शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश में टीपीसी एक्ट 1977 में शान्ता कुमार की सरकार के दौरान लागू हो गया था। मार्च 1979 में अन्तरिम डवैल्पमैन्ट प्लान भी अधिसूचित हो गयी थी। उसके बाद 1980 में सरकार बदल गयी और स्व. ठाकुर राम लाल मुख्यमन्त्री बन गये जो अप्रैल 1988 तक रहे। उसके बाद वीरभद्र ने सत्ता संभाली लेकिन फरवरी 1990 में फिर शान्ता के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी और यह सरकार दिसम्बर 1992 तक रही। 1993 में फिर वीरभद्र मुख्यमन्त्री बन गये। इसके बाद से लेकर अब तक धूमल और वीरभद्र में सत्ता केन्द्रित रही। लेकिन अब तक 1979 में जारी हुई अन्तरिम डवैल्पमैन्ट के स्थान पर कोई स्थायी प्लान नही लायी जा सकी है। बल्कि इस अन्तरिम प्लान में ही 18 बार संशोधन हो चुके और अवैध निर्माणों को नियमित करने के लिये 9 बार रिटैन्शन पाॅलिसियां लायी गयी हैं।
प्रदेश के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में हर रोज़ कोई न कोई निर्माण कार्य चल ही रहा है। लेकिन इस निर्माण से शहरी क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाओं की आपूर्ति में अब लगातार कठिनाई आती जा रही है। प्रदेश के राजधानी नगर निगम शिमला में लोगों को 24 घन्टे नियमित रूप से पेयजल तक उपलब्ध नही हो पा रहा है। गारवेज हर शहर की प्रमुख समस्या बन चुकी है। आज विकास के नाम पर सड़क निर्माण से लेकर जलविद्युत परियोजनाओं और सीमेंट कारखानों के निमार्ण से हुए लाभ के साथ इससे पर्यावरण का सन्तुलन भी बुरी तरह बिगड़ गया है। आज पूरा प्रदेश प्राकृतिक आपदाओं के मुहाने पर आ खड़ा हुआ है। हर वर्ष लैण्ड स्लाईड फ्लैश फ्लडज़ बादल फटने और भूंकप आदि की घटनाओं में बढ़ौत्तरी हो रही है। इन घटनाओं से हर वर्ष सैंकड़ो करोड़ो के राजस्व का सरकारी और नीज़ि क्षेत्र में नुकसान हो रहा है। यह जान माल का नुकसान चिन्ता का कारण बनता जा रहा है। इस पर प्रदेश उच्च न्यायालय से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक चिन्ता व्यक्त कर चुके हैं। यह संकट कितना बड़ा और कितना भयावह हो सकता है इसको लेकर ही अब एनजीटी को इतना सख्त फैसला सुनाना पडा है।
एनजीटी के फैंसले से प्रदेश भर में हड़कंप की स्थिति पैदा हो गयी है। इस फैंसले से सबसे ज्यादा हड़कंप शिमला में मचा है। क्योंकि यहां पर ही सबसे जयादा अवैध निर्माण हुए हैं। इन्ही अवैध निर्माण को नियमित करने के लिये ही रिटैन्शन पाॅलिसियां लायी गयी हैं। लेकिन हर बार पाॅलिसी आने के बाद अवैध निर्माण रूके नही हैं बल्कि और बढ़े हैं क्योंकि यह धारणा बन गयी है कि वोट की राजनीति के चलते हर सत्तारूढ़ सरकार इन्हें नियमित करने के लिये पाॅलिसी लायेगी ही और ऐसा ही हुआ भी है। इसी के चलतेे आज नगर निगम शिमला में भाजपा और कांग्रेस एकजुट होकर एनजीटी के फैंसले का विरोध कर रहे हैं और इसे उच्च न्यायालय में चुनौती देने की बात कर रहें हैं। लेकिन इन लोगों की प्रतिक्रियाओं से यह भी स्पष्ट है कि इनमें से किसी ने भी इस पूरेे फैंसले को पढ़ा ही नही है और यदि पढ़ा है तो अपने राजनीतिक स्वार्थों के कारण इसे समझने का नैतिक साहस नही दिखा पा रहें हैं। कैग नेे भी शिमला के अवैध निर्माणों और उससे होने वाले नुकसान को लेकर परफारमैन्स आॅडिट किया है और उसके मुताबिक यह पाया है कि यदि हल्का सा भी भूकंप का झटका आता है तो उससे 83% भवनों को नुकसान पहुचेगा। एनजीटी ने इस आॅडिट रिपोर्ट का भी अपने फैसले में जिक्र किया है। यही नही एनजीटी ने इस समस्या के अध्ययन के लिये एक कमेटी का भी गठन किया था। इस कमेटी के पहले प्रधान सचिव आर.डी.धीमान अध्यक्ष थे। इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट एनजीटी को सौंपी थी लेकिन इस रिपोर्ट पर कमेटी के सारेे सदस्यों की एक राय नही थी। इस पर आर.डी.धीमान की जगह तरूण कपूर की अध्यक्षता में नयी कमेटीे बनी और कमेटी ने फिर नयेे सिरे सेे रिपोर्ट सौंपी और एनजीटी ने इस कमेटी की सिफारिशों को अपनेे फैंसलेे में पूरा अधिमान दिया है। एनजीटी का फैंसला सरकार के इन अधिकारियों की रिपोर्ट के बाद आया है। जब एनजीटी ने निर्माणों पर अन्तरिम रोक लगायी थी उसके बाद राज्य सरकार केन्द्र सरकार के कई विभागों तथा प्राईवेट व्यक्तियों की याचिकाएं अदालत के पास आयी है। इन याचिकायाओं पर सबका पक्ष सुना गया है और तब जाकर एनजीटी नेे यह फैंसला दिया है।
अब जब इस फैंसले को चुनौती देने की बात हो रही है तब यह चुनौती देने के साथ ही सरकार को आम आदमी के सामने यह भी स्पष्ट करना होगा कि जब हम विकास के नाम पर अवैधताओं को राक ही नही सकते तो फिर उसे अपना टीसीपीएक्ट ही निरःस्त कर देना चाहिये।