भारी पड़ेगी अवैधताओं की वकालत

Created on Wednesday, 08 August 2018 12:26
Written by Shail Samachar

इस समय प्रदेश अवैध कब्जों और निर्माणों की समस्या से जूझ रहा है। यह समस्याएं कितना विकाशल रूप धारण कर चुकी हैं इसका आकलन इसी से किया जा सकता हैं कि यह मुद्दे आज सरकार से निकलकर अदालत तक पंहुच चुके हैं। अवैध कब्जे छुड़ाने के लिये उच्च न्यायालय को सेना को यह जिम्मेदारी देने की नौवत आ गयी। अवैध निर्माणों पर सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की अनुपालना सुनिनिश्चत करने के लिये गोली चल गयी जिसमें दो लोगों की मौत हो गयीं यह मसले एक लम्बे अरसे से अदालतों में चले आ रहे थे। अदालतों तक इसलिये मामलें पंहुचे थे क्योंकि लोगों ने इस संद्धर्भ में सरकार द्वारा ही बनाये गये नियमों/कानूनों को अंगूठा दिखाते हुए अवैध कब्जों और अवैध निर्माणों को अंजाम दिया था। जब यह अवैधताएं हो रही थी तब संवद्ध प्रशासन ने इस ओर से ऑंखे मूंद ली थी। अवैध कब्जों को नियमित करने के लिये तो वर्ष 2000 में एक पॉलिसि तक बना दी गयी थी। इसके तहत अवैध कब्जाधारकों से वाकायदा आवेदन मांगे गये थे और 1,67000 आवदेन आ गये थे लेकिन प्रदेश उच्च न्यायालय ने इस योजना पर रोक लगा दी थी। आज उसी न्यायालय ने एक ईंच से अवैध कब्जे हटाने के आदेश कर दिये हैं। अवैध कब्जों में ऐसे-ऐसे कब्जे सामने आये हैं जहां लोगों ने सैंकड़ों -सैकड़ों बीघे पर कब्जे किये हुए थे। इन कब्जों को हटाने के लिये एसआईटी तक का गठन करना पड़ा है।
यह अवैध कब्जे कई दशको से चले आ रहे थे। वर्ष 2000 से तो वाकायदा शपथपत्रों के साथ सरकार के रिकार्ड और संज्ञान में आ गये थे। लेकिन सरकार ने इन्हे हटाने के लिये कोई कारगर कदम नही उठायें जबकि जो काम आज उच्च न्यायालय को करना पड़ा है यह काम तो कायदे से सरकार को करना चाहिये था। कांग्रेस और भाजपा दोनो की ही सरकारें सत्ता में रही है। दोनो की ही सरकारें कानून का शासन स्थापित करने में बुरी तरह असफल ही नही पूरी तरह बेईमान रही है।
प्रदेश में 1977 से टीपीसी एक्ट लागू हैं यह अधिनियम इसलिये लाया गया था ताकि पूरे प्रदेश में सुनियोजित निर्माणों को अंजाम दिया जा सके। नगर एवम् ग्राम नियोजन विभाग को यह जिम्मेदारी दी गयी थी कि वह प्रदेशभर के लिये एक सुनिश्चित विकास योजना तैयार करे। इस जिम्मेदारी के तहत 1997 में एक अन्तरिम प्लान अधिसूचित किया गया था। इस प्लान में परिभाषित किया गया था कि किस एरिया में कितना मंजिल का निर्माण कैसा किया जा सकता है और उस निर्माण के अन्य मानक क्या रहेंगे यह सब उस अन्तरिम प्लान में समायोजित था। इस प्लान की अनुपालना सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी नगर निगम पालिका आदि स्थानीय निकायों के साथ नगर एवम् ग्राम नियोजन विभाग को सौंपी गयी थी। जहां कहीं विशेश नगर/कालोनी बनाने -बसाने की योजनाएं बनाई गयी थी वहां पर इस अधिनियम की अनुपालना सुनिश्चित करने के लिये साडा का गठन करने का भी प्रावधान किया गया था। लेकिन यह सब होते हुए भी आज प्रदेया के हर बडे़ शहर में अवैध खड़ें हैं क्योंकि 1979 से लेकर 2018 तक नगर एवम् ग्राम नियोजन विभाग प्रदेश को एक स्थायी विकास योजना नही दे पाया हैं यही अन्तरिम प्लान में ही अठारह बार संशोधन किये गये है। नौ बार तो रिटैन्शन पॉलिसियां लायी गयी है।
इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि इस मुद्दे पर भी कांग्रेस और भाजपा दोनों की ही सरकारें बराबर की दोषी रही हैं। अवैध निर्माणों की स्थिति यह है कि यदि कल को राजधानी शिमला में ही भूकंम्प का ठीक सा झटका आ जाता है तो 50%भवन क्षतिग्रस्त हो जायेंगे और 30,000 से ज्यादा लोगों की जान जा सकती है। अवैध निर्माण शिमला , कसौली, कुल्लु, मनाली ओर धर्मशाला में खतरे की सीमा से कहीं अधिक हो चुके है। अवैध निर्माणों पर प्रदेश उच्च न्यायालय एनजीअी और सर्वोच्च न्यायालय कड़ा संज्ञान लेकर इन्हें गिराने के आदेश जारी कर चुके है। एनजीटी ने नये निर्माणों पर प्रतिबन्ध लगा रखा हैं प्रदेश सरकार ने एनजीटी के फैसले पर एक रिव्यू याचिका दायर की थी जो अस्वीकार हो चुकी है। लेकिन राज्य सरकार इस बारे मे सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर करने की बात कर रही हैं मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर ने पिछले दिनों कुल्लु-मनाली के अवैध निमाणों के दोषियों को यह आश्वासन दिया है कि इन अवैध निर्माणों को कानून के दायरे में लाकर उन्हे राहत प्रदान करेंगीं मुख्यमन्त्री जयराम का यह आश्वासन ओर प्रयास इन अवैधताओं को रोकने में नही बल्कि इन्हे प्रात्साहित करने वाला होगा। मुख्यमन्त्री को यह स्मरण रखना होगा कि दनकी पूर्ववर्ती सरकारें भी अन्तरिम प्लान में बार- बार संशोधन करके और रिटैन्शन पॉलिसियां लाकर इन्हे बढ़ावा ही देती रही हैं आज यदि जयराम ठाकुर भी ऐसा ही प्रयास करेंगे तो उनका नाम भी उसी सूची में जुड़ जायेगा और वह भी भविष्य के बराबर के दोषी बन जायेंगे।  जयराम के साथ भी यह जुड़ जायेगा कि वह भी कानून का शासन स्थापित करने में असफल ही नहीं वरन् पूर्ववर्तीयों की तरह बेईमान रहे हैं। सरकार का अपना आपदा प्रबन्धन इस बारे में आंकड़ो सहित गंभीर चेतावनी दे चुका है। एनजीटी के पास जब निर्माणों की अनुमतियां मांगने की कुछ सरकारी विभागों की याचिकाएं गयी थी तब इन्हें अस्वीकार करते हुए एनजीअी ने शिमला पर और निर्माणों का बोझ डालने की बजाये इन कार्यालयों को ही प्रदेश के दूसरे भागों में ले जाने का सुझाव दिया है। आज आवश्यकता इन अवैध निर्माणों के खिलाफ कठोर कदम उठाने की है न कि इन्हें कानून के दायरे में लाकर राहत प्रदान करने की।