शिमला/शैल। जयराम सरकार ने सत्ता संभालते हीे जिस तेजी के साथ प्रदेश लोक सेवा आयोग के लिये सदस्यों के दो पदों का सृजन करके एक को तुरन्त प्रभाव से भर भी दिया और दो निगमों में ताजपोशीयां भी कर दी तथा सैंकड़ो के हिसाब से प्रशासनिक अधिकारियों का फेरबदल भी कर दिया उससे लगने लगा था कि यह सरकार इसी रफ्तार से आगे भी अपने काम को अंजाम देती जायेगीं विभिन्न निगमों/बोर्डो में हर सरकार अपने वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को राजनीतिक ताजपोशीयां देती है और इसमें किसी को कोई एत्तराज भी नहीं होता है बल्कि जितनी शीघ्रता से यह राजनीतिक ताजपोशीयां हो जाती है उसी अनुपात से कार्यकर्ता भी कामकाज मे जुट जाते है। लेकिन अब यह नियुक्तियां रूक गयी हैं बल्कि मुख्यमन्त्री को यह ब्यान देना पड़ा है कि यह नियुक्तयां करने कीे कोई शीघ्रता नहीं है। जब मुख्यमन्त्री ने यह कहा ठीक उसी दौरान यह सामने आ गया कि पालमपुर में इन्दु गोस्वामीे मुख्यमन्त्री के लिये रखे गयेे भोज के आयोजन में शामिल नही हुई। इस शामिल न होने को लेकर आयोजकों और इन्दु गोस्वामी की ओर से आये स्पष्टीकरणों से यह स्पष्ट हो गया कि पालमपुर भाजपा में सब ठीक नही चल रहा है। इन्दु गोस्वामी के प्रकरण के बाद हमीरपुर के भोरंज में एक आयोजन में सांसद अनुराग ठाकुर ‘‘गो बैक’’ केे नारे लग गये । यह नारे इस बात के लिये लगे कि इस क्षेत्र की एक पेयजल योजना लगबाल्टी का आधा पानी धर्मपुर क्षेत्र को दिया जा रहा है। धर्मपुर सिंचाई एवम् जनस्वास्थ्य मन्त्री महेन्द्र सिंह ठाकुर का क्षेत्र है और यह योजना भी आज की नहीं पुरानी है। अनुराग भी तीसरी बार सांसद बने हैं तो फिर यह विरोध प्रर्दशन आज ही क्यों हुआ?
इस समय पार्टी के विधायकों को लेकर यह चर्चा है कि यह लोगे मन्त्री न बनाये जाने को लेकर नाराज़ चल रहे हैं । इनमें नरेन्द्र बरागटा और रमेश धवाला के नाम प्रमुखता से बाहर भी आ चुकें है। यही नही जोे प्रमुख लोग चुनाव हार गये हैं उनकोे लेकर भी यह सवाल उठ रहें है कि उनको कैसे और कहां ऐडजैस्ट किया जायेगा। क्योंकि इस समय पार्टी के अन्दर धूमल, नड्डा, शान्ता और जयराम बराबर के ध्रुव बन कर चल रहे है। विधायकों का बहुमत धूमल के साथ था यह सर्वविदित हैं इसी बहुमत के कारण केवल धूमल के ही दो लोगों को ताजपोशीयां मिल पायी है। बल्कि अब जयराम नड्डा और शान्ता को को भी बराबर साधने में लग गये है। अभी दिल्ली में नड्डा के आवास पर केन्द्र की प्रतिनियुक्ति पर तैनात हिमाचल के अधिकारियों कोे मिलना इसी कड़ी में गिना जा रहा है। यही नहीे चम्बा दौरे के लिये नड्डा को चण्ड़ीगढ़ से लेना फिर शान्ता को पालमपुर से लेना और वापिस वहीं छोड़ना तथा बीच में अमृतसर तक जाना सब कुछ इसी साधने के आईने में देखा जा रहा है। इस राजनीतिक तालमेल का बिठाये रखने के गणित मेे यह निगमों/बोर्डों की नियुक्तियां अभी और कितनी देर तक लटकी रहती है। इस पर अब सवाल तक उठने लग पड़े है। क्योंकि आने वाले समय में जहां अगलेे वर्ष लोकसभा चुनावों का सामना करना है वहीं पर यह संभावना भी बढ़ती जा रही है कि मोदी ‘‘एक देश एक चुनाव’’ की योजना पर अमल करने में सफल हो जाते है तब तो लोकसभा के साथ ही प्रदेश विधानसभा के चुनाव का भी फिर से सामना करने की नौबत आ जायेगी।
इस परिदृश्य में आज जब प्रदेश सरकार की बागडोर जयराम ठाकुर के हाथ में है तो कल को चुनावों में परिणाम देने की जिम्मेदारी भी उन्हीं की हो जाती हैं लेकिन यह परिणाम देेने के लिये कार्यकर्ता भी इस उम्मीद में बैठे हैं कि विधायकों/मन्त्रीयों के बाद उन्हें भी सरकार की ओर से निगमो/बोर्डों में नियुक्तियों के माध्यम सेे सम्मान मिल जाना चाहिये। पार्टी के शीर्षे पर बैठे बड़े नेताओं के आपसी बदलते समीकरणों के कारण यदि कार्यकर्ताओं की ताजपोशीयां लम्बे समय तक लंबित रहती है। तो इसका नुकसान सरकार और संगठन को उठाना पड़ेगा स्थिति उस मोड़ तक जा पहुंची है। इसलिये अब संगठन और सरकार इनकी गुथी को सुलझाती है इस पर सबकी निगाहें लगी है।