शिमला/शैल। पांच राज्यों के लिये हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा को सभी में हार का सामना करना पड़ा है। जबकि कांग्रेस तीन राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा से सत्ता छीनने में सफल रही है। अन्य दो राज्यों में भी कांग्रेस का प्रदर्शन भाजपा से बहुत अच्छा रहा है। यह चुनाव भाजपा बनाम कांग्रेस ही हो गये थे। इन राज्यों में सपा और बसपा ने भी कांग्रेस से गठबन्धन नही किया था और इसी आधार पर मीडिया ने यह धारणा फैला दी थी कि कांग्रेस के लिये जीत आसान नही होगी। क्योंकि भाजपा के चुनाव प्रचार की कमान स्वयं प्रधानमन्त्री मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमितशाह ने संभाल रखी थी। फिर उत्तरप्रदेश के मुख्यमन्त्री योगी इस चुनाव प्रचार का एक और बड़ा चेहरा बन गये थे। राम मन्दिर निर्माण को फिर केन्द्रिय मुद्दा बना दिया गया था। संघ प्रमुख ने भी यह कह दिया था कि अब सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का इन्तजार नही किया जा सकता। सरकार पर इसके लिये अध्यादेश लाने का पूरा दवाब बना दिया गया था। राफेल डील पर लग रहे आरोपों की काट के लिये मिशेल का प्रत्यार्पण को बड़ा हथियार बना दिया गया। यह भी आरोप लगाया गया कि इन राज्यों में जब कांग्रेस कोई नेता ही घोषित नही कर पायी है तो लोग किसे वोट देंगे। राहुल की छवि ‘‘पप्पु’’ से आगे नही बढ़ने दी जा रही थी। हर तरह का मीडिया पूरी तरह भाजपा के साथ खड़ा था। इसी के साथ भाजपा का अपना कोई ‘‘आईटी सैल’’ हर कुछ जनता में परोस रहा था। नेहरू गांधी परिवार की छवि और उसकी विरासत पर हर तरह का हमला किया जा रहा था। यह सब इसलिये किया जा रहा था क्योंकि देश को कांग्रेस मुक्त करने का संकल्प ले रखा था। फिर चुनाव के दौरान कुछ कांग्रेस नेताओं के ब्यानों को भी कांग्रेस के खिलाफ हथियार बनाकर प्रयोग किया गया। कांग्रेस की ओर से केवल राहूल गांधी पर ही सारा कुछ निर्भर कर रहा था। क्योंकि कई कांग्रेस नेता और कार्यकर्ता राहूल के नेतृत्व से स्वयं आश्वस्त नही थे। इस तरह एक चुनाव के लिये जो कुछ भी अपेक्षित रहता है उसमें हर तरह से भाजपा कांग्रेस पर भी भारी थी। लेकिन इतना सबकुछ होने के बावजूद कांग्रेस की जीत देश के लिये एक बहुत बड़ा सन्देश दे जाती है।
यह चुनाव परिणाम देश के भविष्य के प्रति बहुत बड़ा सवाल खड़ा कर जाते हैं। यह देश बहुधर्मी, बहुभाषी और बहुजातिय है। इस देश में जब काका कालेश्वर कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था की गयी थी और उसके लिये जो मानक उस समय तय किये गये थे उनमें आज भी बहुत बड़ा अन्तर नही आया है। जो भी अन्तर इस दौरान आया है उसके आधार पर आरक्षण को जाति से उठाकर आर्थिक आधार देने की बात की जा चुकी है जिस पर सर्वोच्च न्यायालय भी अपनी मोहर लगा चुका है लेकिन क्या इसकी व्यवहार में अनुपालना हो पा रही है शायद नही। आरक्षण के खिलाफ यह देश वीपी सिंह के शासनकाल में बहुत आन्दोलन देख चुका है। जिसमें स्कूल के बच्चों तक ने आत्मदाह किये थे। जो लोग इस आन्दोलन को उस समय प्रायोजित कर रहे थे वह आज सत्ता में है। इन्ही लोगों के सामने आरक्षण पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आया और उसे संसद में विधेयक लाकर पलट दिया गया। इससे स्पष्ट हो जाता है कि आरक्षण का समर्थन और विरोध केवल राजनीतिक लाभ के गणित के आधार पर किया जा रहा है उसमें वैचारिक स्पष्टता कहीं पर भी दिखाई नहीं पड़ रही है। आज देश की जनता इतनी समझदार हो चुकी है कि वह सब आसानी से समझ पा रही है और उसी समझ का परिणाम है यह चुनाव नतीजे।
इसी के साथ राम मन्दिर का मुद्दा भी आज देश की जनता के सामने स्पष्ट होता जा रहा है। राम मन्दिर निर्माण का आन्दोलन अब ज्यादा देर तक चुनावी हथकण्डा बनकर नही भुनाया जा सकेगा। मन्दिर के लिये जो अध्यादेश आज लाने का दबाव बनाया जा रहा है क्या वह सत्ता संभालते ही किया जा सकता था? कितने लम्बे अरसे से यह मामला अदालत में चल रहा है आज यह आरोप अदालत के सिर लगाया जा रहा है कि वह शीघ्र सुनवाई नही कर रही है। लेकिन यह नही बताया जा रहा है कि सरकार ने इसकी शीघ्र सुनवाई सुनिश्चित करने के लिये क्या पग उठाये? आज मुद्दा भी सरकार के खिलाफ जा रहा है। शायद ‘‘श्री राम’’ को भी यह पता चल गया है कि उन्हे केवल राजनीति के लिये ही उपयोग किया जा रहा है। इसी कारण से आज ‘‘राम’’ भी विमुख हो गये हैं। इस देश में करीब 25 करोड़ मुस्लिम आबादी है। पिछले दिनों संघ प्रमुख मोहन भागवत ने स्वयं कहा था कि मुस्लिमों के बिना देश संभव नही है। जब संघ प्रमुख भी यह मानते हैं तो फिर इनको भाजपा इनके अनुपात में इन्हे लोकसभा/विधानसभा में अपना उम्मीदवार क्यों नही बनाती है। इससे भी स्पष्ट हो जाता है कि 25 करोड़ जनता के प्रति आपकी सोच क्या है। केन्द्र में मोदी सरकार का सत्ता में पांचवा साल है। भाजपा का यह दावा है कि सदस्यता के आधार पर वह विश्व की सबसे बड़ी पार्टी है। यदि भाजपा का यह दावा जमीनी हकीकत है तो वह तेलंगाना और मिजोरम में क्यों हार गयी? उसका यहां प्रदर्शन कांग्रेस से भी नीचे क्यों रहा? क्या यहां भाजपा की सदस्यता नही है? क्या यहां पर भाजपा की स्वीकार्यता अभी तक नही बन पायी है और उसका सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा केवल मीडिया रिपोर्टों पर ही आधारित था? यही नहीं जिस राफेल डील पर सर्वोच्च न्यायालय से मिली क्लीनचिट को भुनाकर राहूल गांधी से देश से क्षमा मांगने की मांग की जा रही थी उसका जब राहूल और खडगे ने खुलासा कर दिया कि कैसे सर्वोच्च न्यायालय से झूठ बोला गया है तब पूरी भाजपा तिलमिला उठी थी। लेकिन जब जमीन पर आये तब इसका दोष सर्वोच्च न्यायालय पर लगा दिया गया कि उसने उनके तर्क को गलत समझा। सरकार को शपथपत्र देकर सर्वोच्च न्यायालय से यह गलती सुधारने की गुहार लगानी पड़ी है। इससे यह प्रमाणित हो गया है कि सर्वोच्च न्यायालय को गुमराह करके फैसला ले लिया गया। जो सीएजी रिपेार्ट बनी ही नहीं और पीएसी में गयी ही नहीं उसे अदालत ने गलती से कैसे मान लिया। यह दलील गले नहीं उतरती है। अब इसमें सर्वोच्च न्यायालय के लिये भी परीक्षा जैसी स्थिति पैदा हो गयी है क्योंकि देश की सुरक्षा के लिये भ्रष्टाचार से बड़ा कोई खतरा नहीं हो सकता और राफेल डील में भ्रष्टाचार होने का ही सबसे बड़ा आरोप है।