकती है वीरभद्र के भ्रष्टाचार पर अतिकेन्द्रियता

Created on Tuesday, 31 October 2017 10:28
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। भाजपा की प्रदेश से लेकर केन्द्र तक की सारी लीडरशीप इस विधानसभा चुनाव में मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह और उनके परिवार के खिलाफ सीबीआई और ईडी में चल रहे मामलों को एक प्रमुख मुद्दा बनाकर चल रही है। भाजपा के हर छोटे-बडे नेता की जनसभा और पत्रकार वार्ताएं वीरभद्र के भ्रष्टाचार से शुरू हो रही है। लेकिन इसी के साथ यह भी कहते हैं कि वीरभद्र के खिलाफ उनकी सरकार में नही बनाये गये बल्कि यूपीए सरकार के समय से चले आ रहे है। परन्तु वीरभद्र इन मामलों को जेटली, प्रेम कुमार धूमल और अनुराग ठाकुर का एक षडयंत्र करार देते रहे है। इस षडयंत्र के लिये वह तर्क देते हैं कि यूपीए शासनकाल में सीबीआई ने जो प्रारम्भिक जांच की थी उसमें उन्हे क्लीन चिट मिल चुकी है। लेकिन भाजपा सरकार ने इस क्लीन चिट को नजर अन्दाज करके उनके खिलाफ नये सिरे से जांच करवाई की। जिसके परिणामस्वरूप यह मामले खड़े हुए हैं। इस परिदृश्य में यदि वीरभद्र के मामले की पड़ताल की जाये तो यह सामने आता है कि सीबीआई ने उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मामला खड़ा किया है। सीबीआई इस मामले में अपनी जांच पूरी करके चालान ट्रायल कोर्ट में डाल चुकी है। इस मामले में दर्ज हुई एफआईआर को रद्द करने की गुहार वीरभद्र सिंह दिल्ली उच्च न्यायालय से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक कर चुके हैं परन्तु दोनों अदालतें उनके आग्रह को अस्वीकार कर चुकी है। सीबीआई द्वारा बनाये गये आय से अधिक मामले को ईडी मनीलाड्रिंग मानकर जांच कर रही है। मनीलाॅड्रिंग प्रकरण में ईडी दो अैटचमैन्ट आदेश जारी करके परिवार की चल-अचल संपत्ति को अैटच कर चुकी है। इस मामले में पहले अटैचमैन्ट आदेश के बाद ईडी वीरभद्र के एलआईसी ऐजैन्ट आनन्द चैहान को गिरफ्तार कर चुकी है। आनन्द चौहान जून 2016 से हिरासत में है। आनन्द की गिरफ्तारी पहले जारी हुए अटैचमैन्ट आर्डर में ईडी ने कहा कि इस मामले में वक्कामुल्ला को लेकर अभी जांच पूरी नही हुई और इसे शीघ्र ही पूरी करके अनुपूरक चालान दायर किया जायेगा। यह वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर के प्रंसग को लेकर ईडी अभी तक अपनी शेष जांच पूरी नही कर सका है। इसी कारण से अनुपूरक चालान दायर नही हो पाया है और कोई गिरफ्तारी भी नही हो पायी है। लेकिन इसी के कारण आनन्द चौहान के चालान पर भी आगे कारवाई नही बढ़ पायी है। ईडी में दर्ज मामले को भी रद्द करवाने की गुहार वीरभद्र सिंह दिल्ली उच्च न्यायालय से लगा चुके हैं। दिल्ली उच्च न्यायालय इस गुहार को अस्वीकार करके ईडी को हर तरह की कारवाई के लिये स्वतन्त्र कर चुका है। लेकिन ईडी की ओर से अगली कारवाई नही की जा रही है। ईडी के इस आचरण पर केन्द्रिय मन्त्री अरूण जेटली और रविशंकर प्रसाद तथा भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता डा. संबित पात्रा तक कुछ नहीं कह पाये हैं।
यही नहीं वीरभद्र सिंह के प्रधान निजि सचिव और सरकार के मीडिया सलाहकार सुभाष आहलूवालिया के मामले में शिमला स्थित ईडी कार्यालय ने उनको नोटिस जारी करके तलब किया था। तब शिमला मे तैनात ईडी के सहायक निदेशक का वीरभद्र सरकार ने अचानक उनका डैपुटेशन कैन्सिल करने की कारवाई शुरू कर दी थी और अन्त में उस सहायक निदेशक को हिमाचल पुिलस में वापिस आना पड़ा था। उस समय भाजपा ने सहायक निदेशक को सरकार द्वारा वापिस बुलाये जाने के मामले पर भाजपा ने प्रदेश विधानसभा में जमकर हंगामा किया था। तीन दिन तक सदन की कारवाई को बाधित रखा था। आहलूवालिया के खिलाफ गंभीर आरोपों की शिकायत ईडी के पास पहुंची हुई थी। करीब सौ करोड़ की मनीलाॅड्रिग के आरोप उस शिकायत मे थे, लेकिन ईडी के किसी भी नोटिस पर आहलूवालिया के ऐजैन्सी में पहुंचने की खबर नही है। उस शिकायत पर ईडी में क्या कारवाई हुई इसकी आज तक किसी को जानकारी नही है। लेकिन इस मुद्दे पर सदन को तीन दिन तक बाधित रखने वाली प्रदेश भाजपा और ईडी भी आज तक एकदम चुप है। जो भाजपा वीरभद्र के मामले को हर रोज मुद्दा बनाकर उछाल रही है। वह आज आहलूवालिया के मामले पर चुप क्यों है। भाजपा की चुप्पी से ज्यादा तो ईडी की खामोशी सवालों में है। बल्कि अब तो यह चर्चा उठती जा रही है कि हिमाचल की एचपीसीए को लेकर जो आपराधिक मामले प्रदेश भाजपा नेताओं के खिलाफ आज अदालत तक पहुंच चुके है और इन नेताओं को भी ज़मानते लेनी पड़ी है उसमें एक मामलें में आहलूवालिया समेत वीरभद्र कार्यालय के दो अधिकारी भी चालान में खाना 12 में बतौर अभियुक्त नामत़द है। चर्चा है कि इनके खाना 12 में बतौर अभियुक्त नामज़द होने के कारण ही एचपीसीए के खिलाफ चल रहे मामले आगे नही बढे हैं और बदले में ईडी इनके मामलों में चुप होकर बैठी है।
स्मरणीय है कि सीबी आई के दो पूर्व निदेशकों के खिलाफ जांच चल रही है एक निदेशक के खिलाफ तो यह आरोप है कि उसे ई डी हिरासत में चल रहे मीट विक्रेता मोईन कुरैशी के माध्यम से कुछ लोगों के मामलों को दबाने के लिये करोड़ो की रिश्वत मिली है। मोईन कुरैशी के प्रदेश के किन लोगों के साथ क्या रिश्ते हैं इसे बहुत लोग जानते हैं। इसीलिये जब वीरभद्र सिंह और सुभाष आहलूवालिया के मामलें में ईडी तो चुप बैठी हुई है। भाजपा आहलूवालिया के मामले को नजरअन्दाज कर रही है और वीरभद्र के मामले को हर रोज मुद्दा बना रही है तो यह स्वभाविक सवाल उठता है कि ऐसा क्यों हो रहा हैं वैसे तो भाजपा के लिये एक परेशानी वाला यह सवाल भी खड़ा है कि जहां वीरभद्र ज़मानत पर हैं वहीं पर धूमल, अनुराग, राजीव बिन्दल और वीरेन्द्र कश्यप आदि भाजपा के नेता भी ज़मानत पर हैं। इस परिदृश्य में भाजपा द्वारा वीरभद्र के मामले को रोज उठाना जबकि ईडी एकदम शान्त बैठी है इससे स्वभाविक रूप से यह संकेत उभरता है कि भाजपा केन्द्र की एजैन्सीयों के नाम से अपने राजनीतिक विरोधीयों को भ्रष्टाचारी प्रचारित करके राजनीतिक ब्लैकमेलिंग कर रही है। क्योंकि सीबीआई का चालान तो ट्रायल कोर्ट में पहुंच चुका है। और उसका फैसला आने में लम्बा समय लगेगा। फैसले से पहलेे ही इसमे फतवा देना शुद्ध राजनीति है। ईडीे की तो अभी जांच भी पूरी नही हुई है यह ईडी ने आनन्द चौहान की गिरफ्तारी में स्वयं स्वीकार किया है। बल्कि इसके बाद ही चर्चा उठी थी कि ईडी वीरभद्र के खिलाफ कोई ठोस मामला बना नही पा रही है। उल्टे ईडी की फज़ीहत हो रही है कि सहअभियुक्त तो जेल में है और मुख्यअभियुक्त बाहर है। ईडी वित्त मन्त्रालय के अधीन है। और इसीलिये वित्त मन्त्री अरूण जेटली एक कानूनविद होने के बावजूद इस संद्धर्भ में पूछे गये सवालों का केई स्पष्ट उत्तर नही दे पाये हैं।