कानूनी लड़ाई का पहला चरण हार चुके वीरभद्र के लिये चुनावों के बाद बढ़ सकती हैं मुश्किलें

Created on Monday, 06 November 2017 11:47
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह आयकर, सीबीआई ईडी मे चल रहे मामलों में कानूनी लड़ाई का पहला चरण हार गये हैं। आयकर प्राधिकरण चण्डीगढ़ में हुए फैसलों की अपील प्रदेश उच्च न्यायालय शिमला में की गयी थी। यहां आये दोनों मामलों में उन्हे राहत नही मिली है। सीबीआई में चल रहे आय से अधिक संपत्ति मामले में 31 मार्च 2017 को आये फैसलों में अदालत ने उनके खिलाफ दायर एफ आई आर को रद्द करने से इन्कार कर दिया है। दिल्ली उच्च न्यायालय के इस फैसले के खिलाफ वीरभद्र कि ओर से सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर की गयी थी। अब सर्वोच्च न्यायालय ने यह अपील खरीज कर दी है। सीबीआई ने इस प्रकरण  में ट्रायल कोर्ट में चालान दायर कर दिया है। इस पर अगली कारवाई भी शुरू हो चुकी है। 31 मार्च 2017 को आये फैसले में वीरभद्र के 2012 के विधानसभा चुनाव में दायर किये गये संपत्ति शपथ पत्र को लेकर गंभीर टिप्पणी की गयी है। सीबीआई ने इस शपथ पत्र को झूूठा करार दिया है। उच्च न्यायालय ने शपथ पत्र के मामले को चुनाव आयोग को भजने और उस पर नियमां के तहत कारवाई करनेे की संस्तुति की है। चुनाव आयोग के पास दायर शपथ पत्र के झूठा पाये जाने पर जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत कारवाई की जाती है। झूठे शपत पत्र पर व्यक्ति की सदन की सदस्यता समाप्त होने के साथ ही छः माह के कारावास का भीे प्रावधान है। दिल्ली उच्च न्यायालय की टिप्पणी यह है It has come to light that the first ITR for the AY 2011-12 was filed by Shri. Vir Bhadra Singh on         11-07-2011 showing his agricultural income as    Rs. 25 Lakhs. The revised ITR for this year showing an income of Rs.1.55 Crores was filed by him on  02-03-2012. Thereafter while contesting HP Assembly elections.  He filed an affidavit on         17-10-2012 showing his income as         Rs. 18.66 Lakhs only. Thus Shri.     Vir Bhadra Singh appears to have grossly suppressed  his income in the said affidavit. This matter is proposed to be brought to  the notice of the Election Commission  of India for taking necessary action as deemed fit. अब 2017 का चुनाव चल रहा है इसके लिये भी शपथ पत्र दायर हुआ है। अब यह आशंका व्यक्त की जा रही है कि जब 2012 के चुनाव में लिया गया आय का आधार अन्तः विरोधी है तो फिर उसके बाद आय के सारे आधारों पर प्रश्न चिन्ह लगना स्वभाविक है। 

ईडी ने मनीलांडरिंग के तहत दो अटैचमैन्ट आदेश जारी करके परिवार की करोड़ो की चल-अचल संपत्ति अटैच कर रखी है। मनीलाॅंरिंग प्रकरण में वीरभद्र के साथ सह अभियुक्त बने उनके एलआईसी ऐजैन्ट आनन्द चैहान जून 2016 से हिरासत में चल रहे हैं। ईडी ने जो दूसरा अटैचमैन्ट आदेश जारी किया है उसमें दो एनैक्सरचर संलग्न किये हैं। इनमें यह दिखाया गया है कि वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर -वीरभद्र विक्रमादित्य-मैप्पल डैस्टीनेशन और ड्रीम बिल्ट में किस तरह से सारा लेनदेन हुआ है। इसमें कुछ Shell कंपनीयों के साथ हुई 27 टाजैक्शन दिखायी गई है। इन सबमें Supply of certain material  दिखायी गयी है लेकिन इस मैट्रियल की तफसील नही दी गयी है। इस सारी कड़ी में हुई जांच में वक्कामुल्ला का आर्थिक बेस सवालों के घेरे में है। ईडी के मुताबिक सारी कंपनीयों के डायरैक्टर फर्जी हैं। 

 यह व्यवहारिक स्थिति सीबीआई और ईडी की जांच में सामने आये दस्तावेजों से उभरी है। ईडी और सीबीआई में दर्ज हुए मामलों को रद्द करने से दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट इन्कार   कर चुके। यह मामले रद्द किये जाने की याचिकाओं की सुनवाई के दौरान स्वभाविक रूप में यह दस्तावेज अदालत के सामने आये ही होंगें। इन दस्तावेजों की गंभीरता और प्रमाणिकता को आंकने के बाद ही हर नेता ने प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी तक ने वीरभद्र के इस कथित भ्रष्टाचार पर निशाना साधा है। जेपी नड्डा तक ने भी यह आरोप लगाया है कि वीरभद्र के कारण हिमाचल शर्मसार हुआ है। लेकिन भाजपा नेताओं के इन आरोपो से ही सवाल भी उभरता है कि जब वीरभद्र सिंह के खिलाफ इतने साक्ष्य ईडी के सामने थे तो उसने कारवाई क्यों नही की? 2012 का चुनाव शपथ पत्रा एकदम पुख्ता और प्रमाणिक दस्तावेज है यदि इस पर कारवाई फैसला आनेे के तुरन्त बाद हो जाती तो निश्चित रूप से प्रदेश का राजनीतिक परिदृश्य ही बदल गया होता। ऐसे में सवाल उठता है कि भाजपा ने इस मुद्दे को क्यो नही उठाया? क्या शीर्ष  स्तरों पर कुछ और पक रहा था?क्या इस सारे मामले को एक बार फिर लोक सभा चुनावों की तर्ज पर विधानसभा चुनावों में भी भुनाने की रणनीति बनाई जा रही थी। क्योकि ईडी को चुनावों के बाद अगली कारवाई जल्द पूरा करने की कानूनी बाध्यता होगी। फिर 2012 के चुनाव शपथ पत्र पर नौ नवम्बर के मतदान के बाद कारवाई करने की नौबत आ सकती है क्योंकि उच्च न्यायालय तो पहले ही इस मामले को चुनाव आयोग को भेजने के निर्देश 31 मार्च के फैसले मेें दे चुका है। इस परिदृश्य में चुनाव आयोग और भाजपा क्या करती है इस पर सबकी निगाहें रहेगी।