शिमला/शैल। वीरभद्र सिंह को सातवीं बार मुख्यमन्त्री बनाने का दावा करने वाली कांग्रेस अभी तक उन्हे नेता प्रतिपक्ष तक नहीं बना पायी है। क्योंकि चुनाव परिणाम आने के बाद कांग्रेस प्रभारी शिंदे और सह प्रभारी रंजीता रंजन ने कांग्रेस पार्टी की हार पर जो फीडबैक लिया था तब उसमें बहुमत इस हार के लिये सबसे ज्यादा वीरभद्र को ही व्यक्तिगत तौर पर दोषी ठहराया था। यही नहीं जब वीरभद्र सिंह के आवास पर विधायकों की बैठक हुई थी तब एक तो सारे विधायक इस बैठक में शामिल ही नही हुए थे और फिर जो शामिल हुए थे उन्होने भी वीरभद्र के कार्यालय के अधिकारियों को नाम लेकर उन्हें हार के लिये जिम्मेदार ठहराया था। इन आरोपों के चलते पार्टी ने नेता के चयन के प्रश्न को स्थगित कर दिया था।
अब राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी की बागडोर संभालने के बाद राहुल गांधी स्वयं इस हार का आंकलन करने शिमला आये थे। उन्होने सारा फीडबैक लेने के बाद प्रदेश के नेताओं और कार्यकर्ताओं को लोगों से जुडने की नसीहत दी है। राहुल गांधी ने कार्यकर्ताओं को यह मन्त्र दिया है कि वह सरकार के हर काम पर अपनी नज़र बनाये रखें और आम आदमी के मुद्दों को लेकर हर समय संघर्ष के लिये तैयार रहें। उन्होने स्पष्ट कर दिया है कि भविष्य में वही आगे आयेगा जो अब संघर्ष करेगा। राहुल गांधी नेताओं और कार्यकर्ताओं से सीधी बात करके वापिस लौट गये हैं और पार्टी का सदन में नेता कौन होगा इसका फैसला दिल्ली से किया जायेगा। इससे यह संकेत उभरता है कि शायद अब वीरभद्र का नेता प्रतिपक्ष होना भी आसान नही होगा। भले ही इस समय पार्टी के चुने हुए विधायकों का बहुमत वीरभद्र के साथ है।
वीरभद्र के नेता प्रतिपक्ष बनने के रास्ते में सबसे बड़ी रूकावट उनके खिलाफ सीबीआई और ईडी में चल रहे मामलें माने जा रहे हैं। इस प्रकरण में अब गंभीरता इस कारण से बढ़ गयीे है क्योंकि आने वाले मार्च माह में सांसदों/विधायकों के खिलाफ चल रहे आपराधिक मामलों का निपटारा एक वर्ष के भीतर करने के लिये सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों पर विशेष अदालतों का गठन किया जा रहा है। इस संद्धर्भ में अगले एक वर्ष के भीतर इनके मामलें में फैसला आ जायेगा। इस मामले में व्यस्त रहने के कारण वीरभद्र नेता प्रतिपक्ष के तौर पर अपनी जिम्मेदारी निभाने के लियेे समय नही निकाल पायेंगे। वीरभद्र के अतिरिक्त कांग्रेस में आशा कुमारी के खिलाफ भी आपराधिक मामला चल रहा है। निचली अदालत से उन्हे सज़ा मिल चुकी है और अब अपील में उच्च न्यायालय में उनका मामला लंबित चल रहा है। माना जा रहा है कि 2018 में इस मामले में भी फैसला आ जायेगा। इन मामलों के चलते वीरभद्र और आशा कुमारी का नेता प्रतिपक्ष बन पाना संदिग्ध माना जा रहा है।