हादसो पर राजनीति नही कड़ा संज्ञान चाहिये

Created on Tuesday, 17 April 2018 07:47
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। नूरपुर में एक स्कूल बस के गहरी खाई में गिर जाने से 27 लोगों की मौत हो गयी जिनमें 24 स्कूल के बच्चे थे। यह हादसा कितना दर्दनाक रहा होगा इसको शब्दों में ब्यान करना संभव नही। जिन घरों के चिराग इसमें सदा के लिये बुझ गये हैं उन परिजनों को शायद ही कोई शब्द सांत्वना दे सकते है। ईश्वर से यही प्रार्थना है कि वह संतृप्त परिजनों को हिम्मत दे और जिन मायूस नन्हे फरिश्तों को असमय ही अपने पास बुला लिया है उन्हे अपने पास जगह दे। हादसे हो जाते हैं और हादसों के कारणों का पता लगाने के लिये जांच भी आदेशित की जाती है। इसमें भी जांच के आदेश हो चुके हैं लेकिन इसी के साथ इस मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए उच्च न्यायालय ने इसे अपने हाथ में लेकर सरकार ने इस पर जवाब भी तलब कर लिया है। उच्च न्यायालय ने इसका संज्ञान एक अखबार में छपी खबर के कारण लिया क्योंकि अखबार के मुताबिक श्रद्धांजलि को लेकर इसमें राजनीति हो रही थी। इसमें श्रद्धांजलि देने के लिये केन्द्रिय स्वास्थ्य मन्त्री जगत प्रकाश नड्डा और मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर भी पहुंचेे थे। यह दोनों हादसे के दूसरे दिन सुबह पहुंचे। नड्डा शायद गगल एयरपोर्ट पर पहले पहुंच गये थे और मुख्यमन्त्री करीब एक घन्टा बाद में पहुंचे। एयरपोर्ट से इनके नूरपुर अस्पताल पहुंचने के साथ ही अस्पताल ने पोस्टमार्टम के बाद परिजनों को शव सौंपे। हादसा पिछले दिन तीन चार बजे के बीच हो चुका था। हादसे की सूचना मिलने के बाद राहत और बचाव का कार्य शुरू हुआ। शाम तक शव और घायल अस्पताल पहुंचा दिये गये थे। अस्पताल पहुंचने के बाद घायलों के उपचार और शवों का पोस्टमार्टम होना था।
शवों का पोस्टमार्टम कानूनी बाध्यता है और सर्वोच्च न्यायालय कें निर्देशों के बाद रात को पोस्टमार्टम करने की अनुमति नही है। क्योंकि रात को टयूब लाईट में खून के रंग में थोड़ा बदलाव आ जाता है, लेकिन कानून की यह शर्त उन मामलों में लागू होती है जहां पर मौत के कारणों को लेकर सन्देह व्यक्त किया जा रहा है। ऐसे बस और रेल हादसों में जहां मौत का एक ही कारण दुर्घटना रही हो वहां तो पोस्टमार्टम तुुरन्त करवाया जाता है। ताकि परिजनों को यथा शीघ्र शव सौंपे जा सके। इसमें रात को भी पोस्टमार्टम किया जा सकता है लेकिन इस हादसे में यह पोस्टमार्टम सुबह किया गया जबकि यह रात को ही हो जाना चाहिये था। ताकि सुबह शीघ्र ही इनके अन्तिम संस्कार का प्रबन्ध हो जाता क्योंकि मृतक के प्रति श्रद्धांजलि शमशान में जाकर लकड़ी डालना माना जाता है। पीछे बचे परिजनों को तो उनके घर जाकर सांत्वना दी जाती है। लेकिन यहां पर रातभर पोस्टमार्टम का ना होना सीधे प्रशासन की समझदारी पर सवाल खडे़ करता है क्योंकि प्रशासन के मुताबिक पोस्टमार्टम सुबह हुए। इसी कारण परिजनो को रातभर परेशान रहकर इन्तजार करना पड़ा और यही इन्तजार हादसे पर राजनीति की वजह बन गया। ऊपर से केन्द्रिय स्वास्थ्य मन्त्री जगत प्रकाश नड्डा का यह कहना कि उन्हे इस बारे में कोई जानकारी ही नही और यह देखना स्थानीय विधायक और प्रशासन का काम है। इस पर विधायक पठानिया ने मीडिया के सामने रखा है और अखबार ने अपने स्टैण्ड को कुछ और तथ्यों के साथ दोहराया हैै अब क्योंकि उच्च न्यायालय ने इसका संज्ञान ले लिया है इसलिये अदालत के फैसले का इन्तजार करना ही होगा। ऐसे दर्दनाक हादसों पर भी कोई राजनीति कर सकता है यह सामान्यतः समझ से परे की बात है।
लेकिन यह हादसा जो सवाल छोड़ गया है वह अपने में गंभीर है क्योंकि स्थानीय विधायक ने एनडीआरएफ की टीम के व्यवहार को लेकर जो खुलासा किया है वह प्रशासन को कठघरे में खड़ा करता है। दूसरा केन्द्रिय स्वास्थ्य मंत्री और मुख्यमंत्री के एयरपोर्ट पर पहुंचने में एक घन्टे का अन्तर रहना फिर प्रशासन की आपसी कमजोरी को दर्शाता है। जबकि कायदे से दोनो नेताओं को लगभग एक ही समय में पहुंचना चाहिये था यह तालमेल मुख्यमन्त्री कार्यालय और जिला प्रशासन को देखना था। इसी के साथ प्रशासन को इसकी समझ न होना कि कब रात को पोस्टमार्टम नही होता है यह प्रशासन पर प्रश्नचिन्ह है। हादसे के कारणों की जांच चल रही है उम्मीद है कि इस जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक रूप से आम आदमी के सामने रखा जायेगा ताकि हर आदमी अपनी प्रतिक्रिया और सुझाव सरकार तक पहुंचा पाये।