शिमला/शैल। जयराम सरकार ने धर्मशाला में विधायकों के शपथ ग्रहण के बाद हुई मन्त्रिमण्डल की पहली ही बैठक में प्रदेश की आबकारी नीति में बदलाव करने का फैसला लेते हुए बीवरेज कारपोरेशन को पहली अप्रैल से भंग करने के आदेश जारी किये हैं। इस कारपोरेशन को भंग करने के साथ ही इसमें हुए घपले की जांच किये जाने की भी घोषणा की थी। स्मरणीय है कि भाजपा ने अपने आरोप पत्र में निगम में 50 करोड़ का घपला होने का आरोप लगाया हुआ है आबकारी प्रदेश के राजस्व का एक महत्वपूर्ण स्त्रोत है। इस नाते इसमें हो रहे राजस्व के नुकसान को लेकर चिन्ता किया जाना स्वभाविक है। गौरतलब है कि हर वर्ष शराब के ठेकों की मार्च माह नीलामी होती थी। लेकिन वीरभद्र सरकार ने इस नीलामी प्रक्रिया के स्थान पर शराब का सारा कारोबार कारपोरेशन के माध्यम से करने का फैसला लिया। इस फैसले के तहत एक बीवरेज कारपोरेशन का गठन किया गया। इसमें यह महत्वपूर्ण रहा है कि आबकारी नीति को लेकर विभाग की ओर से ऐजैण्डा मन्त्री परिषद् में लाया गया था। उसमें ऐसी कारपोरेशन बनाये जाने का कोई प्रस्ताव नही था लेकिन जब मन्त्री परिषद् की बैठक में यह सामने आया कि अब तक किन्नौर, चम्बा और ऊना के ठेकों की नीलामी नही हो पायी है और इस कारण 54 करोड़ का नुकसान हो गया है। राजस्व का यह नुकसान पिछली सरकार द्वारा एल-1 डी और एल-13 डी को लेकर जो नीति अपनाई थी उसके कारण हुआ है। इस खुलासे के बाद मन्त्री परिषद् ने बैठक में ही नीलामी प्रक्रिया के स्थान पर कारपोरेशन बनाने का फैसला लिया। कारपोरेशन के गठन के बाद इसमें एक ब्लू लाईन कंपनी भी बीच में आ गयी।
बीवरेज कारपोरेशन के गठन के बाद इसमें अलग से एमडी और चेयरमैन नियुक्त नही किये गये बल्कि आबकारी विभाग के कमीशनर को ही एमडी की जिम्मेदारी भी दे दी गयी और सचिव आबकारी को इसका चेयरमैन बना दिया गया। इस तरह यह एक ऐसा कारपोरेशन बन गया जिसका सारा प्रबन्धन इन अधिकारियों के हाथ में ही रहा।
कारपोरेशन को लेकर इसके सीए की जो रिपोर्ट आयी है उसमें करीब 12 करोड़ की ऐसी उधार का भी खुलासा है जो लगभग डूब ही चुका है। कारपोरेशन बनने के बाद इसमें ब्लू लाईन की एन्ट्री कैसे हो गयी? इसके माध्यम से कितना कारोबार किया गया और इसकेे संचालक कौन लोग रहे हैं। इसको लेकर विभाग के अधिकारी कुछ भी कहने को तैयार नही है विभाग को कारपोरेशन बनने और इसमें ब्लू लाईन के आने से कितना नुकसान हुआ है इस पर भी विभाग एकदम खामोश रह रहा है। विभाग में राजस्व का जो भी नुकसान हुआ है उसका आंकलन तो जांच से ही लगाया जा सकता है और ऐसी जांच केवल विजिलैन्स ही कर सकती है। मुख्यमन्त्री ने इस जांच का संकल्प अपने पूर्ण राज्यत्व दिवस के संबोधन में भी दोहराया है।
लेकिन मन्त्रीमण्डल के फैसले और फिर मुख्यमन्त्री के हिमाचल दिवस समारोह पर आये संबोधन में भी यह जांच करवाये जाने का जिक्र आने के बावजूद अभी तक संवद्ध प्रशासन की ओर से इस दिशा में कोई कदम नही उठाये गये हैं। चर्चा है कि यदि यह जांच होती है तो इसकी लपेट में निगम के एमडी और इसके चेयरमैन रहे अधिकारी आयेंगे ही। इस गिनम के एमडी पुष्पेन्द्र राजपूत रहे हैं और चेयरमैन डा. बाल्दी, पीसी धीमान, तरूण कपूर और ओंकार शर्मा सभी अधिकारी रहे हैं। इनमें से किसकी क्या भूमिका और कितनी जिम्मेदारी रही है। यह पता केवल जांच से ही चलेगा। परन्तु यह चर्चा भी साथ ही चल पड़ी है कि यह सब अधिकारी इतने ताकतवर हैं कि यह किसी भी जांच को चलने से पहले ही दबा देंगे। माना जा रहा है कि मन्त्रीमण्डल के फैसले और मुख्यमन्त्री की घोषणा का अंजाम वैसा ही होगा जो वीरभद्र शासन में एचपीसीए की जांच का हुआ। क्योंकि जो अधिकारी उस सरकार को चला रह थे वह स्वयं इस प्रकरण में आये चालान में खाना 12 में अभियुक्त नामज़द रहे हैं। इस परिदृश्य में बीवरेज कारपोरेशन मामलें की जांच जयराम सरकार की पहली परीक्षा बनने जा रही है।