क्या सत्ता का परिचय है यह प्रशासनिक फेरबदल या कुछ और - उठने लगा है सवाल

Created on Monday, 22 January 2018 09:19
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। जयराम सरकार को अभी सत्ता संभाले एक माह का समय भी नही हुआ है लेकिन इस दौरान जितने बड़े स्तर पर प्रशासनिक फेरबदल को अजांम दे दिया गया है। उसको लेकर अब सवाल उठने शुरू हो गये हैं। सचिवालय के गलियारों से लेकर सड़क तक चर्चा होनी शुरू हो गयी है कि इतना बड़ा फेरबदल केवल सत्ता परिवर्तन का परिचय देना मात्र है या इसके पीछे कुछ और है क्योंकि सत्ता परिवर्तन का अहसास तो उसी से हो गया था जब जनता के भाजपा के उन बड़ो को भी हरा दिया जोे अगर जीत गये होते तो शायद आज मन्त्री होते। इस फेरबदल को लेकर इसलिये सवाल उठने लगे हैं कि प्रदेश में 2017 में जारी हुई सिविल लिस्ट के मुताबिक कुछ प्रशासनिक अधिकारियों की संख्या आई ए एस 110 और एचएएस 210 इतने हैं। इनमें से केन्द्र की प्रतिनियुक्ति पर 32 है। प्रदेश में सरकारी विभागों की संख्या 53 है और विभिन्न निगमों /बार्डो/बैंको की संख्या 31 है। इनसे हटकर सचिवालय में बैठे अधिकारी आते हैं। अबतक हुए प्रशासनिक फेरबदल के आंकड़ों पर नज़र दौड़ाई जाये तो शायद इस फेरबदल से हर विभाग प्रभावित हुआ है।
सरकार में वित्त और गृह विभागों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है परन्तु इन विभागों के शीर्ष में सचिव स्तर पर कोई परिवर्तन नही हुआ है। गृह सचिव बदले गये थे लेकिन दो दिन बाद ही यह जिम्मेदारी पुराने ही अधिकारी के पास वापिस दे दी गयी। दिसम्बर के अन्तिम सप्ताह में मन्त्री परिषद् का गठन हुआ और उसके बाद सरकार ने कामकाज़ संभाला है। इन दिनों प्रदेश के करीब आधे हिस्से में शैक्षणिक सत्र समाप्त हो चुका है लेकिन शेष आधे में मार्च -अप्रैल में समाप्त होगा। शैक्षणिक सत्र के अन्तिम दिनों में बच्चों के स्कूल नही बदले जाते हैं और इस फेरबदल से निश्चित तौर पर यह परिवार प्रभावित हुए हैं। इसके अतिरिक्त मार्च में बजट सत्र होगा और यह बजट इस सरकार का पहला बजट होगा। इस बजट से ही सरकार के अगले पूरे कार्यकाल के इंगित मिल जायेंगे। इस नातेे इस बजट सत्र की अहमियत थोड़ी अलग हो जाती है। इस समय पूरा प्रशासनिक तन्त्र एक छोटे बाबू से लेकर विभागाध्यक्ष और सचिव स्तर तक यह बजट तैयार करने में अपनी-अपनी भूमिका निभाता है। इसी भूमिका के कारण सरकार को 15वें वित्तायोग के सचिव के रूप में अभय पंत को पुर्ननियुक्ति देनी पड़ी है। हालांकि केन्द्र ने 15वें वित्तायोग का गठन ही नवम्बर माह के अन्तिम पखवाड़े में किया है और अभी प्रदेश में तो इसकी रूपरेखा आगे तय होनी है लेकिन इस वित्तायोग की अहमियत को देखते हुए ही पंत के अनुभव के कारण उन्हें यह पुर्ननियुक्ति देनी है। ठीक इसी तर्ज पर बजट तैयारी के अन्तिम चरण में प्रशासनिक फेरबदल से सामान्यतः गुरेज किया जाता है।
फिर अभी सरकार ने सारे अधिकारियों से अपने -अपने विभागों की सौ दिन की कार्य योजना पूछी है। जब प्रशासनिक फेरबदल से विभाग प्रभावित हुए हैं तो ऐसे में यह अधिकारी जो योजना देंगे वह कितनी व्यवहारिक हो पायेगी। अभी सरकार ने 500 करोड़ का ऋण लिया है और कहा यह गया है कि ण विकास कार्यों के लिये लिया गया है। इसकी वास्तविकता क्या है यह तो वित्त विभाग ही जानता है कि यह ऋण वेतन भुगतान में प्रयोग किया जायेगा या विकास में। यदि यह विकास में ही इस्तेमाल होना है तो इसका अर्थ है कि विभागों के पास इस समय विकास कार्यो के लिये पर्याप्त वित्तिय साधन नही है। ऐसे में जब वित्तिय साधनों की सुनिश्चितता ही नही है तो फिर कोई भी विभागाध्यक्ष या सचिव सौ दिन की भी ठोस योजना किस आधार पर दे पायेगा। सरकार ने जो कर्ज के आंकड़े प्रदेश की जनता के सामने रखे हैं वह जानकारों के मुताबिक सही नही है क्योंकि यदि इस चालू वर्ष में लिये गये कर्ज के आंकड़े भी इसमें जोड़े जायें तो निश्चित रूप सेे यह कर्जभार 50 हजा़र करोड़ का आंकड़ा पार कर जायेगा। क्योंकि हर चुनावी वर्ष में सामान्य से तीन गुणा ज्यादा तक की बढौत्तरी रहती है। यह बजट दस्तावेजों से प्रमाणित हो जाता है। लेकिन क्या प्रदेश की जनता इस वित्तिय स्थिति से परिचित हैं? किसी ने भी जनता को विश्वास में लेने का प्रयास नही किया है। आज संयोगवश प्रदेश को एक ऐसा मुख्यमन्त्री मिला है जिसकी अपनी स्लेट तो साफ है। ऐसा ही व्यक्ति जनता को विश्वास में लेनेे का साहस कर सकता था जो शायद नही हो पाया है क्योंकि एक श्वेत पत्र के रूप में वित्तिय परिस्थिति का जनता के सामने आना इसके प्रबन्धकों के लिये शायद ज्यादा सुखद नही रेहगा। अभी तो यह सामने आना शेष है कि मण्डी की एक जनसभा में जब प्रधानमन्त्री मोदी ने प्रदेश सरकार से केन्द्र द्वारा दिये गये 70 हजा़र करोड़ का हिसाब मांगा था तो यह पैसा यदि प्रदेश को मिला है तो फिर खर्च कहां हुआ यह जानने का हक प्रदेश की जनता को है। लेकिन शायद इसी सबसे बचने के लिये सरकार को स्थानान्तरण आदि के चक्रव्यूह में उलझा दिया गया है। ऊपर से कुछ ऐसे फैसलें भी करवा दिये गये हैं जिनसे अभी बचा जाना चाहिये था। राज्य लोक सेवा आयोग में सदस्यों के दो पद सृजित करके एक को तुरन्त प्रभाव से भरना शायद आश्वयक नही था। क्योंकि सरकार ने यह नही बताया है कि लोक सेवा आयोग को ऐसी कौन सी अतिरिक्त जिम्मेदारी दी जा रही है जिसके लिये यह पद सृजित करने आवश्यक हो गये थे। ऐसे और भी कई मुद्दे है जो आगे इसी तरह सामने आयेंगे।