अवैधताओं के आगे घुटने टेकती सरकार

Created on Tuesday, 13 February 2018 06:37
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। जयराम सरकार ने प्रदेश में हुए अवैध निर्माणों के खिलाफ प्रदेश उच्च न्यायालय से लेकर एनजीटी तक से आये फैसलों पर यथा निर्देशित करवाई करने के स्थान पर इन लोगों को राहत देनेे के लिये इस कानून में ही संशोधन करने का फैसला लिया है। इस प्रस्तावित संशोधन के मुताबिक जितना निर्माण अवैध पाया जायेगा उसे ही सील करके केवल उसी के खिलाफ कारवाई की जायेगी। सरकार के इस फैसले से अवैध निर्माण के दोषियो के खिलाफ फिलहाल कारवाई रूक गयी है। क्योंकि अदालत तो केवल कानून के मुताबिक फैसला ही दे सकती है। परन्तु उस पर अमल करते हुए दोषियों को व्यवहारिक रूप में सजा देने की जिम्मेदारी तो प्रशासनिक तन्त्र की ही होती है। यदि प्रशासन स्वार्थों से बन्धे राजनीतिक नेतृत्व के आगे घुटने टेकते हुए किसी न किसी बहाने अदालत के फैसलों पर अमल न करे तो अदालत क्या कर सकती है। संभवतः आज प्रदेश में व्यवहारिक रूप से यही स्थिति बनती जा रही है। इसमें भी सबसे बड़ा दुर्भागय यह है कि अवैधता को संरक्षण देने के लिये कानून में ही संशोधन कर नया रास्ता अपनाया जा रहा है और यह काम वह मुख्यमन्त्री करने जा रहा है जिसकी स्लेटे अब तक साफ थी। उम्मीद की जा रही थी कि शायद जयराम ठाुकर अवैधताओं के आगे झुकेंगे नही। लेकिन ऐसा हो नही पा रहा है।
आज पूरे प्रदेश में अवैध निर्माण और सरकारी भूमि पर अवैध कब्जे सबसे बड़ी समस्या बन हुए हैं। शीर्ष अदालतों ने इन अवैधताओं का कड़ा संज्ञान लेते हुए इसके खिलाफ कड़ी कारवाई करने के निर्देश दे रखे हैं। प्रदेश उच्च न्यायालय ने तो अवैध कब्जाधारकों के खिलाफ मनीलाॅंड्ररिंग के तहत कारवाई करने तक के आदेश दे रखे हैं। लेकिन यह आदेश आजतक अमली शक्ल नही ले पाये हैं। इसी तरह एनजीटी कसौली क्षेत्र में बने होटलों में हुए अवैध निर्माण का कड़ा संज्ञान लेते हुए टीसीपीपी और प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड के कुछ सेवानिवृत और कुछ वर्तमान में कार्यरत अधिकारियों को चिन्हित करते हुए प्रदेश के मुख्य सचिव को इनके खिलाफ कारवाई करने के निर्देश पारित किये हुए हैं। जिन पर न तो पूर्व मुख्य सचिव वीसी फारखा और न ही वर्तमान मुख्य सचिव विनित चौधरी कारवाई करने का साहस कर पाये हैं क्योंकि इन चिन्हित हुए नामों में एक नाम प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड के पर्यावरण अभियन्ता प्रवीण गुप्ता का रहा है और जयराम सरकार ने प्रवीण गुप्ता की पत्नी डा. रचना गुप्ता को सत्ता संभालते ही लोकसेवा आयोग में पद सृजित करके सदस्य नियुक्त किया है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि सरकार भी इस संद्धर्भ में कोई कारवाई करने की बजाये कानून में ही संशोधन करके सारी अवैधताओं को राहत पहुंचाने का रास्ता निकालने का प्रयास करने जा रही है। अवैध निर्माणों और अवैध कब्जों दोनो ही मुद्दों पर कानून में संशोधन किया जा रहा है। अवैध कब्जों को लेकर लायी जा रही संशोधित नीति पर उच्च न्यायालय ने कह रखा है कि यदि इस नीति को अदालत में चुनौती दी जाती है तो अदालत इस पर विचार करेगी। इसी पृष्ठभूमि में अवैध निर्माणों को लेकर भी उच्च न्यायालय से ही यह उम्मीद है कि इन निर्माणों को लेकर अब तक सारी अदालतें जो फैसले दे चुकी हैं उनको सामने रखते हुए इन अवैधताओं को संशोधन के माध्यम से वैधता का जामा नही पहनने देगी।
आज इन अवैधताओं पर यह चर्चा उठाने की आवश्यकता इसलिये है क्योंकि इस समय अदालत के रिकार्ड पर यह आ चुका है कि 8182 तो ऐसे अवैध निर्माण हैं जिन्होने निर्माण से पहले किसी भी तरह का कोई नक्शा आदि नही दे रखा है। इस तरह यह निर्माण पूरी तरह सिरे से ही अवैध हैं। फिर भी इन्हें  बिजली पानी आदि के कनैक्शन मिले हुए हैं जिसका अर्थ है कि इन निर्माणों में संबधित प्रशासन का पूरा-पूरा सहयोग रहा होगा। इसलिये इन निर्माणों के खिलाफ तुरन्त प्रभाव से कारवाई की जा सकती थी लेकिन सरकार ऐसा नही कर पायी है। इससे यह भी सवाल उठता है कि क्या यह सरकार अदालत और कानून का सम्मान भी करती है या नही। क्योंकि यदि सरकार अदालत के फैसले के अनुसार इन आठ हजार से अधिक अवैध निर्माणों के दोषियों के खिलाफ कारवाई करने के साथ कानून में संशोधन की बात करती तो सरकार की नीयत नीति की सराहना होती। परन्तु आज यह सन्देश जा रहा है कि सरकार अवैधताओं के आगे घुटने टेकती जा रही है। क्योंकि आज सत्तारूढ़ सरकार से जुडे़ कई बडे़ नेताओं के खिलाफ अवैध निर्माण के गंभीर आरोप हैं। सोलन के पवन गुप्ता को तो इसी अवैध निर्माण के कारण नगर पालिका के अध्यक्ष पद से हटना पड़ा है। बहुत संभव है कि ऐसे लोगों के दवाब में यह संशोधन लाया जा रहा है। जबकि आज पूरा प्रदेश प्राकृतिक आपदाओं के मुहानेे पर इन्ही अवैधताओं के कारण खड़ा है। प्रदेश अब तक भूकंप के 120 झटके झेल चुका है। चम्बा 53.2%हमीरपुर 90.9% कांगडा 98.6% कुल्लु 53.1% और मण्डी 97.4% एम एस के 9 के क्षेत्र में आते हैं। केन्द्रीय आपदा अध्ययन इस ओर गंभीर चेतावनी दे चुके हैं इसलिये यह सरकार से ही अपेक्षा की जायेगी कि वह भविष्य के इस खतरों को गम्भीरता से लेते हुए राजनीतिक स्वार्थों से ऊपर उठकर अपनी जिम्मेदारियों को निभाये।